अभिषेक मेहरोत्रा-
नोएडा का मारवाह स्टूडियो भी गजब करता है। हर दिन सम्मान समारोह ही करता है। घर घर सम्मान, हरेक को सम्मान।
उपरोक्त एफबी पोस्ट पर कुछ प्रतिक्रियाएँ देखें-
विवेक शुक्ला- मुझे समझ नहीं आता कि सम्मान पाने की इतनी आफत क्या है! मुझे कुछ दिन पहले दिल्ली सरकार के शिक्षा विभाग की एक आला अफसर ने कहा, आपको सम्मान दिलवाना है. मेरा सीधा उत्तर था, मैं ने 15 साल से कथित सम्मानों को लेना बंद कर दिया था. उन्हें मेरे उत्तर पर यकीन नहीं हुआ.
अभिषेक मेहरोत्रा- ये एक नए तरह का culture है, जो अच्छे टैलेंट की सराहना करता है पर अति सालती है। Fizi से लेकर काशी तक ये कल्चर खूब पल्लवित हो रहा है। सरकार और उसके अनुवांशिक संगठन भी इसमें अब बड़े प्रायोजक बन रहे हैं। बदल रहा है देश मेरा….अच्छे अच्छों के अच्छे दिन आ गए हैं। मैं भी कई बार ऐसे कार्यक्रमों का हिस्सा रहा हूं।
डॉ मनोज पमार- आगरा जैसा देश में कही नही। एक दूसरे को ही पुरस्कार बांटती रहती हैं कई संस्थाएं। सालाना, छमाही उपक्रम लोगों को खुश करने उल्लू बनाने का।
प्राची वार्ष्णेय- पिछले दस पंद्रह सालों में ऐसे ऐसे ब्लॉग्स को सम्मान पाते हुए देखा है जिन्होंने कुल मिला कर सिर्फ़ १०-१२ ब्लॉग्स लिखे हैं प्रोफेशनल फ़ोटोग्राफ़रों की मदद लेकर। दस से पैंतीस हज़ार का रेट है कुछ संस्थाओं का। हमने ४००-५०० आर्टिकल लिख लिए, दो दो किताबें छपा लीं, तीन आर्टिकल्स यहाँ खाड़ी देशों में क़रीब ४-५ लाख व्यूस ले चुके हैं एक ही दिन में और आज भी भारी डिमांड में रहते हैं। पर जब भी कोई सम्मान का ऑफ़र आता है तो यही जवाब दे देती हूँ कि मेरे बच्चों को बहुत बुरा लगेगा की मम्मी पैसे देके सम्मान ली थीं।