नोटबंदी : खाया-पीया कुछ नहीं, गिलास फोड़ा बारह आना

15 लाख करोड़ तक जमा हो गए बैंकों में, 97 प्रतिशत 1000 और 500 के खारिज किए नोट पहुंचे रिजर्व बैंक के पास, मात्र 47 हजार करोड़ ही बचे : खाया-पीया कुछ नहीं, गिलास फोड़ा बारह आना… ये कहावत मोदी सरकार की नोटबंदी पर पूरी तरह चरितार्थ होती है। खबरों की पुष्टि इन आंकड़ों से हो जाती है कि 30 दिसम्बर तक देशभर की बैंकों में 14.97 करोड़ रुपए मूल्य के 1000 और 500 के खारीज किए नोट जमा हो गए। नोटबंदी के वक्त रिजर्व बैंक ने वैसे तो साढ़े 14 लाख करोड़ के नोट चलन से बाहर करने का दावा किया था, जो बाद में बढ़कर 15.44 लाख करोड़ बताया गया। इस आंकड़े के मुताबिक भी मात्र 47 हजार करोड़ रुपए के नोट ही ऐसे रहे जो बैंकों में जमा नहीं हो पाए। हालांकि अभी भी कई लोग रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के बाहर अपने नोट बदलवाने के लिए खड़े हैं। इतना ही नहीं एक बड़ी राशि लोगों ने महंगा सोना खरीदने और प्रॉपर्टी सहित अन्य जगह खपा दी। इसका मतलब यह हुआ कि 97 प्रतिशत नोट जहां जमा हुए, वहीं बचे 3 प्रतिशत का भी बड़ा हिस्सा लोगों ने अपनी जुगाड़ के जरिए अलग-अलग तरीकों से खपा डाला।

ऐसे नहीं छोड़ेंगे मोदी जी, आपके झोले की तलाशी होगी!

सहारा की डायरी में पैसे लेने वालों में आपका भी नाम है मोदी जी, फिर आप मौन क्यों हैं? यदि आप निर्दोष हैं तो सहारा के खिलाफ कार्रवाई कराओ…

नोटबंदी की मयाद पूरी हो गई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आठ नवम्बर को इस नोटबंदी योजना की घोषणा की थी। उन्होंने जनता से 50 दिन का समय मांगा था। उनका कहना था कि 50 दिन बाद यदि स्थिति न सुधरी तो जनता जिस चौराहे पर चाहे उन्हें सजा दे दे। इसमें दो राय नहीं कि योजना सही थी पर बिना तैयारी के इस योजना को लागू करने पर आम आदमी को जो परेशानी हुई वह छिपी नहीं है। सबके बड़ा कलंक इस योजना पर यह लगा है कि बेईमानों को सबक सिखाने के लिए लाई गई इस योजना ने अब तक 100 से भी अधिक लोगों की कुर्बानी ले ली है। इस योजना में अभी तक किसी भी नेता और पूंजीपति का कुछ नहीं बिगड़ा।

लचर ‘द एण्ड’ के साथ ‘नोटबंदी’ की फिल्म फ्लॉप…

नोटबंदी की जिस फिल्म का 8 नवम्बर को मोदी जी ने धूम धड़ाके के साथ रात 8 बजे प्रदर्शन किया था उसके टाइटल तो बड़े आकर्षक थे… फिल्म जैसे-जैसे आगे बढ़ी तो उसकी पटकथा में तमाम झोल नजर आने लगे। फिल्म के जो सितारे थे वह थोड़े ही दिन बाद खलनायकों में तब्दील हो गए। सोशल मीडिया के भक्तों ने बैंकों के अधिकारियों और कर्मचारियों को सितारा बताते हुए उनकी तुलना सरहद पर खड़े जवानों की ड्यूटी से कर डाली। यह बात अलग है कि बैंकों के ये सितारे बाद में गब्बर सिंह निकले, जिन्होंने पिछले दरवाजे से काले कुबेर रूपी मोगेम्बो से सांठगांठ कर कतार में लगे तमाम मिस्टर इंडियाओं को मूर्ख बना दिया और परवारे ही नए नोट बैंकों से लेकर एटीएम से गायब होकर काले कुबेरों के पास जमा हो गए।

