Connect with us

Hi, what are you looking for?

साहित्य

‘डॉटर बाई कोर्ट ऑर्डर’ : एक किताब के जरिए मां नलिनी सिंह के चेहरे से नकाब हटाया बेटी रत्ना वीरा ने

कॉरपोरेट एक्ज़ीक्यूटिव से लेखिका बनीं रत्ना वीरा ने अपना पहला उपन्यास ‘डॉटर बाई कोर्ट ऑर्डर’ लु़टियन्स दिल्ली के रईसों के पारिवारिक संपत्ति विवादों की पृष्ठभूमि में लिखा है। कहानी की नायिका, अरण्या, एक दुखी पुत्री के रुप में सामने आती है जो अपने दादा की संपत्ति में अपना पाने के लिए अदालत का सहारा लेती है और परिवार की बेटी के रूप में अपनी पहचान स्थापित करती है।

कॉरपोरेट एक्ज़ीक्यूटिव से लेखिका बनीं रत्ना वीरा ने अपना पहला उपन्यास ‘डॉटर बाई कोर्ट ऑर्डर’ लु़टियन्स दिल्ली के रईसों के पारिवारिक संपत्ति विवादों की पृष्ठभूमि में लिखा है। कहानी की नायिका, अरण्या, एक दुखी पुत्री के रुप में सामने आती है जो अपने दादा की संपत्ति में अपना पाने के लिए अदालत का सहारा लेती है और परिवार की बेटी के रूप में अपनी पहचान स्थापित करती है।

अरण्या उच्च शिक्षा प्राप्त है, अच्छी नौकरी करती है, वो अदालत जाने का निर्णय करती है जब उसे पता चलता है कि उसके माता-पिता और भाई ने दादा जी की कीमती भू-संपत्ति को पाने के लिए करीब एक दशक से कानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं। लेकिन इस पूरी कानूनी लड़ाई के दौरान उसके परिवार ने संपत्ति हड़पने की नीयत से अदालत से उसकी पहचान को छिपाया और उसे भी अंधेरे में रखा। इस पूरे षडयंत्र की सूत्रधार अरण्या की मां, कामिनी, है जो उसे जन्म से ही अपने लिए एक अपशकुन मानती है। अरण्या एक आजाद खयाल लड़की है जो अपनी शर्तों पर जीना चाहती है जो कि कामिनी को पसंद नहीं। कुल मिला कर यही इस उपन्यास का सार है। रत्ना वीरा का कहना है कि उनके उपन्यास की कहानी काल्पनिक है। लेकिन चर्चा ये है कि ये उपन्यास उनके जीवन की घटनाओं पर आधारित है। गौरतलब है कि रत्ना वीरा वरिष्ठ पत्रकार नलिनी सिंह और एसपीएन सिंह की पुत्री तथा वरिष्ठ पत्रकार-राजनेता-लेखक अरुण शौरी की भांजी हैं।

Advertisement. Scroll to continue reading.

हालांकि रत्ना के अनुसार उनके उपन्यास के पात्र काल्पनिक हैं लेकिन उनके रिश्तेदारों और पात्रों में काफी समानता है। उदाहरण के लिए रत्ना के उपन्यास की मां, कामिनी, एक पत्रकार है जो एक राजनेता के पुत्र से विवाह करती है। कामिनी को एक चालाक, अभद्र, गाली गलौज करने वाली महिला के रूप में दिखाया गया है जो सफलता पाने के लिए दूसरों का उपयोग करने से नहीं चूकती। असल जीवन में नलिनी सिंह ने उत्तर प्रदेश के पूर्व राज्यपाल सीपीएन सिंह के पुत्र एसपीएन सिंह से विवाह किया। अपन्यास में अरण्या के दादा, ईश्वर धारी को मध्य प्रदेश का मुख्यमंत्री दिखाया गया है। सिंह जहां पटना विश्वविद्यालय के कुलपति रहे वहीं धारी को रांची विवि का कुलपति बताया गया है।

