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सुख-दुख

वरिष्ठ पत्रकार शिव अनुराग पटैरिया को कोरोना अपना ग्रास बना गया!

देवप्रिय अवस्थी-

बहुत दुख भरी खबर। जनसत्ता, मुंबई और चौथा संसार, इंदौर में हमारे साथी रहे शिव अनुराग पटैरिया को भी कोरोना अपना ग्रास बना गया। शिव जी को लेकर मिली जानकारी से स्तब्ध हूं। शिव का निधन इंदौर के बांबे हास्पिटल में आज सुबह हुआ।

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सौमित्र रॉय-

50 से ऊपर वालों की एक पूरी पीढ़ी बिछड़ती जा रही है। कभी मैं भी न रहूं तो अफ़सोस नहीं होगा।

हमेशा स्नेह से गले मिलने वाले शिव अनुराग पटेरिया भी नहीं रहे। श्रद्धांजलि के लिए शब्द भी कम पड़ रहे हैं।

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उनका जाना पुरानी पीढ़ी की पत्रकारिता के एक स्तंभ के ढहने जैसा है। नमन!


गोपाल बाजपेयी-

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मैं बेसहारा, अनाथ हो गया ..

मेरे बड़े भाई, अभिभावक, गुरु, मार्गदर्शक, मेरे सब कुछ । पत्रकारिता जगत की बहुत बड़ी हस्ती श्री शिव अनुराग पटेरिया जी हमें छोड़कर चल दिये।

ईश्वर उन्हें आने चरणों में स्थान दे और उनके परिवार को यह वज्राघात सहने की ताकत दे, प्रभु से यही गुहार है।

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डाक्टर राकेश पाठक-

अलविदा वरिष्ठ पत्रकार शिव अनुराग पटैरिया…दद्दा, आपके साथ हमारा नाम क़िताब पर हमेशा रहेगा

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जाने माने पत्रकार , लेखक और हमारे अग्रज समान शिव अनुराग पटैरिया नहीं रहे। कोरोना का कालचक्र उन्हें ले गया।
पिछले कुछ दिनों से कोरोना संक्रमित होने के बाद वे बॉम्बे हॉस्पिटल,इंदौर में भर्ती थे। प्रतिष्ठित दैनिक ‘लोकमत’ के मप्र ब्यूरो चीफ़ शिव अनुराग जी ने आधा सैकड़ा क़िताबें लिखीं हैं।

मप्र की पत्रकारिता के इतिहास पर शोध पुस्तक मेरे और उनके नाम से प्रकाशित है। कुछ साल पहले माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय भोपाल की शोध परियोजना के तहत मेरा और शिव अनुराग जी का चयन ‘मप्र की स्वातंत्रयोत्तर पत्रकारिता’ पर शोध के लिये हुआ था।

प्रदेश को दो भागों में बांट कर हम दोनों ने काम किया।

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इस शोध को बाद में विश्वविद्यालय ने पुस्तक के रूप में प्रकाशित किया। किताब के कवर पर हम दोनों का नाम है। दद्दा, आप भले उस दुनिया में चले गए हो लेकिन हमारा नाम हमेशा क़िताब पर साथ साथ रहेगा। उसे कोई अलग नहीं कर सकता।

मुझसे हमेशा हक़ से कहते थे, राकेश तुम चम्बल पर क़िताब लिखो लेकिन मैं उनका कहा पूरा नहीं कर पाया। बाद में DNN चैनल में वे हमारी डिबेट में सबसे बेलाग भागीदार होते थे।

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आज उनके साथ की अनगिनत मुलाकातें याद आ रहीं हैं। आंसू थम नहीं रहे। दद्दा आपको इतनी जल्दी नहीं जाना था।

नमन।

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रंगनाथ सिंह-

मध्यप्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार शिवअनुराग पटैरिया जी नहीं रहे। मेरे पैदा होने से पहले उन्होंने पत्रकारिता शुरू कर दी थी। दफ्तरी काम के सिलसिले में ही उनसे मेरा परिचय हुआ। करीब एक-डेढ़ साल तक मैं उनसे यही अनुरोध करता रहा कि ‘सर, मुझे सर न कहा करें।’

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पटैरिया जी जैसे लोग अपने ओहदे, तजुर्बे और पहुँच के इतर मानवीय व्यवहार की गरिमा बनाए रखना जानते थे। पटैरिया जी हर लिहाज से मुझसे श्रेष्ठ थे। सामाजिक और राजनैतिक रसूख के मामले में तो मैं उनके नाखून बराबर भी नहीं फिर भी वो हमेशा विनीतभाव से पेश आते थे। न वो मुझे रिपोर्ट करते थे। न उनकी कोई परोक्ष मजबूरी थी जिसकी वजह से उन्हें ऐसा करना पड़े। यह उनका स्वभाव था। पटैरिया जी जैसों का व्यवहार देखकर कई बार मुझे अपने व्यवहार पर शर्मिंदगी होने लगती है।

सर, आपने जो स्नेह मुझे दिया उसके लिए आपका ऋणी रहूँगा।

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सादर नमन!