नोटबंदी से उद्योगों का दिवाला निकलना शुरू

Sanjaya Kumar Singh : इंडियन एक्सप्रेस ने आज पहले पन्ने पर (लीड के साथ) यह खबर Slowdown signal…. 16 top firms show sharp dip in advance tax छापी है। स्थिति की पुष्टि Peri Maheshwer की इस पोस्ट से भी होती है। और ये शुद्ध आंकड़े हैं। इंडियन एक्सप्रेस और पेरी महेश्वर स्थिति का आकलन करने के लिए ये आंकड़े दे रहे हैं तो जानकारों को पता ही होगा। बकलोली तो होती रहेगी। 

राजनीतिक दलों पर कृपा करके नोटबंदी की ऐसी तैसी कर दी मोदी जी ने

Padampati Sharma : राजनीतिक दलों पर कृपा से तो नोटबंदी की ऐसी तैसी हो जाएगी मोदी जी.. राजनीतिक दलों पर कृपा क्यों ? राजनीति से जो थोड़ी जानकारी रखता है उसे पता है कि राजनेताओं के यहां नोट गिनने की मशीने लगी है . वहां गिन कर रखे लाल – पीले बापू पार्टी के नाम से बैंकों में जमा हो जाएंगे और चूंकि जांच भी नहीं होनी है इसलिए कमीशन पर काले का सफेद धंधा चमक उठेगा. काला धन रखने वालों की तो इससे बांछें खिल उठी हैं. नेताओं को पूरा मौका दे दिया है सरकार ने. कुछ कीजिए मोदीजी ताकि इन लुटेरों पर अंकुश लगे. राजनीतिक दलों को भी जांच के दायरे में लाइए अन्यथा बहनजी, भाई जी, नेताजी, कुनबे वाले एंड संस और एंड ब्रदर्स तो रातों रात अकूत संपत्ति के मालिक हो जाएंगे. हवााला कारोबारियों की भी मौज हो गयी.सरकार के इस कदम से तो नोट बंदी की ऐसी-तैसी हो जाएगी.

ईमानदारी के इस पर्व में सबसे ज्यादा नकदी भाजपाइयों के पास पकड़ी गई

Sanjaya Kumar Singh : भ्रष्टाचार दूर करने और देश में ईमानदारी स्थापित करने के भाजपाई राष्ट्रवादी त्यौहार के 50 दिन जैसे-जैसे पूरे होने के करीब आ रहे हैं इसका क्रूर और असली चेहरा सामने आ रहा है। यह रंगपोत कर चेहरा चमकाने की कोशिश का वीभत्स रूप था। लोगों की जान लेकर भी छवि बनाने का क्रूर खेल। भक्तों और सरकार के हिसाब से ईमानदारी स्थापित हो चुकी है और कालाधन लगभग खत्म हो गया है।

नोटबंदी के शोर में खो गया एक क्रान्तिकारी फैसला

नोटबंदी! नोटबंदी! और नोटबंदी! आठ नवम्बर की रात आठ बजे से देश में यदि किसी बात की चर्चा है, तो सिर्फ नोटबंदी की.और हो भी क्यों नहीं! नोट के लिए बैंकों और एटीएमों के सामने पहले जहां एक समय में दस-पांच लोग नजर आते थे वहां अब पांच-पांच सौ तक लोग खड़े दिख रहे हैं. इस क्रम में शताधिक लोग प्राण गवां चुके हैं. उद्योग-धंधे उजड़ रहे हैं और गाँव छोड़कर दो पैसा कमाने के लिए शहर आये लोग बेरोजगार हो होकर पुनः गाँव की ओर रुख कर रहे हैं.यह सब नोटबंदी की वजह से हो रहा है, जिसकी चपेट में आने से आम से लेकर खास,कोई भी नहीं बच पाया है. ऐसे में जाहिर है नोटबंदी को छोड़कर और किसी बात की चर्चा हो ही नहीं सकती.बहरहाल नोटबंदी से आम जनजीवन बुरी तरह प्रभावित और उद्योग- धंधे ही चौपट नहीं हो रहे हैं, इसकी शोर में दूसरे जरुरी मुद्दे भी खो गए हैं, जिनमें शीर्ष पर है ‘समान काम के लिए समान वेतन’ का सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला.

राजनीतिक दलों के खाते में पड़े काले धन का क्या कर रहे हैं प्रधानमंत्री जी!

