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सियासत

तो क्या मोदी ने संविधान के अनुच्छेद 51A(h) का उल्लंघन किया है!

Virendra Yadav : ‘दि हिन्दू ‘ (1 नवंबर) में प्रकाशित अपने इस महत्वपूर्ण लेख में करण थापर ने ध्यान आकर्षित किया है कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 51A(h) में वैज्ञानिक समझ को विकसित करना हर नागरिक का कर्तव्य बताया गया है. करण थापर का प्रश्न है कि क्या एक चिकित्सालय का उदघाटन करते हुए प्रधानमंत्री का मिथकों के हवाले से यह कहना उचित है कि भारत में महाभारत काल में ही जेनेटिक साईंस थी क्योंकि कर्ण कुंती के गर्भ से नही पैदा हुए थे और यह भी कि यदि उस काल में प्लास्टिक सर्जरी न होती तो गणेश का मस्तक हाथी का क्यों होता?

<p>Virendra Yadav : 'दि हिन्दू ' (1 नवंबर) में प्रकाशित अपने इस महत्वपूर्ण लेख में करण थापर ने ध्यान आकर्षित किया है कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 51A(h) में वैज्ञानिक समझ को विकसित करना हर नागरिक का कर्तव्य बताया गया है. करण थापर का प्रश्न है कि क्या एक चिकित्सालय का उदघाटन करते हुए प्रधानमंत्री का मिथकों के हवाले से यह कहना उचित है कि भारत में महाभारत काल में ही जेनेटिक साईंस थी क्योंकि कर्ण कुंती के गर्भ से नही पैदा हुए थे और यह भी कि यदि उस काल में प्लास्टिक सर्जरी न होती तो गणेश का मस्तक हाथी का क्यों होता?</p>

Virendra Yadav : ‘दि हिन्दू ‘ (1 नवंबर) में प्रकाशित अपने इस महत्वपूर्ण लेख में करण थापर ने ध्यान आकर्षित किया है कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 51A(h) में वैज्ञानिक समझ को विकसित करना हर नागरिक का कर्तव्य बताया गया है. करण थापर का प्रश्न है कि क्या एक चिकित्सालय का उदघाटन करते हुए प्रधानमंत्री का मिथकों के हवाले से यह कहना उचित है कि भारत में महाभारत काल में ही जेनेटिक साईंस थी क्योंकि कर्ण कुंती के गर्भ से नही पैदा हुए थे और यह भी कि यदि उस काल में प्लास्टिक सर्जरी न होती तो गणेश का मस्तक हाथी का क्यों होता?

करण थापर के ही शब्दों में..

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“These are troubling doubts and for the Prime Minister to be the cause of them is even more worrying. Finally, I’m dismayed this issue has not got greater attention in the media. Nor, to my astonishment, has any Indian scientist refuted the Prime Minister’s claims. Their silence is perplexing. The silence of the media is deeply disturbing. It feels as though it’s been deliberately blanked out by everyone.” इस लेख को अवश्य पढ़ा जाना चाहिए .

वरिष्ठ साहित्यकार और आलोचक वीरेंद्र यादव के फेसबुक वॉल से.

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