सवाल संपादकों के स्वाभिमान का है

बिहार विधान सभा की प्रेस सलाहकार समिति के गठन को लेकर खड़ा किया गया सवाल किसी अकेले पत्रकार की लड़ाई नहीं है। यह सवाल संपादक नामक संस्था की गरिमा से जुड़ा है, उनके मान-सम्मान से जुड़ा सवाल है। प्रेस सलाहकार समिति के गठन के पूर्व विधान सभा सचिवालय ने किसी संपादक से परामर्श नही किया और अपनी मनमर्जी से प्रेस प्रतिनिधियों को मनोनीत कर दिया है। यदि किसी संपादक को स्पीकर की ओर से चिट्टी भेजी गयी हो तो विस सचिवालय उस पत्र को सार्वजनिक करे।

रायपुर से लेकर लखनऊ वाया बनारस तक कौन-कौन ‘फासीवाद’ का आपसदार बन गया है, अब आप आसानी से गिन सकते हैं

Abhishek Srivastava : मुझे इस बात की खुशी है कि रायपुर साहित्‍य महोत्‍सव के विरोध से शुरू हुई फेसबुकिया बहस, बनारस के ‘संस्‍कृति’ नामक आयोजन के विरोध से होते हुए आज Vineet Kumar के सौजन्‍य से Samvadi- A Festival of Expressions in Lucknow तक पहुंच गई, जो दैनिक जागरण का आयोजन था। आज ‘जनसत्‍ता’ में ‘खूब परदा है’ शीर्षक से विनीत ने Virendra Yadav के 21 दिसंबर को यहीं छपे लेख को काउंटर किया है जो सवाल के जवाब में दरअसल खुद एक सवाल है। विनीत दैनिक जागरण के बारे में ठीक कहते हैं, ”… यह दरअसल उसी फासीवादी सरकार का मुखपत्र है जिससे हमारा विरोध रहा है और जिसके कार्यक्रम में वीरेंद्र यादव जैसे पवित्र पूंजी से संचालित मंच की तलाश में निकले लोगों ने शिरकत की।”

रवीश कुमार, ओम थानवी और वीरेंद्र यादव ने फेसबुक को अलविदा कहा!

Shambhunath Shukla : नया साल सोशल मीडिया के सबसे बड़े मंच फेस बुक के लिए लगता है अच्छा नहीं रहेगा। कई हस्तियां यहाँ से विदा ले रही हैं। दक्षिणपंथी उदारवादी पत्रकारों-लेखकों से लेकर वाम मार्गी बौद्धिकों तक। यह दुखद है। सत्ता पर जब कट्टर दक्षिणपंथी ताकतों की दखल बढ़ रही हो तब उदारवादी दक्षिणपंथियों और वामपंथियों का मिलकर सत्ता की कट्टर नीतियों से लड़ना जरूरी होता है। अगर ऐसे दिग्गज अपनी निजी व्यस्तताओं के चलते फेस बुक जैसे सहज उपलब्ध सामाजिक मंच से दूरी बनाने लगें तो मानना चाहिए कि या तो ये अपने सामाजिक सरोकारों से दूर हो रहे हैं अथवा कट्टरपंथियों से लड़ने की अपनी धार ये खो चुके हैं। इस सन्दर्भ में नए साल का आगाज़ अच्छा नहीं रहा। खैर 2015 में हमें फेस बुक में खूब सक्रिय साथियों- रवीश कुमार, ओम थानवी और वीरेंद्र यादव की कमी खलेगी।

तो क्या मोदी ने संविधान के अनुच्छेद 51A(h) का उल्लंघन किया है!

Virendra Yadav : ‘दि हिन्दू ‘ (1 नवंबर) में प्रकाशित अपने इस महत्वपूर्ण लेख में करण थापर ने ध्यान आकर्षित किया है कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 51A(h) में वैज्ञानिक समझ को विकसित करना हर नागरिक का कर्तव्य बताया गया है. करण थापर का प्रश्न है कि क्या एक चिकित्सालय का उदघाटन करते हुए प्रधानमंत्री का मिथकों के हवाले से यह कहना उचित है कि भारत में महाभारत काल में ही जेनेटिक साईंस थी क्योंकि कर्ण कुंती के गर्भ से नही पैदा हुए थे और यह भी कि यदि उस काल में प्लास्टिक सर्जरी न होती तो गणेश का मस्तक हाथी का क्यों होता?