यह देश का दुर्भाग्य ही है कि काले धन के लिए सड़क से लेकर संसद तक बवाल काटने वाले राजनीतिक दलों के खाते में पड़े काले धन का कुछ बिगड़ता नहीं दिख रहा है। सरकार हर जगह बिना हिसाब-किताब वाले धन पर जुर्माना लगाने की बात कर रही है पर राजनीतिक दलों के खाते में 500 और 1, 000 रुपये के पुराने नोटों में जमा राशि पर आयकर नहीं लगाएगी।  इसका मतलब है कि आप किसी भी नाम से राजनीतिक दल का रजिस्ट्रेसन करा लीजिये और फिर इसके खाते में चाहे कितना काला धन दाल दीजिए। कोई पूछने वाला नहीं है। देश में हजारों राजनीतिक दल हैं। कितने दल चुनाव लड़ते हैं, बस नाम मात्र के।  अधिकतर दल तो काले धन का सफेद करने तक सीमित हैं। ऐसा नहीं कि चुनाव लड़ने वाले दलों के खाते में काला धन नहीं हैं। आज की तारीख में तो राजनीतिक दलों के खाते में अधिकतर धन तो काला ही है। चाहे किसी कारपोरेट घराने ने दिया हो या फिर किसी प्रॉपर्टी डीलर ने या फिर किसी अधिकारी ने। यही हाल देश में कुकुरमुत्तों की तरह खुले पड़े एनजीओ का है।

भ्रष्टाचारियों के लिए वरदान साबित हुई नोटबंदी

कालाधन पर अंकुश के लिये लागू की गई नोटबंदी योजना आम जनता, मजदूर, साधारण व्यापरी, किसानों के लिए अभिशाप साबित हो रही है, वहीं भ्रष्ट व्यवस्था के चलते बैंक अफसरों, दलालों, माफियाओं के लिये यह योजना भी सोने का अण्डा देने वाली मुर्गी साबित हुई है। जहां आम जनता को कई-कई दिनों तक लाइनों में लगने के बाद भी बैंक और एटीएम से हजार रूपये भी नसीब नहीं हो रहे हैं वहीं दलाल-माफियाओं तक करोड़ों की नई करेंसी भण्डार के रूप में जमा हो गई है जो छापेमारी के दौरान जगह-जगह से बरामद हो रही है। जिससे मोदी सरकार की कार्यप्रणाली पर प्रश्न चिन्ह लगना शुरू हो गया है।

आजतक, अमर उजाला, जनसत्ता, न्यूज़ एक्स आदि ने जो ब्लंडर किया, उसे बता रहे वरिष्ठ पत्रकार ओम थानवी

Om Thanvi : नोटबंदी से ये कमाल का भ्रष्टाचार उन्मूलन हुआ। लोग क़तारों में खड़े हैं, कुछ जान पर खेल रहे हैं और देश भर में जगह-जगह से नए नोटों की लाखों-करोड़ों में बरामदगी की ख़बरें आ रही हैं। हालात ऐसे हैं कि नए नोटों की बरामदगी की किसी भी रक़म पर लोगों को अविश्वास नहीं होता। कल जयपुर में 1.57 करोड़ के नोट (1.38 करोड़ के नए) पकड़े गए, दशमलव जाने कहाँ उड़ गया और आजतक, अमर उजाला, जनसत्ता, न्यूज़ एक्स आदि में 157 और 138 करोड़ की ख़बर शाया हो गई।

बैंक-एटीएम की क़तार में मरने वाले भारतीयों में से 91 वरिष्ठ नागरिक थे

Uday Prakash : अभी जानकारी मिली कि नोटबंदी के बाद एटीएम और बैंकों के सामने क़तार में खड़े लोगों में से जो १२०-१५० की मौत हुई है, उनमें से ९१ वरिष्ठ नागरिक थे। यानी वे नागरिक जिनकी उम्र ६० वर्ष से ऊपर थी। मैं और मेरी पत्नी, दोनों, वरिष्ठ नागरिक हैं। क्या प्रधानमंत्री, गृहमंत्री, वित्तमंत्री वग़ैरह और उनकी पार्टी कभी इस देश के वृद्धजनों के लिए भी कभी सोचती है?