उपन्यास की मुख्य नायिका अरण्या का किरदार स्वयं रत्ना से मेल खाता है। रत्ना ने अंग्रेजी साहित्य की पढ़ाई सेंट स्टीफेन्स कॉलेज से की वहीं अरण्या क्वीन्स कॉलेज जाती है जिसे अंग्रेजी साहित्य पढ़ने के लिए भारत का सबसे बढ़िया कॉलेज बताया गया है। दोनो उच्च शिक्षा के लिए इंग्लैण्ड जातीं हैं और स्वदेश वापस लौट कर कॉरपोरेट दुनिया में अपना कैरियर बनाती हैं। अरण्या की ही तरह रत्ना के अपनी मां नलिनी सिंह से रिश्ते बहुत सामान्य नहीं रहे हैं, रत्ना इस तथ्य को अपने एक इण्टरव्यू में स्वीकार भी कर चुकी हैं। अरण्या के एक मामा भी है, यूडी मामा, कामिनी का भाई जिसका एक उज्ज्वल कैरियर है और जो कई कुछ गलत नहीं करता। असल जिन्दगी में, नलिनी सिंह के भाई अरुण शौरी भाजपा के जाने माने नेता और वरिष्ठ पत्रकार हैं। यूडी भी अरण्या की तरह क्वीन्स कॉलेज पढ़ने जाता है। अरुण शौरी भी सेंट स्टीफेन्स के छात्र रहे हैं। उपन्यास में यूडी को उसकी आम जनता में छवि के उलट अहंकारी और कपटी बताया गया है।

Advertisement. Scroll to continue reading.

रत्ना को इस बात की परवाह नहीं कि उनके रिश्तेदार और जानने वाले इस उपन्यास के बारे में क्या सोचते हैं। रत्ना के लिए ये एक काल्पनिक कहानी है यदि किसी को कोई आपत्ति है तो वो उससे निपटने को तैयार हैं। रत्ना का कहना है कि उन्होंने ये उपन्यास महिलाओं को प्रोत्साहित करने के लिए लिखा है कि उन्हें अपने हक़ के लिए लड़ना चाहिए। 2005 में संपत्ति कानून में संसोधन करके सरकार ने बेटियों को पैतृक संपत्ति में बेटों के समान ही हक़ प्रदान किया है लेकिन परिवार आज भी बेटियों के इस हक़ की उपेक्षा करते हैं। रत्ना वीरा ने अपनी मां और परिवार से लड़ कर पुश्तैनी संपत्ति में अपना हक़ पाया और समाज में स्थापित चेहरों से नकाब को हटाते हुए अपनी पहचान को भी स्थापित किया है। रत्ना वीरा लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से परा-स्नातक हैं। वे एमटीएस इंडिया में उप-निदेशक कॉरपोरेट कम्यूनिकेशंस तथा यस बैंक की कार्यकारी उपाध्यक्ष रहीं हैं। रत्ना अपने पुत्र और पुत्री के साथ गुड़गांव में रहती हैं और अपने दूसरे उपन्यास पर काम कर रही हैं।

बरेली के एडवोकेट और जर्नलिस्ट कुशल प्रताप सिंह की रिपोर्ट. संपर्क: 09412417994

Advertisement. Scroll to continue reading.
Click to comment

0 Comments

  1. संजय कुमार सिंह

    October 14, 2014 at 12:30 pm

    बहुत अच्छी पुस्तक है और अगर वाकई सच्ची घटनाओं पर आधारित है तो लेखिका बधाई की पात्र हैं। मां नलिनी सिंह के बारे में कुछ भी कहा जाए कम है। इसे ठीक से समझने के लिए पुस्तक पढ़ना पड़ेगा। काश यह पुस्तक हिन्दी में होती और नलिनी सिंह के प्रशंसक (और आलोचक भी) इसे पढ़ पाते।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement