सहारा ग्रुप जब किसी संकट से दो-चार होता है तो फौरन एक पेज पूरा विज्ञापन अखबारों में छपवा देता है।
इस प्रक्रिया में वह एक तीर से कई निशाने लगा देता है। सहारा के बेचैन जमाकर्ताओं को सम्बल मिल जाता है। अखबार मालिकों को मुंह बंद रखने की कीमत।
सहारा में कार्यरत कई मीडियाकर्मियों का कहना है कि स्टाफ को देने के लिए सेलरी नहीं है लेकिन दूसरे अखबारों-चैनलों में विज्ञापन चलवाने के लिए करोड़ों रुपए खर्च करने में तनिक भी समस्या नहीं होती।
देखें कल कई भाषाओं में छपने वाले सहारा के विज्ञापन की तस्वीरें-


