प्रश्नकाल
-भंवर मेघवंशी-
प्रश्नों पर जब प्रतिबंध लगे
तब दुगुने वेग से
दागने चाहिये सवाल
सवाल,सवाल और सवाल
अनगिनत ,अनवरत
प्रश्न ही प्रश्न पूछे जाने चाहिये
तभी यह अघोषित आपातकाल
प्रश्नकाल में बदल सकता है.
पूछो, इसलिये कि
पूछना जरूरी है.
पूछो, इसलिये कि
सवाल मर ना जायें कहीं .
जब सवालों की जिन्दगी का
सवाल हो,
ऐसे में चुप रहने का तो
सवाल ही कैसे उठता है?
सवालों की मौत
लोकतंत्र की मौत है
संविधान का मरण है.
इसलिये बरा -ए -मेहरबानी
जम्हूरियत की सेहत के लिये
इस प्रश्नकाल को
स्थगित मत कीजिये.
पूछते रहिये निरंतर
सहज और असहज सवाल.
यह जानते हुये भी
कि पूछना हो सकता है
एक जोखिम भरा काम .
अक्सर नहीं मिलेंगे जवाब
क्योंकि चुप्पों के देश में
जवाब में नहीं आते,
प्रत्यत्तर में प्रतिप्रश्न
उछाले जाते है
कि-
तुम होते कौन हो पूछने वाले?
फिर भी पूछना जरूरी है
पूछते रहिये सदा सर्वदा.
सवाल
सिर्फ सवाल नहीं होते
वे हमारे जिन्दा होने का
सबूत होते है.
सवाल ही जन्मते है
तर्क, विग्यान और गणित को.
सवाल हमें लोकतंत्र में
मालिक बनाते है.
“सर्व प्रभुता सम्पन्न”
सवालों से ही तो
है हमलोग
“वी द पीपल” कहलाते है.
सवाल
हमारे लोकतंत्र के
फेफड़ों की
सांस है.
सवाल ही
इस आफतकाल में
आखिरी ऊजास है.
इसलिये पूछते रहो
पूछते रहो कि
पूछना जरूरी है.
प्रश्नों ने ही
रची होगी सभ्यताएं
अक्षर, स्वर, व्यजंन
वाक्य, बोलियां और भाषाएं
कालक्रम की इस
विकास यात्रा का उद्गम
प्रश्नों में ही छिपा है.
प्रश्न नहीं होते
तो पाषाणयुग
में ही ठहरे होते हम.
प्रश्नों ने ही कबीलों को
समाज बनाया.
प्रश्नों ने ही हमारे कल को
आज बनाया.
इसलिये अपने प्रश्नों को
सहेजो लोगो.
खोने मत दो
अपने सवालों को
मदमाती सत्ता के
अहंकारी अट्टहासों में
श्रद्धा के घटाटोप अंधियारों में
राष्ट्रवाद के नारो में
भीड़ के हथियारों में
अपने सवाल
जिन्दा रखों
हर दौर, हरेक सरकारों में.
वे जब
शस्त्र पूजें,
हत्यारों को करें
महिमा मण्डित.
बनायें उनके
पूजागृह
और उनके पापों पर
तिरंगा डाल दें,
तब भी चुप मत रहना
पूछना.
जब वो बना दें
फौजों को पवित्र गाय
और गायों के नाम पर फौजें
पशुपुत्रों के
उस पाश्विक युग में भी
चुप मत रहना,
पूछना सवाल.
जब वो सवाल
पूछने को ही
राष्ट्रद्रोह बना दें,
भेजने लगे जेल,
मारने लगे कौड़े
गोलियों और गालियों की
करने लगे बौछार
तब भी
बिना डरे मेरे यार
पूछना सवाल.
सवाल तो शाश्वत है
शाश्वत ही रहेंगे
प्रतिबंधों को तो
टूटना होता है
टूट जायेंगे
और प्रतिबंध लगाने वाले
डर जायेंगे
यहां तक कि
मर जायेंगे.
सवाल फिर भी
रहेंगे जिन्दा
क्योंकि हम विरसे में
अपने वंशजों को
सौंप जायेंगे
अनगिनत सवाल
और वसीयत में
लिख जायेंगे
सवाल उठाने का हक़
जिससे कि वो बना सकेंगे
हर अघोषित
आपातकाल को प्रश्नकाल !!
लेखक भंवर मेघवंशी स्वतंत्र पत्रकार एवं समाजकर्मी हैं. यह रचना एनडीटीवी इंडिया के समर्थन में है. सम्पर्क सूत्र- [email protected]