भास्कर गुहा नियोगी-
शिक्षा पर ताला : बनारस के फाटक शेख सलीम स्थित प्राथमिक विद्यालय का छात्र कर रहा था ताला ताला खुलने का इंतजार
वाराणसी। प्रदेश की प्राथमिक शिक्षा में बड़ा गुणात्मक परिवर्तन करने की सरकारी योजनाओं में विद्यालय के शिक्षक और कर्मचारी खुद ताला लगा रहे है। ये ताला सीधे उन नौनिहालों के शिक्षा और भविष्य पर लग रहा है जिन्हें शिक्षीत बना उनकी ज्ञान की रौशनी से हम अज्ञानता का अंधियारा खत्म करने का सपना देख रहे है।
करोड़ों खर्च कर स्कूल चलो अभियान चला मुफ्त किताबें, यूनिफॉर्म, बस्ता, जूता-मोजा देने के बाद भी बुधवार को प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र वाराणसी स्थित प्राथमिक विद्यालय (फाटक शेख-सलीम) के दरवाजे पर पैरों में हवाई चप्पल डाले छात्र स्कूल का ताला खुलने का इंतजार करते हुए मिला। सुबह के 7 बजकर 10 मिनट होने के बाद भी स्कूल की प्रधान अध्यापिका सहित अन्य अध्यापकों और कर्मचारियों का दूर-दूर तक अता-पता नहीं दिखा।
इन दिनों पारे की ताप और लू की मार को देखते हुए सभी स्कूलों को सुबह सात बजे तक खोले जाने का निर्देश है ये अलग बात है कि खुद जिले के जिम्मेदार शिक्षा विभाग के अधिकारी शायद ही कभी यह जानने की कोशिश करते है या मौके पर पहुंच कर देखने की कोशिश करते हैं कि समय पर विद्यालय खुल भी रहे है कि नहीं?
वैसे भी पिछले दो सालों से करोना महामारी के चलते स्कूल बंद चल रहे थे निजी स्कूलों की अगर बात छोड़ दें तो सबसे ज्यादा नुक्सान सरकारी प्राथमिक विद्यालयों के छात्रों को हुआ है देशभर में लाखों की संख्या में बच्चे पढ़ाई से दूर हो गये है।
देखें तो इन प्राथमिक विद्यालयों में औसतन निम्न परिवारों के बच्चे ज्ञान अर्जन के लिए आते हैं। ऐसे में पढ़ाई के आधुनिक तरीके अपनाकर पढ़ाई के प्रति इनमें गहरी रुचि न पैदा कर अगर स्कूल के दरवाजे पर बच्चे ताला खुलने का इंतजार करते रहेंगे तो कैसे भला ये आगे बढ़ेंगे। ऐसे में इनके ज्ञान का सूरज उदय होगा या अस्त?
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पूरा वाक़या जानें
रोज की तरह आज बुधवार की तरह सुबह अपनी बिटिया को स्कूल छोड़ने लहुराबीर गया और रोज की तरह पैदल वापस घर लौट रहा था। सुबह के 7 बज चुके थे बेनियाबाग से आगे नई सड़क की तरफ चौंराहे से ठीक पहले ही ये प्राथमिक विद्यालय है। विद्यालय के मुख्य द्वार पर ये बच्चा बैठा था और दरवाजे पर ताला लटका था। देखकर आश्चर्य हुआ आगे बढ़ गया और सोचने लगा कैसे पढ़ेगा और बढ़ेगा हमारा आने वाला भविष्य जब शिक्षा हासिल करने पर ताला लगा हो और जिम्मेदार गायब।
फिर दिमाग में सवाल आया इस ताले को खोलेगा कौन? फिर कदम वापस लौटे स्कूल के सामने पहुंचा जेब से मोबाइल निकाल तस्वीरें खींची फिर सोचा वीडियो भी बना लूं। छोटा सा वीडियो क्लिप बनाया कि शायद मेरी यह छोटी सी कोशिश काम आ जाए ? कहते हैं कोशिश जारी रखनी चाहिए। घर लौटकर इस पर लिखा और यशवंत भाई को भेज दिया।
मेरा दावा है यही नहीं शहर में और भी स्कूल ऐसे हैं जहां हालत बद से बद्तर है दिक्कत ये है कि हमने उस तरफ देखना बंद कर रखा है हम खुद की सेल्फी लेते-लेते इतने सेल्फिश हो गये है कि अपने आस-पास से कटकर रह गये है। जेब में आई फोन तो है लेकिन मुद्दे पर वो क्लिक नहीं करता। लेकिन इन सब के बावजूद अपने को ज्ञान के उजाले से जोड़कर जिंदगी बदलने का हक तो उस बच्चे को भी है उस के हक के लिए कौन बोलेगा? और कौन खोलेगा उसके शिक्षा के अधिकार पर लगा ये ताला?
प्राथमिक शिक्षा का हाल : ढोल की पोल
कहते है कि इसीलिए है ढोल बजती है कि अंदर पोल है ठीक इसी तरह है प्रदेश में प्राथमिक शिक्षा का हाल। स्कूल चलो अभियान का ढोल है, सर्व शिक्षा अभियान है, स्कूल चलो के नाम पर रैलियां है। मुफ्त किताबें, यूनिफॉर्म, स्कूल बैग वगैरह -वगरैह सब है लेकिन अंदर से सब ढोल की पोल की तरह है।
करोड़ों रुपए के बजट के बावजूद प्राथमिक शिक्षा का कोई पुरसाहाल नहीं है हजारों में मोटी तनख्वाह लेने वाले अध्यापक भी है लेकिन शिक्षा का स्तर ये है कि इन स्कूलों में लोग अपने बच्चों को भेजना नहीं चाहते। अति साधारण लोगों के बच्चे इन स्कूलों में पढ़ने के लिए आते हैं लेकिन अपने भविष्य को बेहतर करें ये हक तो उन बच्चों को भी है लेकिन?