Padampati Sharma : राजनीतिक दलों पर कृपा से तो नोटबंदी की ऐसी तैसी हो जाएगी मोदी जी.. राजनीतिक दलों पर कृपा क्यों ? राजनीति से जो थोड़ी जानकारी रखता है उसे पता है कि राजनेताओं के यहां नोट गिनने की मशीने लगी है . वहां गिन कर रखे लाल – पीले बापू पार्टी के नाम से बैंकों में जमा हो जाएंगे और चूंकि जांच भी नहीं होनी है इसलिए कमीशन पर काले का सफेद धंधा चमक उठेगा. काला धन रखने वालों की तो इससे बांछें खिल उठी हैं. नेताओं को पूरा मौका दे दिया है सरकार ने. कुछ कीजिए मोदीजी ताकि इन लुटेरों पर अंकुश लगे. राजनीतिक दलों को भी जांच के दायरे में लाइए अन्यथा बहनजी, भाई जी, नेताजी, कुनबे वाले एंड संस और एंड ब्रदर्स तो रातों रात अकूत संपत्ति के मालिक हो जाएंगे. हवााला कारोबारियों की भी मौज हो गयी.सरकार के इस कदम से तो नोट बंदी की ऐसी-तैसी हो जाएगी.
Manoj Kumar Mishra : राजनैतिक दलों को पुराने नोटों में बिना कोई हिसाब किताब दिए चंदा जमा करने की अनुमति देना यह साबित करता है कि नोटबंदी के नाम पर जनता के तकलीफ का हवाला दे कर विपक्ष का शीतकालीन सत्र न चलने देने के लिए हंगामा करना सरकार के साथ नूरा कुश्ती मात्र थी । यह मोदी सरकार की लाचारी कहें या अभी तक का सबसे कमजोर फैसला । कुल 1900 राजनैतिक दल चुनाव आयोग में पंजीकृत हैं ऐसे में तो नेताओं की पौ बारह होना तय है। राजनैतिक दल इस निर्णय का फायदा काला धन सफ़ेद करने में न कर पायें इसके लिए मोदी सरकार को हर हाल में यह सुनिश्चित करना होगा कि सभी राजनैतिक दलों को बीस हज़ार तक नगद चंदा देने वालों के नाम पतों का निष्पक्ष और पारदर्शी तरीके से सत्यापन सुप्रीम कोर्ट द्वारा बनाई गयी एसआईटी की निगरानी में कराया जाय । सभी पार्टियों को आरटीआई के दायरे में लाते हुए भविष्य में मिलने वाले चंदे के लिए भी पारदर्शी व्यवस्था सुनिश्चित की जाये । यदि ऐसा नहीं हुआ तो इस सरकार पर भी भ्रष्टाचार के सामने नतमस्तक होने का दाग लगना तय है।
Krishna Kant : केजरीवाल की ये मांग ठीक है कि राजनीतिक दलों की फंडिंग की जांच हो और इसे पारदर्शी बनाया जाए। नोटबंदी में पूरा देश त्रस्त है तब भाजपा चुनाव प्रचार के लिए सैकड़ों बाइक खरीद रही है, रैली के लिए विदेश से फूल आ रहा है। नेताओं के बच्चों की करोड़ों में शादियां हो रही हैं। कालाधन वापस आये ये जनता की मांग थी, तो अंततः इसकी सजा जनता को ही दी गई। नोटबंदी में कोई अमीर लाइन में नहीं लगा। किसी अरबपति को हार्ट अटैक नहीं आया। कोई पूंजीपति पकड़ा नहीं गया। स्विस बैंक का कोई नामलेवा नहीं है। सबसे ज़्यादा कालाधन चुनाव में खपाया जाता है। कैश में पैसे बंटते है। कैश में फंडिंग होती है। पहले गुड़ खाना बंद कीजिये तब दूसरों से कहिये कि गुड़ खाना नुकसानदेह है। पाखंड बंद होना चाहिए।
Mahendra Mishra : आपका दाहिना हाथ ही भ्रष्ट है तो फिर किसके खिलाफ लड़ाई की बात कर रहे हैं मोदीजी… अगर आप सचमुच ईमानदार होते तो सबसे पहले इसकी सफाई अपने घर से शुरू करते। दो ऐसे मामले सामने आये जिसमें सीधे तौर पर बीजेपी के शामिल होने की पुष्टि हुई है। एक बिहार में जमीनों की खरीद का मामला है। दूसरा कोलकाता में बीजेपी के खाते में नोटबंदी की घोषणा से चंद घंटे पहले 500-1000 नोटों की शक्ल में लाखों रुपये जमा होने का। आप कालेधन के तालाब की किसी छोटी मछली के यहां छापा मारने से पहले 500 करोड़ रुपये बेटी की शादी में खर्च करने वाले रेड्डी बंधुओं के यहां छापा मरवाते। 50 चार्टर्ड विमानों से मेहमानों को ढोने वाले गडकरी से इस्तीफा लेते और उनकी बेटी की शादी के खर्चों की जांच करवाते। लेकिन आपको ये सब तो करना नहीं है। आपको कालेधन के खिलाफ भी नहीं लड़ना है बल्कि आपको माहौल बनाना है। आपको कालेधन के खिलाफ लड़ते हुए महज दिखना है। अपराध के खिलाफ लड़ाई क्या अपराधियों को साथ लेकर लड़ी जा सकती है? पूरे देश में क्या एक भी बड़ा कालाधन रखने वाला पकड़ा गया? आपके पूरे गणित के हिसाब से तो सारा पैसा बैंकों में आ गया। कहने का मतलब सब लोग ईमानदार हैं।
Dilip Khan : कालेधन का सबसे बड़ा अड्डा राजनीतिक पार्टियों का चंदा है। सरकार ने इसपर छूट दे दी। जितना बदलना है बदल लो। कर्रा फैसला है ये। भौत मज़बूत। बांगर सीमेंट जैसा।
राजनीतिक पार्टियों को नोट बदलने की छूट मिलेगी।
राजनीतिक पार्टियां RTI के दायरे में नहीं आएंगी।
राजनेता लाइन में नहीं लगेंगे।
राजनेताओं के घर में शादी के लिए करोड़ों रुपए पहुंच जाएंगे।
राजनीतिक पार्टियां संसद चलने नहीं देंगी।
राजनीतिक पार्टियां पक्ष-विपक्ष में बंटी रहेंगी।
राजनीतिक पार्टियां नोटबंदी के बावजूद ख़र्चीली रैलियां करवाने में सफल रहेंगी।
राजनेताओं के खानदान में किसी को भी कोई मुश्किल नहीं आई।
आपको क्या मिला चुन्नू बाबू? घंटा?
पत्रकार पदमपति शर्मा, मनो, कृष्णकांत, महेंद्र मिश्रा और दिलीप खान की एफबी वॉल से.