बनारस में पेमेंट के लिए स्वाइप मशीन मांगने वाले वकील को पेट्रोल पंप कर्मियों ने पीटा (देखें वीडियो)

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के संसदीय क्षेत्र बनारस में कैशलेस व्यवस्था की उड़ी धज्जियां… मांगा स्वाइप मशी, हुई पिटाई…. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जहां एक ओर कैशलेस व्यवस्था की बात कर रहे तो वहीं दूसरी ओर उन्हीं के संसदीय क्षेत्र बनारस में बीएचयू स्थित पेट्रोल पंप पर 13 दिसंबर मंगलवार की शाम एक अधिवक्ता को स्वाइप मशीन मांगना पड़ा भारी…

मोदी ने पहाड़ खोद डाला लेकिन चुहिया भी नहीं निकाल सके : वैदिक

नोटबंदी के बाद अब नगदबंदी… हमारी सरकार की नाव नोटबंदी के भंवर में फंसती ही चली जा रही है। ऐसा लग रहा है कि आजकल उसके पास कोई काम ही नहीं है, सिवाय इसके कि वह नए नोटों के लिए रोज़ मार खाती रहे, नए और पुराने नोटों के जखीरों को पकड़ती रहे, भ्रष्टाचारी बैंकरों पर जांच और मुकदमे चलाए, 40 करोड़ बैंक खातों की जांच करवाए और जन-धन खाताधारियों को नई नैतिकता सिखाए। अब जबकि सारा काला धन सफेद हो चुका है और जितना आयकर पहले मिलता था, उसके भी घटने की आशंका हो रही है तो हमारी सरकार अपनी आंखें रगड़ रही है, हाथ मल रही है और अपने बाल नोंच रही है। उसे समझ नहीं पड़ रहा है कि अब वह कौन सी बंडी बदले और कौनसा बंडल मारे? डूबती नाव को तिनके का सहारा ! अब वह नगदबंदी के तिनके को पकड़कर लटक रही है।

नोटबंदी के चलते परेशान जनता का संयम खत्म हो रहा है : विजय विद्रोही

Vijay Vidrohi : पश्चिमी यूपी के कुछ इलाकों का दौरा करके लौटा हूं. नोटबंदी के चलते लोगों की परेशानियां बढ़ने लगी है और संयम खत्म हो रहा है. लोगों का कहना था कि पहले वह खुश थे कि काला धन सामने आएगा लेकिन अब ऐसा संभव नहीं लग रहा है. लोग हैरान है कि उन्हे तो दो हजार के एक नोट के लिए घंटों लाइन में खड़ा होना पड़ रहा है लेकिन टीवी पर रोज ही करोड़ों रुपए के दो हजार के नये नोट पकड़े जाने की खबरे दिखाई जा रही हैं.

Paytm के प्रचार का सालाना बजट 600 करोड़ रुपए!

Shrikant Asthana : Paytm के मालिक शर्मा जी का आज इंटरव्यू पढ़ रहा था The Hindu (नाम पर मत जाइएगा) में। इसमें इन्होंने खुलासा किया कि इनका प्रचार का सालाना बजट 600 करोड़ रुपए का है। यानी 50 करोड़ रुपए महीना। यह आएगा कहां से आपने कभी सोचा भी नहीं होगा। यह आपसे ही वसूला जाएगा 4% transaction charge लगा कर।

शेखर गुप्ता मज़ेदार निरर्थक शख़्सियत हैं!

Uday Prakash : शेखर गुप्ता मज़ेदार निरर्थक शख़्सियत हैं। अभी उन्होंने नोटबंदी की तुलना होमियोपैथी के साथ की। होमियोपैथी जिस रोग को ख़त्म करना चाहता है, पहले उसी रोग को बढ़ाता है। मरीज़ को इंतज़ार करना पड़ता है। 🙂 तो भाई साहेब! एलियोपैथी में क्या बुराई है ? आख़िर ‘सर्जिकल ऑपरेशन’ जैसा शब्द तो यहीं पाया जाता है। 🙂 पलट क्यों रहे हैं अब?

मोदी मध्यावधि चुनाव करवा लें, नोटबंदी पर जनमंत संग्रह हो जाएगा : वैदिक

सत्तारुढ़ दल भाजपा के सबसे वरिष्ठ सांसद श्री लालकृष्ण आडवाणी ने पक्ष और विपक्ष दोनों को आड़े हाथों लिया है। उन्होंने विपक्ष के द्वारा नोटबंदी पर किए जा रहे हो-हल्ले को जितना अनुचित बताया है, उतना ही दोषी उन्होंने लोकसभा-अध्यक्षा और संसदीय कार्य मंत्री अनंत कुमार को भी ठहराया है। आडवाणी अपने वाणी-संयम के लिए विख्यात हैं, फिर भी उन्हें लोकसभा अध्यक्षा सुमित्रा महाजन की आलोचना करनी पड़ी है।

नोटबंदी के महीने भर बाद छंटनी की मार अब मीडिया इंडस्ट्री पर भी!

