Samarendra Singh : जिसका अंदेशा था वही हुआ. अभय कुमार दुबे की बात सही निकली. किसी एक की नाक जड़ से कटनी थी और इस सदी के स्वघोषित सबसे बड़े महानायक की नाक जड़ से कट गई. कमाल के केजरीवाल जी दुखी हैं. बोलते नहीं बन रहा है. इसलिए अदालत के फैसले का इंतजार किये बगैर उन्होंने अपने क्रांतिकारियों को अपने बचाव में आगे कर दिया है. तोमर की डिग्री फर्जी है, यह मानने के लिए अब उन्हें किसी अदालत के फैसले की जरुरत महसूस नहीं हो रही है. अब उनके क्रांतिकारी कह रहे हैं कि माननीय को गहरा सदमा लगा है. तोमर ने उन पर जादू कर दिया था. फर्जी आरटीआई दिखा कर भ्रमित कर दिया था. हद है बेशर्मी की. बार-बार झूठ बोलने पर जरा भी लाज नहीं आती.
दरअसल यह सारा खेल औकात बताने से शुरु हुआ था. केजरीवाल को कुछ लोगों को उनकी औकात बतानी थी. प्रशांत भूषण, योगेंद्र यादव और आनंद कुमार को बताना था कि उन्होंने आम आदमी पार्टी को अपने पसीने से भले ही सींचा हो, इसमें उनकी हैसियत दो कौड़ी से अधिक नहीं है. आम आदमी पार्टी तो सिर्फ और सिर्फ केजरीवाल और उनके क्रांतिकारियों के हिसाब से चलेगी. वो कहेंगे दाएं तो दाएं और बाएं तो बाएं मुड़ेगी. और तमाम सवालों के बावजूद न केवल तोमर को टिकट दिया बल्कि मंत्री भी बना दिया. अब कह रहे हैं कि गुमराह किया गया था.
सच तो ये है कि केजरीवाल बहुत हल्के आदमी हैं. उनके क्रांतिकारी तो उनसे भी अधिक हल्के हैं. जिस तरह की उनकी भाषा है उससे जाहिर होता है कि वैचारिक स्तर पर ये सभी बहुत छिछले हैं. संसद, संविधान और कानून में इनकी आस्था न के बराबर है. देश के ढांचे को ये कुछ नहीं समझते. केंद्र और राज्य के रिश्तों के बारे में इनकी समझ न के बराबर है. जब ये कहते हैं कि “हमें अदालत और मुकदमों से डराने की कोशिश हो रही है जिन्हें हम कुछ समझते ही नहीं ” तो इनका हल्कापन जाहिर होता है.
यही नहीं, इन सभी ने अपने पुराने साथियों और पार्टी के संस्थापकों के खिलाफ जिस तरह की भाषा का इस्तेमाल किया था… उन पर उनके परिवार पर जिस बेशर्मी से हमला किया था उससे यह जाहिर होता है कि वह सभी व्यक्तिगत संबंधों का भी मान नहीं रख सकते. मगर केजरीवाल और उनके क्रांतिकारी कुछ बातों में माहिर हैं. झूठ बोलने में और नौटंकी करने में तो ये किसी को मात दे देंगे. मुंह बना-बना कर ऐसे बोलते हैं जैसे इनसे अधिक प्रतिबद्ध कोई दूसरा नहीं.
बीते कुछ दिन में बहुत से लोग यह दलील दे रहे थे कि पुलिस राज्य सरकार के हवाले क्यों नहीं सौंप दी जाती. मेरी तो राय है कि यह कभी नहीं होना चाहिए. दिल्ली की पुलिस राज्य सरकार के हवाले नहीं की जा सकती. तब तो कतई नहीं जब केजरीवाल जैसा सनकी व्यक्ति, जिसकी आस्था संविधान और कानून में न के बराबर हो, यहां का मुख्यमंत्री हो. वह कुछ भी फैसला ले सकता है. प्रधानमंत्री का रूट लगाने से इनकार कर सकता है. वीआईपी सुरक्षा खत्म कर सकता है. टकराव के नए-नए बहाने खोज सकता है. और जिस तरह की इस देश की राजनीति है उसमें उसे कई अन्य जगहों से समर्थन भी मिल सकता है. ऐसा हुआ तो केंद्र की ताकत कम होगी. कहीं भी केंद्र कमजोर हुआ तो विखराब शुरु हो जाता है. इसलिए दिल्ली अर्धराज्य है और उसे अर्धराज्य ही रहना चाहिए. इसे पूर्ण राज्य नहीं बनाया जा सकता. दिल्ली को देश के तमाम राज्यों की तुलना में अधिक सुविधाएं इसीलिए मिली हैं कि वह केंद्र की सत्ता का केंद्र है और अर्धराज्य है.
खैर इन सब बातों का कोई मतलब है. भैंस के आगे बीन बनाने से वह गाना नहीं गाने लगेगी. केजरीवाल और उनके क्रांतिकारी खामोशी से काम ही नहीं कर सकते. वह जल्दी ही हमारे बीच नई नौटंकी के साथ हाजिर होंगे. कुछ नया जिससे तमाशा खड़ा हो सकता हो. जिस पर नए चुटकुले बन सकते हों. कार्टून बनाए जा सकते हों. तल्ख टिप्पणियां हो सकती हैं. लेकिन सकारात्मक बदलाव नहीं हो सकता. दिल्लीवालों की जिंदगी बेहतर नहीं हो सकती.
एनडीटीवी इंडिया में वरिष्ठ पद पर काम कर चुके प्रतिभाशाली पत्रकार समरेंद्र सिंह के फेसबुक वॉल से.
इसे भी पढ़ें…