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सहरसा से मुकेश सिंह ने जी मीडिया और रायपुर से संदीप ने पत्रिका से इस्तीफा दिया

सहरसा जिले में जी मीडिया के लिए कार्यरत मुकेश सिंह ने चैनल से इस्तीफा दे दिया है. उन्होंने फेसबुक पर लिखकर इसकी जानकारी दी है. मुकेश ने लिखा है- ”मैंने जी मीडिया समूह से रिजाइन कर दिया है। अब आप मुझे जी मीडिया के किसी चैनल पर खबरों के साथ नहीं देख सकेंगे। करीब ढाई साल का सफर रहा हमारा। कई अनुभव हासिल हुए और कई अपने मिले। जी मीडिया छोड़ने का मलाल और पीड़ा दोनों है मुझे लेकिन मैनेजमेंट और हमारे बीच कुछ ऐसा हुआ जिससे मुझे रिजाइन करना पड़ा। वजह क्या रही, इसको हम आपसे साझा नहीं कर सकते। जी मीडिया समूह आसमान की बुलंदी पर काबिज हो, इसकी हम दिल से दुआ करते हैं। जिंदगी के इस सफर में हम पत्रकारिता के नैसर्गिक संस्कारों से लैस होकर, नए और साबूत अंदाज में, जल्द आपके सामने होंगे। मुकेश सिंह, मो० -8292885600 ”

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सहरसा जिले में जी मीडिया के लिए कार्यरत मुकेश सिंह ने चैनल से इस्तीफा दे दिया है. उन्होंने फेसबुक पर लिखकर इसकी जानकारी दी है. मुकेश ने लिखा है- ”मैंने जी मीडिया समूह से रिजाइन कर दिया है। अब आप मुझे जी मीडिया के किसी चैनल पर खबरों के साथ नहीं देख सकेंगे। करीब ढाई साल का सफर रहा हमारा। कई अनुभव हासिल हुए और कई अपने मिले। जी मीडिया छोड़ने का मलाल और पीड़ा दोनों है मुझे लेकिन मैनेजमेंट और हमारे बीच कुछ ऐसा हुआ जिससे मुझे रिजाइन करना पड़ा। वजह क्या रही, इसको हम आपसे साझा नहीं कर सकते। जी मीडिया समूह आसमान की बुलंदी पर काबिज हो, इसकी हम दिल से दुआ करते हैं। जिंदगी के इस सफर में हम पत्रकारिता के नैसर्गिक संस्कारों से लैस होकर, नए और साबूत अंदाज में, जल्द आपके सामने होंगे। मुकेश सिंह, मो० -8292885600 ”

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नीचे जो चिट्ठी है वह रिपोर्टर संदीप शुक्ला ने पत्रिका रायपुर छत्तीसगढ प्रबंधन को लिखा है….

आदरणीय सर जी

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मेरा यह पत्र प्रबंधन के लिए है, ना की एडिटोरीयल के लिए….

ससम्मान निवेदन करता हूँ की मैं ऑफ़िस की वर्तमान परिस्थितियों में आगे कार्य नहीं कर पाउँगा। हम लोगों दो महीने से धूप और गरमी से बचने के लिए पर्दा और पंखे के निवेदन कर रहे हैं लेकिन कोई सुनवाई नहीं हो रही। दिन भर मेहनत के बाद ऑफ़िस में बाहर से  ज़्यादा परेशानी झेलनी पड़ रही है। मैनज्मेंट द्वारा उपेक्षित और शोषित किए जाने जैसा महसूस हो रहा है। अगर प्रतिबद्धता पर कोई शंका हो तो संस्थान हमें बताए। दिन में ऑनलाइन, शाम को अख़बार फिर देर रात तक ऑनलाइन अप्डेट करने में व्यावहारिक , आर्थिक और शारीरिक दिक़्क़तें आने लगी है। इसके अलावा पेट्रोल के जैसा पैसा डेटा में ख़र्च हो रहा है।

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हम मेहनत में अपने आप को मार्केटिंग ओर advt वालो से कहीं कम नहीं मानते हैं। लेकिन एडिटोरीयल ओर मार्केटिंग के बीच पक्षपात साफ़ नज़र आता है । हमें पीने के पानी तक के लिए परेशान होना पड़ता है। सीट पर शाम ६ बजे तक धूप आती है काम करना सम्भव नहीं होता। मैं इस प्रकार से शोषित होकर काम नहीं कर सकता सर। हाथ जोड़कर संस्थान छोड़ने की अनुमति चाहत हूँ। निवेदन है की मेरी कोई भी बात को अन्यथा ना लें। यहाँ बहुत सीखा और बदले में ज़्यादा से ज़्यादा लौटने का प्रयास किया। लेकिन मैनज्मेंट का रवैया देखकर लगता है की संस्थान कर्मचारियों की क़द्र नहीं करता। परेशानी बताने पर मैनज्मेंट के लोग हँसते हैं….

मजबूरी है सर… अगर शरीर प्रभावित होगा तो काम फिर परिवार भी… अपने परिवार के हित में निर्णय लेना पड़ रहा है। आपने मुझे मौक़ा दिया इसका जीवन भर आपका आभारी रहूँगा। इसलिए दुबारा आपसे मिलने का साहस नहीं जुटा पाया..

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सर ग्रुप में यह msg लिए डाला ताकि जो साथी यह परेशानी झेल रहे वह काम से कम मन से मुझे समर्थन देंगे।संस्थान छोड़ने के पीछे मुख्य कारण ज़्यादा ख़र्च और काम संसाधन है ..

कोई बात बुरी लगे तो छमा कीजिएगा सर… लेकिन अब नहीं कर पाउँगा…
हिम्मत जुटा के किसी दिन आपसे सामने से छमा माँगने आऊँगा…
आशीर्वाद बनाए रखिएगा,  ग़लतियों के लिए माफ़ करिएगा

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संदीप शुक्ला
रिपोर्टर
पत्रिका
रायपुर
छत्तीसगढ

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0 Comments

  1. CHANDAN SINGH

    June 1, 2016 at 3:23 pm

    बिहार के कई जिले से समझिये जी पुरबिया का अंत होना तय है

  2. prem.mishra

    June 2, 2016 at 8:26 am

    संदीप षुक्ला जी आपने कमाल कर दिया। जिस बात पर इस्तीफा दिया है, वह क्रांतिकार कदम है। असल में संपदकीय विभाग की मां-बहन संपादकों ने की है। वे मैनेजरों को अखबार के मालिकों से उपर समझते हैं। रायपुर से षायद आपके परिचित होंगे गोविंद ठाकरे जी, वे जबलपुर के संपादक बनकर आए हैं। वे संपादक तो बन गए, लेकिन यही सोचते रहते हैं कि उन पर अहसान किया गया है। इसका नतीजा यह है कि वे जबलपुर में भी संपादकीय विभाग की मां-बहन करवा रहे हैं। संपादक खुद मरवाने को तैयार न हो, तो मैनेजर उसका रोयां नहीं उखाड पाएंगे। लेकिन, दुर्भाग्य यही है कि कोई अपने अधिकारों को जानना नहीं चाहता। यह सही है कि संपादक भी नौकर होता है, लेकिन वह अपने साथियों को छुटटी तो दे सकता है। उसके बैठने की जगह तो दे सकता है। उसके सुखदुख में ष्षामिल तो हो सकता है। मालिकों ने यह कहां है कि किसी को छुटटी न दो। मजीठिया जैसे मुददे पर बात करने से इन संपादकों की हवा खराब हो जाती है। लेकिन, अपने साथियों का ख्याल तो रख ही सकते हैं। वरना पत्रकारिता में रहने की जरूरत क्या है। संदीप जी आपका यह कदम पत्रकारिता के इतिहास में मील का पत्थर साबित होगा। रायपुर के साथ षायद जबलपुर का भी भला हो जाए।

  3. jyoti

    June 3, 2016 at 8:50 am

    सहरसा के मुकेश सिंह ने जी मीडिया से इस्तीफा नहीं दिया ,बल्कि उसे धक्के देकर निकाला गया है .चूँकि इनके कारण कई स्ट्रिंगरो को अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ा था .ठीक किया जी मीडिया वाले ने .

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