नोटबंदी के महीने भर बीतते बीतते छंटनी की मार देने के लिए मीडिया घरानों ने भी तैयारी करनी शुरू कर दी है. मीडिया इंडस्ट्री ने विज्ञापन और आय घट जाने के कारण छंटनी और सेलरी कटौती जैसे रास्ते पर चलने का संकेत देना शुरू कर दिया है. टाइम्स आफ इंडिया के मालिक विनीत जैन ने तो बाकायदा ट्वीट कर के सेलरी कट की बात को सार्वजनिक तौर पर कह दिया है.

आरबीआई गर्वनर की प्रेस कांफ्रेंस से ‘इकोनॉमिस्ट’ और ‘बीबीसी’ के पत्रकार को बाहर निकाला

रिजर्व बैंक आफ इंडिया के गर्वनर उर्जित पटेल की प्रेस कांफ्रेंस से बिना बताए द इकोनॉमिस्ट और बीबीसी के पत्रकारों को बाहर निकाल दिया गया. इससे नाराज़ द इकोनॉमिस्ट के पत्रकार स्टैनले पिग्नल ने ट्वीट करके अपना दुख और क्षोभ प्रकट किया. उन्होंने एक ट्वीट में लिखा- ”रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया की प्रेस कांफ्रेंस में मुझे यानि द इकोनॉमिस्ट को नहीं बुलाया गया. मुझे अंदर जाने से रोक दिया गया. पारदर्शिता के लिहाज से एक दुखद दिन है मेरे लिए.’

‘इकोनॉमिस्ट’ पत्रिका ने नोटबंदी को बर्बादी लाने वाला एक अधकचरा कदम बताया

अरुण माहेश्वरी

Arun Maheshwari : मोदी का घपला Modi’s bungle… भारत में मोदी के नोटबंदी के क़दम को ‘इकोनॉमिस्ट’ पत्रिका ने अपने ताज़ा अंक (3 दिसंबर) में अच्छे उद्देश्य से बर्बादी लाने वाला एक अधकचरा कदम बताया है। इस लेख में दुनिया के उन देशों का उल्लेख है जिनकी सरकारें ऐसी कार्रवाई करके अपने देशों को बर्बाद कर चुकी हैं। आज तक एक भी देश को ऐसे क़दम से कोई लाभ नहीं हुआ है। “फिर भी मोदी ने उनसे कोई सबक़ नहीं लिया और एक ऐसा घपला कर दिया जिससे उसके घोषित उद्देश्यों के पूरा होने पर भी देश को अनावश्यक नुक़सान होगा।”

किसी देश का प्रधानमंत्री इतना असहाय-निरुपाय नहीं हो सकता : वेद प्रताप वैदिक

मुरादाबाद की अपनी सभा में नरेंद्र मोदी फिर बरसे। अपने विरोधियों पर बरसे। लेकिन मोदी की भी क्या गजब की अदा है? जहां विरोधी उनके सामने बैठे होते हैं याने संसद, वहां तो वे मौनी बाबा बने रहते हैं और अपने समर्थकों की सभा में वे दहाड़ते रहते हैं। वे कहते हैं कि लोग उन्हें गुनाहगार क्यों कहते हैं? मोदी को गुनाहगार कौन कह रहा है? मैंने अपने परसों के लेख में यही लिखा था कि यह नोटबंदी एक गुनाह बेलज्जत सिद्ध हो रही है। याने इसका कोई ठोस लाभ न अभी दिख रहा है और न ही भविष्य में। हां, आम लोग बेहद परेशान हैं। वे लोग, जिनके पास काला धन तो क्या, सफेद धन ही इतना होता है कि वे रोज़ कुआ खोदते हैं और रोज पानी पीते हैं। नोटबंदी के पीछे मोदी की मन्शा पर किसी को भी शक नहीं करना चाहिए। यह देशभक्तिपूर्ण कार्य हो सकता था। इससे देश का बड़ा कल्याण हो सकता था लेकिन इसे बिने सोचे-विचारे लागू कर दिया गया।

आपने तो व्यापारी को चोर बना डाला मोदी जी!

