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Kavita Krishnan कविता कृष्णन जैसी तथाकथित नारीवादियों का स्टैंड उनकी असलियत बेनकाब कर देता है : समर

अविनाश पांडेय ‘समर’


Samar Anarya : मैं सिर्फ यौन उत्पीड़न का आरोप लग जाने की वजह से जेएनयूएसयू के अध्यक्ष और संयुक्त सचिव को अपराधी नहीं मानता. न्याय की अपनी एक प्रक्रिया होती है और वह प्रक्रिया पूरी होने तक न शिकायतकर्ता पीड़ित नहीं, बस शिकायतकर्ता होती हैं और आरोपित अपराधी नहीं, बस आरोपी. पर इसका मतलब यह नहीं कि आप पर्चा लाकर पूरे कैंपस में चिपका दें. भले ही आपको अभी GSCASH की नोटिस न मिली हो (जिसके बाद आप यह कर ही नहीं सकते), यह शिकायतकर्ता पर अनाधिकार दबाव बनाने की कोशिश है. हां, उसके बाद इस मसले पर कविता कृष्णन जैसी तथाकथित नारीवादियों का स्टैंड उनकी असलियत बेनकाब कर देता है. सवाल पूछने वालों को GSCASH का हवाला देते वक़्त यह कैंपस भर के पोस्टर भूल जाते हैं. यूं भी मोहतरमा का इतिहास GSCASH से दोषसिद्ध पाए गए प्रोफेसरों को बचाने तक का रहा है. इनका गैंग ज्वाइन कर लीजिये और आप बलात्कार करके भी लौट आइये तो यह आपका बचाव करते घूमेंगी और आप दूसरे संगठन के कामरेड हों (संघी नहीं, उनसे इन्हें डर लगता है) और निरपराध हों तो भी यह जहरीले प्रोफेसर आशुतोष कुमार के साथ देश भर में फर्जी वीडिओ घुमा के आपको आत्महत्या पर मजबूर कर देंगी.

अविनाश पांडेय ‘समर’


Samar Anarya : मैं सिर्फ यौन उत्पीड़न का आरोप लग जाने की वजह से जेएनयूएसयू के अध्यक्ष और संयुक्त सचिव को अपराधी नहीं मानता. न्याय की अपनी एक प्रक्रिया होती है और वह प्रक्रिया पूरी होने तक न शिकायतकर्ता पीड़ित नहीं, बस शिकायतकर्ता होती हैं और आरोपित अपराधी नहीं, बस आरोपी. पर इसका मतलब यह नहीं कि आप पर्चा लाकर पूरे कैंपस में चिपका दें. भले ही आपको अभी GSCASH की नोटिस न मिली हो (जिसके बाद आप यह कर ही नहीं सकते), यह शिकायतकर्ता पर अनाधिकार दबाव बनाने की कोशिश है. हां, उसके बाद इस मसले पर कविता कृष्णन जैसी तथाकथित नारीवादियों का स्टैंड उनकी असलियत बेनकाब कर देता है. सवाल पूछने वालों को GSCASH का हवाला देते वक़्त यह कैंपस भर के पोस्टर भूल जाते हैं. यूं भी मोहतरमा का इतिहास GSCASH से दोषसिद्ध पाए गए प्रोफेसरों को बचाने तक का रहा है. इनका गैंग ज्वाइन कर लीजिये और आप बलात्कार करके भी लौट आइये तो यह आपका बचाव करते घूमेंगी और आप दूसरे संगठन के कामरेड हों (संघी नहीं, उनसे इन्हें डर लगता है) और निरपराध हों तो भी यह जहरीले प्रोफेसर आशुतोष कुमार के साथ देश भर में फर्जी वीडिओ घुमा के आपको आत्महत्या पर मजबूर कर देंगी.

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Samar Anarya : रात को हांगकांग समय पर 4 बजे फोन बजा था और दूसरी तरफ सबसे करीबी दोस्तों में एक थी, बदहवास। समर …. (एक साझा महिला मित्र, गरचे लम्बे परिचय को मित्रता का नाम दे सकें) के घर कुछ लोग घुस गए हैं, उसे बंधक बना लिया है. क्यों पूछने पर इस देश की सबसे गलीज सच्चाई फिर मुंह बाये खड़ी थी. उसके छोटे भाई ने लव मैरिज कर ली है यार… और दोनों शहर छोड़ गए हैं. सो लड़की के घर वालों के लिए दुश्मनी निकालने के लिए लड़के की बड़ी बहन से बेहतर मिलता भी तो कौन? बखैर, तुरंत इंटरनेट से हासिल एसएसपी के नंबर पर फोन किया, नहीं लगा. डीएम को किया नहीं लगा. लोकल थाने पर किया नहीं लगा. वक़्त के साथ बढ़ रही बदहवासी में प्रशासन से लेकर मीडिया तक के पुराने दोस्तों को याद किया, नंबर ढूंढें। खुद को कोसा कि मियाँ पुरबिये, यूपी तो पश्चिम में भी है. फिर अचानक Yashwant Singh भड़ास की याद आई और डूब रही रात में भी बन्दे ने फोन ही नहीं उठाया, बल्कि कहा कि देख लिया जाएगा समर भाई. कुछ न होने पायेगा। फिर तो बस फोन बजते रहे. इधर अगली याद Sheeba Aslam Fehmi की आई और बचा खुचा भी पूरा। सुबह के 8 बजते बजते स्थिति नियंत्रण में थी और अपनी दोस्त सुरक्षित। 11 बजे तक उसके घर में घुसने वाले माफ़ी भी मांग रहे थे. यशवंत नारीवादी हैं कि नहीं, नहीं जानता। उल्टा उनका गरिया देना जानता हूँ. पर कल उनकी आवाज में चिंता मुझसे एक पैसा कम न थी. शीबा तो खैर ‘लिबरल फेमिनिज्म’ से ऐलानिया बाहर हैं. मुस्लिम हैं, बराबरी चाहती हैं, जेंडर जस्टिस चाहती हैं. फिर इन दोनों ने एक बार भी लड़की का नाम, पता, जाति धर्म नहीं पूछा था. नारीवाद का पता नहीं, न्याय की लड़ाई, हक़ इन्साफ की लड़ाई यही है. जब जहाँ रहा हूँ ऐसी किसी कॉल पर खड़ा हुआ हूँ, लड़ा हूँ. सो शुक्रिया दोनों का नहीं करूँगा, साझा लड़ाई को सलाम भर रहेगा। [माफ़ी, Zafar Irshad भाई का जिक्र छूट गया था. सुबह होते होते उन्होंने भी सिर्फ फेसबुक की जान पहचान और यकीन पर प्रशासन के सरे नट बोल्ट खड़का डाले थे]

अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकारवादी अविनाश पांडेय ‘समर’ के फेसबुक वॉल से.

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Yashwant Singh : चूजी-सेलेक्टिव और मूडी नारीवादियों से सावधान रहने की जरूरत है… कब किसे अपराधी घोषित कर दें और कब किसे माफी देइ दें, कुछ नहीं पता… ये खुद अदालत और खुद कानून हैं. ये अपनी मनमर्जी के हिसाब से दूसरों को अपराधी और इमानदार का सर्टिफिकेट बांटती फिरती हैं. किसे ये सबसे बड़ा अपराधी बता दें और किसे ये सबसे बड़े कामरेड का तमगा दे दें, कुछ नहीं पता, ये सब इनके मूड पर डिपेंड करता है. Samar भाई की एक एक लाइन से सहमत हूं. बताते चलूं कि मैं भी एक बार इस महान नारीवादी के चंगुल में फंसकर काफी बदनामी-परेशानी पा चुका हूं. यह नारीवादी आज भी मेरे खिलाफ जाने किस किस से उल्टे सीधे बात करती रहती है… पिछले दिनों जब कुछ मीडिया हाउसों ने मुझे फंसाकर जेल भिजवाया तो इस नारीवादी ने उन सबको रोकने का कुत्सित प्रयास किया जिन जिन ने मेरे पक्ष में खड़े होकर मेरी गिरफ्तारी का विरोध करना तय किया था. खैर, इस महान नारीवादी की साजिशों-कुचक्रों के कारण कोर्ट-कचहरी के लंबे संजाल-चक्करों में फंसकर काफी दिन बाद इन चीजों से मुक्त हुआ तो यही तय किया कि दुश्मनों से दोस्ती कर लेना, तथाकथित अपनों पर कभी भरोसा मत करना क्योंकि इन अपनों को अपने ही सबसे बड़े दुश्मन नजर आते हैं. अगर आप इनके चंगुल में फंस गए और आपके भीतर मजबूत इच्छाशक्ति और जिगर नहीं हुआ तो आप सीधे सुसाइड कर लेंगे, कोई विकल्प नहीं बचेगा क्योंकि ये कुप्रचार व बदनामी इस कदर करा देंगी कि आप मुंह दिखाने के लायक नहीं बचेंगे. मैं अपने निजी प्रकरण में कह सकता हूं कि वो तो मेरे जैसा थेथर आदमी था कि सब झेल ले गया, मुश्किलों से सिर्फ सकारात्मकता का सबक लेता चला गया. सच कहूं तो उन्हीं मुश्किलों ने मुझे ज्यादा मजबूत और लड़ाकू बनाया वरना इन नारीवादी टाइप के कामरेडों ने तो मेरा काम लगा ही दिया था. संभव है, आगे जब जानेमन जेल के कुछ पार्ट लिखूं तो उसमें अतीत के उन अनुभवों-प्रकरणों पर विस्तार से लिखूं जिसमें ऐसी नारीवादी टाइप कामरेडों ने हम जैसों को नष्ट/जमींदोज कर देने का पूरा प्रयास किया. वो तो अपनी तबीयत ऐसी है कि दूसरों द्वारा दिए गए दुखों को झेलने के बाद भी अपन अपना खुद का लक्ष्य नहीं छोड़ते, अपने खुद के काम को नहीं भूलते, सो अपन अपने राह पर चलते चले गए और जमाने को दिखा दिया कि असल क्रांतिकारिता किसे कहते हैं, सत्ता संस्थानों से टकराने और सच कहने की ताकत किसे कहते हैं. कार्पोरेट मीडिया के स्क्रीन पर चमकने दिखने को आतुर टीआरपीखोर नारीवादियों से लाख गुना अच्छे हैं वो लोग जो जरूरत पड़ने पर इस भ्रष्ट व दलाल मीडिया को भी गरियाने से नहीं हिचकते. खैर, सौ बात की एक बात कि अगर इन लोगों की मंशा और नीयत सही रही होती, अपनों के प्रति उदात्त नजरिया रहा होता, समस्याओं-मुश्किलों को हल करने को लेकर सकारात्मक एप्रोच रहा होता तो आज ये और इनकी पार्टियां देश में कांग्रेस-भाजपा की विकल्प बन गई होतीं. लेकिन इनके पास खुद अपने लोगों को निपटाने फंसाने झेलाने गिराने के अलावा बाकी काम के लिए फुर्सत कहां है.

भड़ास के एडिटर यशवंत सिंह के फेसबुक वॉल से.

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क्या आपने इस मुद्दे पर जहरीले प्रोफ़ेसर आशुतोष कुमार और कम्युनिस्टों की सुपारी किलर Kavita Krishnan का कोई बयान सुना?

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