असली गुरु तो नीतीशे चचा हैं!

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बिनोद बिहारी वर्मा-

कितनी भी परिवारवाद की बात कर ले, परन्तु तेजश्वी बनना इतना आसान नहीं है. भारतीय राजनीति में कितने ही पिता पुत्र की जोड़ी है. उनमे से बहुत सारे को पार्टी विरासत में मिली है. या तो उनके पिताश्री एक जाना माना हस्ती है या था. बिहार की ही अगर बात करे तो चिराग पासवान से आप सभी अवगत है. पढ़ा लिखा है, अच्छा बोल भी लेता है और पार्टी और पॉलिटिक्स विरासत में मिला है. उत्तर प्रदेश में नॉएडा से विधायक पंकज सिंह का भी उदहारण लिया जा सकता है. माननिये राजनाथ सिंह को कौन नहीं जनता है. ऐसे बहुत सारे उदहारण मिल जायेंगे आपको.

चलिए अब मुद्दे की बात करते है. जब तेजश्वी ने सक्रीय राजनीति को सुरुवात की तो उनको लालू जी का ज्यादा साथ नहीं मिला. हां वो एक कार्य किया की अपने सुपुत्र को उप मुख्य मंत्री बना गए. लेकिन साथ में अपने बड़े सुपुत्र को भी मंत्री बनवाये थे. लेकिन तब शायद चांदी की चमच उनको मिल गया था.

परन्तु असली परीक्षा तो तब हुई, जब नितीश जी ने गठबंधन तोड़ दिया. और तेजश्वी उप मुख्यमंत्री से नेता विपक्ष बन गए. सरकार में रहकर उन्होंने नितीश जी से काफी कुछ सीखा. परन्तु मेरा ऐसा विचार है की उससे ज्यादा नेता विपक्ष में रहकर सीखा. एक बात गौर करने की है दोनों ही हालत में उनके गुरु नितीश जी ही थे.

हमने विधानसभा में कई बार चाचा भतीजा में तू तू में में होते देखा. परन्तु माहौल काफी खुशनुमा होता था. जैसे क्लास रूम में गुरु और चेला. जब तेजस्वी विपक्ष में थे, उस समय लालू जी साथ नहीं थे. उसी समय उनकी असली परीक्षा थी, जिसको उन्होंने अच्छे नंबर से पास किया.

हालाँकि लोक सभा के इलेक्शन में लालू जी की गैरमजदगी में मेहनत काफी किया. परन्तु शायद वो उनका राजनीति का अखाडा था ही नहीं. वैसे भी बिहार में पिछले काफी दिनों से अगर दो दलोंमें गठबंधन हो तो तीसरा का स्कोप नहीं होता है. फिर भी तेजश्वी हार के भी लगातार आगे बढ़ते रहे. उनके समक्ष कही भी नजर नहीं आये.

फिर आया पिछले विधान सभा का चुनाव. इसमें उनके लिए मौका था, और राजनितिक मैदान भी. कांग्रेस से सीट बटवारे को अगर नजरअंदाज कर दे तो काफी सोचो समझी रणनीति के तहत सारे निर्णय लिए गए. और परिणाम आप सब जानते ही है, सबसे बड़े राजनितिक दाल के रूप में उभरे. बीजेपी और जदयु के एक साथ रहने के बाद भी सरकार बनाने के समीप पहुंच गए. परन्तु सरकार नहीं बना पाए और विपक्ष के नेता बने. यंहा भी नितीश जी के संसर्ग में रह कर उनमे काफी निखार आया. और अंततः लालू जी के असली राजनितिक उत्तराधिकारी बन गए.

लेखक बिनोद बिहारी वर्मा बैंकिंग प्रोफेशनल हैं. उनसे संपर्क binodverma@hotmail.com के जरिए किया जा सकता है.

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