निरंजन परिहार
नोटबंदी ने सारा गुड़ गोबर कर दिया। व्यापारियों को चोर बना दिया। ज्वेलरी के धंधे में जबरदस्त धमक आई थी। दीपावली की चमक तो बाद में आई। लेकिन ज्वेलरी का धंधा दीपावली से कुछ दिन पहले ही चमकना शुरू हो गया था। देश भर के ज्वेलरों ने राहत की सांस ली थी। साल भर से ज्वेलरी बाजार में भयंकर मंदी थी। ग्राहक गायब थे। तो ऊपर से एक्साइज ड्यूटी के विरोध में दो महीने तक बाजार बंद रहे, ज्वोलरो को उसका भी मलाल था। लेकिन गोल्ड के भाव जैसे ही 30 हजार के पार जाने लगे, तो भी बाजार में ग्राहकी खुली। व्यापारियों के चेहरे की रौनक लौटी। सोचा था, साल भर में भले ही कुछ नहीं कमाया, पर अब तो बाजार चल निकला। लेकिन दूसरे दौर की ग्राहकी खुलते ही 8 नवंबर को जैसे ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नोटबंदी का ऐलान किया, बाजार धम्म से धड़ाम हो गया। व्यापारी चारों खाने चित और ज्वेलरी की चमक चिढ़ाने लगी। मुंबई के जवेरी बाजार से लेकर जयपुर के जौहरी बाजार और नागपुर के इतवारी बाजार व दिल्ली के सराफा बाजार आदि देश के सबसे बड़े ज्वेलरी मार्केट सन्नाटे से सराबोर हैं। हर व्यापारी की जुबान पर सवाल सिर्फ एक ही है कि नोटबंदी के बाद धंधे का क्या होगा।

नौसिखिया प्रधानमंत्रीजी बुरी तरह फंस गए हैं : वेद प्रताप वैदिक

नरेंद्र मोदी की नाव भंवर में हैं। 17 दिन बीत गए लेकिन कोई किनारा नहीं दीख पड़ रहा है। खुद मोदी को खतरे का अहसास हो गया है। यह नाव मझधार में ही डूब सकती है। वरना मोदी-जैसा आदमी, जो 2002 में सैकड़ों बेकसूर लोगों की हत्या होने पर भी नहीं हिला, वह सभाओं में आंसू क्यों बहाता? खुद के कुर्बान होने का डर जो है। संसद के सामने दो हफ्तों से घिग्घी क्यों बंधी हुई है? यह बताता है कि मोदी पत्थरदिल नहीं है, तानाशाह नहीं है। वह इंदिरा गांधी या हिटलर नहीं है। वह सख्त दिखने में है, बोलने में है लेकिन अंदर से काफी नरम है। क्या आपने कभी हिटलर, मुसोलिनी या इंदिरा गांधी को सार्वजनिक रुप से रोते हुए देखा है या सुना है?

इधर नोटबंदी, उधर 63 कंपनियों का 7000 करोड़ रुपये का कर्ज माफ

Nitin Thakur : भला हो SBI का.. जो आज 63 कंपनियों के कर्ज़ माफ कर दिए. अब इस खबर के बाद आपको समझने में आसानी होगी कि क्यों नोटबंदी की व्यवस्था ही नहीं बल्कि उसके पीछे की नीयत में भी खोट है. बैंकों के पास कर्ज़ डुबो देनेवाले पूंजीपति मालिकों को फिर से देने को पैसा नहीं है. बस इसीलिए आपकी छोटी बचत को इकट्ठा करके उन्हें आसान ब्याज़ पर हजारों करोड़ देने की तैयारी है. जब तक इकट्ठा होते हैं आप कृपया व्रत करके घंटों लाइन में खड़े रहें. इत्मीनान से रहिए.. राष्ट्र निर्माण हो रहा है. और हां.. कर्ज माफी पानेवालों में वो भगौड़ा माल्या भी है.

