LN Shital-
बेटा बदतमीज़ और बेशर्म, तो पिता उससे भी बड़ा बदतमीज़ और बेशर्म! लानत है दोनों पर!! फ़्लाइट में शराब के नशे में चूर एक तथाकथित पढ़े-लिखे अमानुष द्वारा अपनी माँ की उम्र की महिला पर पेशाब किये जाने की घृणित घटना के बाद उसके पिता ने जिस बेशर्मी और नीचता से अपने ‘लाड़ले’ की करतूत का बचाव किया है, वह एक ओर मन को असीम गुस्से से भर देती है तो दूसरी ओर वह बहुत कुछ सोचने के लिए विवश भी कर देती है।
पहले जान लीजिए कि उस बेहया दुपाये शंकर मिश्रा के बाप श्याम मिश्रा ने क्या कहा। उसने कहा है कि उसके ‘सुपुत्र’ पर लगाये गये आरोप झूठे हैं। उसने कहा, “पीड़ित महिला ने मुआवजा मांगा था, हमने वो भी दे दिया। फिर पता नहीं क्या हुआ। शायद महिला की मांग कुछ और रही होगी, जो पूरी नहीं हो सकी, इसीलिए वह नाराज है। मुमकिन है कि उसे ब्लैकमेल करने के लिए ऐसा किया जा रहा हो। मेरा बेटा शंकर थका हुआ था। वह दो दिनों से सोया नहीं था। फ्लाइट में उसे ड्रिंक दी गयी थी, जिसे पीकर वह सो गया। मेरा बेटा सभ्य है और ऐसा कुछ नहीं कर सकता।“
वाह रे श्याम मिश्रा! क्या कहने तेरी और तेरे बेटे की शराफत के!! अगर यही शराफत है तो फिर नीचता की परिभाषा क्या होगी!!! तुम दोनों ने अपनी कथनी और करनी से देश के सबसे बड़े समुदाय के आराध्यों शंकर और कृष्ण भगवान दोनों के नामों की भी लाज नहीं रखी। थू है तुम दोनों पर!!
दरअसल 26 नवंबर को एअर इंडिया की न्यूयॉर्क-दिल्ली फ्लाइट में शंकर मिश्रा ने माँ की उम्र की उन बुजुर्ग महिला के ऊपर पेशाब कर दिया। इस घटना पर एअरलाइन ने कोई एक्शन नहीं लिया। 28 दिसंबर को एअरलाइन ने दिल्ली पुलिस में FIR करायी। यह कार्रवाई तब हुई, जब पीड़ित बुजुर्ग महिला ने टाटा ग्रुप के चेअरमैन से शिकायत की। पुलिस शंकर मिश्रा को तलाशती रही, लेकिन कामयाबी नहीं मिली। जब 4 जनवरी को यह खबर मीडिया और सोशल मीडिया में वायरल हुई तो MNC वेल्स फार्गो एंड कंपनी ने 6 जनवरी को अपने वाइस प्रेज़ीडेंट शंकर मिश्रा नौकरी से निकाल दिया। अंततः दिल्ली पुलिस ने उसके खिलाफ लुक आउट सर्कुलर जारी किया और उसे बेंगलुरु से गिरफ्तार कर लिया।
याद रहे कि पीड़िता और शंकर मिश्रा बिज़निस क्लास में सफर कर रहे थे, जिसमें प्रायः वे लोग सफर करते हैं, जिन्हें एलीट या अभिजात्य श्रेणी में शुमार किया जाता है। जाहिर है कि यदि इस श्रेणी में सफर करने की हैसियत हासिल करने वाला व्यक्ति कोई किसी चौयाये जैसी करतूत करे, तो उस पूरे सिस्टम पर सवाल खड़ा होता है कि आखिर वह उस हैसियत तक पहुँच कैसे गया? दूसरा सवाल यह खड़ा होता है कि यह कैसी शिक्षा है, जो किसी दुपाये को ऊँची नौकरी और रुतबा तो दिला देती है, लेकिन उसे ‘आदमी’ तक नहीं बना पाती। तीसरी बात यह कि एअरलाइन की एअरहॉस्टेस किसी पैसेंजर को इतनी शराब सर्व ही क्यों कर देती हैं, जिसे हजम करने की उसकी औकात नहीं होती। क्या पेगों की कोई लिमिट तय नहीं की जा सकती? यदि नहीं, तो तय की जानी चाहिए, क्योंकि यह सार्वजनिक जीवन में अनुशासन और शुचिता से जुड़ा सवाल है।
यहाँ तकलीफ और शर्म की बात यह भी है कि शंकर मिश्रा की असहनीय बदतमीजी के बाद एअरलाइन स्टाफ इस बात के लिए पीड़िता पर दवाब डालता रहा कि वह उससे बात कर लें। आखिरी बात यह कि उस स्टाफ़ में महिलाएँ भी तो थीं। तो क्या एक भद्र और बुजुर्ग महिला के सम्मान पर हुई इस सांघातिक चोट ने उनके ज़मीर को तनिक भी नहीं झकझोरा? कैसा सभ्य समाज है यह???