जनवरी 2009 की बात है। पहली बार साईं बाबा के दर्शन के लिए सपरिवार शिरडी गया था। वहां से शनि शिंगणापुर भी गया था, क्योंकि बहुत नाम सुना था। ये भी सुना था कि यहां किसी घर में ताला नहीं लगता। जब हमारी गाड़ी शनि शिंगणापुर पहुंची तो मंदिर के पास पार्किंग में रुकी। वहां गजब की लूट मची थी। लोगों से जबरन प्रसाद के नाम पर पैसे वसूले जा रहे थे। सबसे बड़ा पाखंड ये था कि जहां पार्किंग में गाड़ी रुकती थी, वहां गंदी सी बदबूदार जगह में पानी की टंकी लगी थी। पार्किंग की तयशुदा दुकान से पीले वस्त्र लेने पड़ते थे। एक जिसे पहनकर आप उसी टंकी के नीचे लगी टोटियों से नहाएं और दूसरा जिसे आप पहनें। दोनों का किराया अच्छा खासा। सबको नहाकर पीले कपड़े पहनकर मंदिर जाना होता था। वहां धर्म के नाम पर गुंडागर्दी करने वाले एक आदमी से मेरी बकझक भी हो गई। मंदिर में जाने के बाद पता चला कि न तो वहां प्रसाद की जरूरत है और ना ही पीला गमछा पहनकर आने की।
मैंने दिल्ली लौटकर एक लेख लिखा, तब फेसबुक का चलन नहीं था। लेख छपा ‘प्रथम प्रवक्ता’ पत्रिका में। उसके बाद भड़ास4मीडिया Bhadas4media, विस्फोट डॉट कॉम समेत दर्जन भर वेबसाइट्स ने वो लेख उठाया। कुछ अखबारों ने भी उसे छापा। संस्मरणात्मक शैली में लिखे लेख में मैंने साफ लिखा था कि इन लुटेरों की वजह से शनि शिंगणापुर धाम बदनाम हो रहा है, जिसकी जिम्मेदारी से मंदिर प्रशासन बच नहीं सकता। शायद कुछ मिलीभगत भी हो।
मेरे उस लेख की धमक शनि शिंगणापुर मंदिर ट्रस्ट तक भी पहुंची। मंदिर प्रशासन ने ऐतिहासिक फैसला लेकर फौरन एक्शन किया। जितनी भी पार्किंग है, सबमें बनी टंकियों और चाहरदीवारी पर बुलडोजर चलवा दिया। धर्म के नाम पर धंधेबाजी करने वालों को भगा दिया। ट्रस्ट के ट्रस्टी ने मुझे बाकायदा फोन किया, शनि शिंगणापुर आने का न्योता दिया। कहा कि यात्रा का खर्च वो उठाएंगे। बस मैं नई व्यवस्था देख लूं। तब मैं गया नहीं। उसके दो-तीन साल बाद गया, देखा तो वहां की किस्मत ही बदली हुई थी। टैक्सी वाला पार्किंग में ले जाता। बोलता कि अगर आप चाहें तो यहां से प्रसाद ले सकते हैं। कोई जबर्दस्ती नहीं, सब आपकी मर्जी पर। मंदिर में जाने से पहले नहाने, पीले कपड़े पहनकर जाने का कायदा खत्म हो चुका था। पिछले साल भी शिरडी और शनि शिंगणापुर गया था। कोई पंगा नहीं, कोई जोर जबरदस्ती नहीं। सुधर गया शनि शिंगणापुर धाम। मैं इसका कोई क्रेडिट क्लेम नहीं करना चाहता, बस मंदिर ट्रस्ट का शुक्रगुजार हूं कि उन्होंने मेरे ध्यान दिलाने पर फौरन एक्शन लिया।
कल मैंने विंध्याचल में मां विंध्यवासिनी के मंदिर में पंडे रूपी गुंडों पर पोस्ट लिखी थी, जिसकी प्रतिक्रियाओं से अभिभूत हूं। कुछ दोस्तों ने लिखा कि पहले से बताते तो बढ़िया इंतजाम करवाते। मेरा कहना ये है कि ये पोस्ट मैंने अपनी परेशानी की वजह से नहीं लिखी। मैं चाहता तो वैसे भी वीआईपी व्यवस्था में दर्शन कर सकता था। मेरा मानना है कि ईश्वर के दरबार में आम आदमी की तरह ही दर्शन करना चाहिए, जिससे किसी श्रद्धालु को कष्ट ना हो। मेरी पोस्ट का मकसद सिर्फ ये था कि विंध्याचल धाम को बदनाम करने वाले इन अवैध पंडों की मनमानी पर लगाम लगे। पंडा समाज और विंध्याचल प्रशासन इन पर सख्ती करे, इनके चंगुल से मां विंध्यवासिनी को आजाद करे। वैसे ही, जैसे शनि शिंगणापुर मंदिर ट्रस्ट ने बरसों से चली आ रही गुंडागर्दी पर रातोंरात बुलडोजर चलवा दिया था। गूगल पर शनि शिंगणापुर की 2009 से पहले की तस्वीरें देखेंगे तो वहां सभी दर्शनार्थी पीली धोती में नजर आएंगे। लेकिन मई 2009 के बाद आपको शनि शिंगणापुर की ऐसी कोई तस्वीर नहीं दिखेगी।
मार्च 2009 में शनि शिंगणापुर पर लिखा मेरा लेख वक्त हो तो जरूर पढ़िएगा। Bhadas4media पर छपे लेख का लिंक ये है-
इन्हें माफ करना शनिदेव
आजतक न्यूज चैनल में वरिष्ठ पद पर कार्यरत पत्रकार विकास मिश्र की एफबी वॉल से.
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अशोक कुमार
January 23, 2019 at 4:40 pm
शनी शिगनापुर में पीले वस्त्र का तो नहीं किंतु पार्किंग से तेल व अन्य प्रसाद न लेने पर पार्किंग के अंदर की दुकान वाले झगड़ा जरूर करते हैं।
पिछले साल इसी बात को लेकर मेरी भी दुकान वाले से बहस हुई थी।