पीएम को एक पत्रकार का खुला पत्र : मोदी जी, हालात अब बेकाबू हो रहे हैं

Abhishek Satya Vratam : प्रधानमंत्री जी, आपने 500, 1000 के नोट बंद करने के अपने फ़ैसले पर तालियाँ तो बजवा लीं लेकिन कुछ सवाल तो अब भी अनुत्तरित हैं ! जिनके घर में शादी है वे क्या करें? पैसे का इंतज़ाम कैसे होगा? इस सवाल पर आपके इकोनॉमिक अफ़ेयर्स सेक्रेटरी साहब बार-बार कन्नी काट जा रहे हैं। प्लीज़, थोड़ा उनसे मामले को समझिए और उन्हें कोई सॉलिड समाधान देकर ही प्रेस कॉन्फ़्रेंस करने भेजिए।

गुंडों का रवीश कुमार को धमकाना… एबीपी न्यूज-आजतक जैसे चैनलों को पब्लिक का दुःख न दिखना

Virendra Yadav : तीन दिनों से लगातार देख रहा हूँ एनडीटीवी पर. रवीश कुमार अपनी टीम के साथ बैंकों के सामने लगी कतारों, नोटों को लेकर अफरा तफरी और आम जनता की तकलीफों को ग्राऊंड जीरो से प्राईम टाईम रिपोर्ट में पेश कर रहे हैं. हर कहीं दो चार लोग आकर उन्हें धमकाते हुए यह कहते दीखते हैं कि ‘जनता खुश है, सब ठीक है आप गलत रिपोर्ट पेश कर रहे हो’. आज बुलन्दशहर की रिपोर्टिंग के दौरान यही हुआ. उद्विग्न रवीश को एनडीटीवी के दर्शकों से यह कहना पड़ा कि ‘अगर यही सब चलता रहा तो जल्द ही टीवी पर आप सच्चाई नहीं देख पायेंगे’. सच का गला घोंटने की यह दबंगई हिटलर के दौर के उन ‘ब्राउन शर्ट’ दस्तों की याद दिलाती है जो फासीवाद के सफरमैना की भूमिका में थे. सचमुच हालात तेजी से बिगड़ रहे हैं. इन पदचापों को न सुनने की भूल आत्मघाती होगी.

रवीश जैसे पत्रकार का ये हाल है तो बाकी रिपोर्टर्स और स्थानीय पत्रकारों का क्या होता होगा?

Rakesh Srivastava : रवीश को धमकाने का काम प्रायोजित है ऐसा मुझे नहीं लगता। बैंको के बाहर की हर लाईन में बहुत लोग प्रधानमंत्री के इस कदम की सराहना करने वाले भी मिलते हैं, इस सच्‍चाई को झुठलाया नहीं जा सकता। लेकिन, यह भी अपने आप में बहुत बड़ा सवाल है कि मोदी जी के समर्थक टाईप अधिकांश लोग बुली करने टाईप ही क्‍यों होते हैं। दो चार बुली करने वाले दसियों साधारण लोग की आवाज़ को दबा देते हैं। ऐसा सब जगह हो रहा है। इस प्रवृति को एक्‍सपोज कर रवीश ने अच्‍छा किया।

साढ़े चार घंटे लाइन में लगे दिल्ली के इन पत्रकारों को नहीं मिला कैश

Shashi Bhooshan Dwivedi : करीब तीन सौ की लाइन थी। मैं और ‘हिंदुस्तान’ के ही अतुल कुमार भी लाइन में लगे थे, सुबह नौ – साढ़े नौ से ही। मैंने सुबह अरुण कुमार जेमिनी को भी फोन किया। वे भी आने वाले थे। जाने क्यों नहीं आए। अतुल ने बताया कि वे तो तीन दिन से ही लाइन में लग रहे हैं और जब तक गेट तक पहुँचते हैं या तो कैश खत्म हो जाता है या शटर डाउन। आज भी यही हुआ। साढ़े चार बजे तक हम दोनों गेट तक पहुँच गए और बैंक बंद।

आजतक वाली श्वेता सिंह की मूर्खता का वीडियो सोशल मीडिया पर हुआ वायरल, आप भी देखें

टीवी जर्नलिस्ट कई बार ऐसी मूर्खता कर जाते हैं कि उसे देख गुस्सा के साथ साथ जोरदार हंसी भी आती है. ताजा मामला श्वेता सिंह का है जो आजतक न्यूज चैनल की एंकर और रिपोर्टर हैं. खुद को बेहद काबिल मानने वाली इस महिला एंकर ने ऐसी मूर्खता की है कि लोग खूब मजे ले लेकर वीडियो देख रहे हैं और हंस रहे हैं. कायदे से आजतक प्रबंधन को इस गल्ती के लिए श्वेता सिंह को बर्खास्त कर देना चाहिए, साथ ही उस रिपोर्टर को भी जिसने ये फर्जी सूचनाएं श्वेता तक पहुंचाईं.

