तीन दिन पहले हमने आमिर खान की फिल्म पीके देखी। उसी दिन इस पर लिखने का मन था, पर अचानक हमारे इंटरनेट ने बेवफाई कर दी और तीन के लिए वह मौत के आगोश में चला गया। अब जाकर उनका पुनर्जन्म हुआ है और हमें समय मिला है तो सोचा चलो यार उस दिन की कसर पूरी कर ली जाए। पीके को लेकर लंबा विवाद प्रारंभ हो गया है। वैसे तो इस फिल्म को लेकर पहले से ही आमिर की पहली तस्वीर को लेकर विवाद हुआ है, लेकिन फिल्म देखने के बाद जहां लगा कि उस तस्वीर को लेकर ऐसा विवाद करना बेमानी है, वहीं इस बात को लेकर अफसोस हुआ कि आमिर की यह फिल्म परेश रावल की फिल्म ओ माय गाड के आस-पास भी नहीं फटक सकी।
दरअसल इस फिल्म में भी वही सब दिखाने और बताने का प्रयास किया गया है जो ओ माय गाड में बताया गया है। लेकिन परेश रावल की फिल्म पूरी तरह से दर्शकों को बाँधे रखती है और उनकी फिल्म में एक भारी गंभीरता है, लेकिन आमिर की फिल्म में गंभीरता के स्थान पर कामेडी है। इस कामेडी के कारण फिल्म में उतना वजन नहीं लगता है। अब यह बात अलग है कि आमिर के बड़े स्टार होने के कारण फिल्म कमाई का रिकार्ड बना ले, लेकिन फिल्म परेश रावल की ओ माय गाड का मुकाबला नहीं कर सकती है। अगर राजू हिरानी चाहते तो आमिर को दूसरी दुनिया का इंसान बताने की बजाए, अपनी इसी दुनिया का इंसान भी बता सकते थे, परेश रावल की ओ माय गाड की तरह। ऐसा करने से उनको आमिर खान का वह नग्न सीन भी फिल्माने की जरूरत नहीं पड़ती, लेकिन लगता है कि फिल्म को पहले से ही विवाद में डालकर प्रचार का फंडा अपनाने के लिए ही आमिर को दूसरे ग्रह का प्राणी बनाने का काम किया गया है।
खैर जो भी हो, फिल्म में अपने देश के समाज में फैले धर्म के नाम पर धंधा करने वालों पर करारा तमाचा है। इसी के कारण फिल्म का विरोध हो रहा है। अब किसी की दुकानदारी पर आप ताला लगाने का काम करेंगे तो उनका तिलमिलाना तो लाजिमी है। क्यों कर कोई धर्म के नाम पर दुकान चलाने वालों के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट नहीं जाता है? अपने देश में मंदिरों में लोगों की आस्था के साथ खिलवाड़ के अलावा कुछ नहीं होता है। बड़े मंदिरों में आप फोटो नहीं खींच सकते हैं। भगवान के दर्शन तभी होंगे जब आप पैसे खर्च करेंगे। हम कुछ समय पहले पूरी गए तो वहां पर पंडे ऐसा ही काम कर रहे थे। अंदर के दरवाजे से भगवान के दर्शन कराने के लिए सौ रुपए मांग रहे थे। हमारा खूब विवाद हुआ है। बाद में जब भगवान के कपाट खोले गए तो धर्म के ठेकेदारों ने तो दरवाजे के बीच में एक पर्दा लगा दिया था ताकि भगवान के पूरे दर्शन न हो सके और उनकी अंदर की दुकानदारी चलती रहे।
क्यों कर ऐसी दुकानें चलाने वालों के खिलाफ सरकार कुछ नहीं करती है? क्यों कर इनके खिलाफ लोग कोर्ट के दरवाजे तक नहीं जानते हैं? हमने कुछ वकील मित्रों से इस संबंध में चर्चा की थी तो उनका कहना था कि मंदिरों में कैमरा और मोबाइल न ले जाने देने के पीछे का कारण मंदिरों की सुरक्षा है। हम कहते हैं कि ऐसा करने से क्या आप मंदिरों पर हमला करने वालो को रोक सकते हैं? ऐेसा करके आप आतंकियों को नहीं रोक रहे हैं, बल्कि देश के नागरिकों के अधिकारियों का हनन कर रहे हैं। एक सबसे बड़ी तो यह है कि ओ माय गाड और पीके जैसी चाहे कितनी फिल्में बन जाए, इस देश में होना वही है जो धर्म के ठेकेदार चाहते हैं, क्योंकि हमारे देश में पढ़े लिखे बेवकूफों की संख्या ज्यादा है जो धर्म के नाम पर हमेशा लुटने के लिए तैयार रहते हैं। इस लिए तो कहते हैं मेरा भारत महान।
लेखक राजकुमार ग्वालानी दो दशक से ज्यादा समय से रायपुर छत्तीसगढ़ में पत्रकार हैं. वर्तमान में दैनिक हरिभूमि में कार्यरत हैं. उनसे संपर्क 09302557200 या 09826711852 के जरिए किया जा सकता है.