रवीश और उनकी टीम को मुट्ठी भर मोदी भक्त नुमा असामाजिक तत्व धमकाने में जुटे!

Tarun Vyas : मैं रवीश के दीवानों वाली सूची में शामिल नहीं हूं और न होना चाहता हूं। लेकिन रवीश कुमार की पत्रकारिता के अंदाज़ से प्रभावित ज़रूर हूं। रवीश का गुरुवार और शुक्रवार का प्राइम टाइम जिस किसी ने भी देखा मैं उन से दो सवाल पूछना चाहता हूं। क्या बैंकों में लगी कतारें और कतारों में भूखे प्यासे आंसू बहाते लोग झूठे हैं? और क्या नरेंद्र मोदी का रुंधा गला ही देशभक्ति का अंतिम सत्य है ? मेरे सवाल आपको नकारात्मक लग सकते हैं क्योंकि जब दाल 170 रुपए ख़ामोशी के साथ ख़रीदी जा रही हो तो इस तरह के सवालों का कोई मोल नहीं होता।

किसानों के दुख-दर्द को तुम क्या जानो मोदी बाबू (देखें वीडियो)

पांच सौ तथा एक हज़ार रूपये के नोट बंद करने के सरकार के फैसले से देश का अन्नदाता किसान परेशान है। हाथरस जिले में भी किसानों को अपनी गेहूं-आलू-जौ आदि की फसलों की बुवाई के लिए बीज तथा खाद का इंतजाम करने में मुश्किल हालातों का सामना करना पड़ रहा है। किसानों का कहना है कि फसलों की बुवाई के लिए बीज तथा खाद के लिए उनके पास पैसा नहीं है। पुराने नोटों से उन्हें बाजार में सामान नहीं मिल रहा है। ऐसे में फसलों की बुवाई पंद्रह से बीस दिन लेट हो गयी है। किसानों का ऐसे में कैसे काम चलेगा, अब तो यह भी उनकी समझ में नहीं आ रहा है।

ग्रामीणों के दर्द को तुम क्या जानो मोदी बाबू (देखें वीडियो)

हाथरस : पांच सौ तथा एक हज़ार रुपये के नोट बंद करने के मोदी सरकार के फैसले से यूपी के हाथरस जिले में ग्रामीणों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। ग्रामीण अपने पुराने नोट बदलने के लिए और उन्हें जमा करने के लिए छः-सात किलोमीटर चलकर बैंकों पर आ रहे है जहां पहले से ही लंबी लाइनें लगी है। इन लाइनों में धक्का मुक्की के बाद भी ग्रामीणों को अपने नोट बदलने तथा जमा करने में सफलता नहीं मिल पा रही है।

टीवी टुडे ग्रुप के पत्रकार संजय सिन्हा ने भी नोटबंदी के तौर-तरीके को कठघरे में खड़ा किया

Sanjay Sinha : मैं अगर प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी का सलाहकार होता तो जिस दिन पांच सौ और हज़ार रूपए के नोट बंद हुए उस दिन उन्हें सलाह देता कि आप भाषण में यह मत बोलिएगा कि रात बारह बजे के बाद पांच सौ और हज़ार के नोट रद्दी के टुकड़े हो जाएंगे। मैं उनसे कहता कि आप सिर्फ नोट बंद करने का ऐलान कीजिए और जनता को भरोसा दीजिए कि उनके पास जो नोट हैं, उन्हें आप इतने दिनों के भीतर बैंक में जमा करा दें। ये नोट रात 12 बजे के बाद बेशक आम प्रचलन में नहीं रहेंगे पर आप बिल्कुल परेशान न हों, इस नोट पर रिजर्व बैंक की ओर से धारक को इतने रूपए देने का वचन दिया गया है, उस वचन का पालन होगा। हां, इतना ध्यान रहे कि आपसे आयकर वाले जरूर पूछ सकते हैं कि आपके पास ये नकदी आई कहां से। इतना कहने भर से स्थिति काफी आसान हो जाती।

जानिए, नोटबंदी को लेकर ओशो ने कई साल पहले एक प्रवचन में क्या कहा था!

तुम जिसको पैसा समझते हो वह एक मान्यता है अगर किसी दिन सरकार बदल जाए और रातोंरात यह एलान किया जाए कि फलाँ-फलाँ नोट नहीं चलेगा तो तुम क्या करोगे ?
मान्यता को बदलने में देर कितनी लगती है?