जयंत सिंह तोमर-

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पत्रकार शिव अनुराग पटेरिया… उनके जाने की सूचना एक गहरे झटके की तरह है । पटेरिया जी मध्यप्रदेश के उन पत्रकारों में रहे जिनका हाथ सदैव सूबे की राजनीति की धड़कन नापता था । चकित कर देने वाला ‘ न्यूज़ – सेंस ‘ था उनका । १९८०के दशक में छतरपुर अंचल से पत्रकारिता के क्षेत्र में जो श्रेष्ठ प्रतिभाएं निकलीं श्री शिव अनुराग पटेरिया उनमें से एक थे ।

बिहार प्रेस बिल की तरह छतरपुर में भी एक प्रकरण हुआ था जिसको सामने लाने में शिव अनुराग पटेरिया जी और राजेश बादल जी की महत्वपूर्ण भूमिका थी ।

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मध्यप्रदेश हिन्दी ग्रंथ अकादमी के लिए पत्रकारिता पर जितनी किताबें पटेरिया जी ने लिखीं उतनी किसी ने नहीं लिखीं ।

मध्यप्रदेश जनसम्पर्क के लिए हर साल वे एक ‘ संदर्भ ‘ का प्रकाशन करते थे जो सबके लिए संग्रहणीय होता था।
नैशनल बुक ट्रस्ट के लिए भी पटेरिया जी ने मध्यप्रदेश पर केन्द्रित पुस्तक लिखी ।

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प्रारम्भिक दौर में पटेरिया जी कन्हैयालाल नंदन के सम्पादन में मुम्बई से निकलने वाले ‘ संडे मेल ‘ की सम्पादकीय टीम के महत्वपूर्ण सदस्य थे । राजनीतिक रिपोर्टिंग उनका प्रिय विषय था।

लम्बे समय तक पटेरिया जी भोपाल से प्रकाशित ‘ दैनिक नई दुनिया ‘ के कार्यकारी सम्पादक रहे ।

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दैनिक नई दुनिया के पास तब बहुत अच्छी टीम हुआ करती थी । मदनमोहन जोशी सम्पादक थे । मध्यप्रदेश से प्रेस कौंसिल के जो गिने चुने मेम्बर हुए हैं जोशी जी उनमें से एक थे ।

राघवेन्द्र सिंह, साधना सिंह, सतीश एलिया, के डी शर्मा, गोपी बलवानी , प्रवाल सक्सेना सहित आज के चमकते सितारे न्यूज़ – 18 के प्रवीण दुबे और जी़ – न्यूज़ के रक्षा सम्वाददाता कृष्ण मोहन मिश्र पटेरिया जी की सम्पादकीय टीम के नवरत्न हुआ करते थे ।

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बाद में पटेरिया जी महाराष्ट्र के प्रमुख अखबार ‘ लोकमत ‘ का काम मध्यप्रदेश में देखने लगे । मध्यप्रदेश लोक सेवा आयोग के भी सदस्य रहे। प्रारम्भिक दौर में भारत ने जो श्रेष्ठ रक्षा- संवाददाता दिये पटेरिया जी उनमें से एक थे ।

एक समय पटैरिया जी सहकारी नेता और मध्यप्रदेश के उप- मुख्यमंत्री सुभाष यादव के भी घनिष्ठ सलाहकारों में रहे ।
पटेरिया जी ने पत्रकारिता से इतर पुस्तक – लेखन से अलग पहचान और प्रतिष्ठा अर्जित की ।

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माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय ने विजय दत्त श्रीधर जी के नेतृत्व में पत्रकारिता पर शोध की एक महत्वपूर्ण परियोजना कुलपति अच्युतानन्द मिश्र के समय में शुरू की थी । पटेरिया जी को मध्यप्रदेश की पत्रकारिता का इतिहास संकलित करने का महत्वपूर्ण काम सौंपा गया था।


पटेरिया जी का जाना मध्यप्रदेश के एक सचेत और चौकन्ने पत्रकार का जाना है।

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जाना तो एक दिन सबको है । लेकिन कोरोना के समय में जिस तरह लगभग हर रोज़ प्रतिभाएं विदा हो रही हैं उसे देखते हुए लगता है कितनी जल्दी यह कठिन समाप्त हो और शीतल छाया देने वाले लोग हमारे बीच बने रहें । पटेरिया जी का स्नेह मुझे निरंतर मिला। भोपाल आने पर भोजन की जरुर पूछते।

चार साल पहले ग्वालियर में पत्रकारिता पर केन्द्रित एक कार्यक्रम के मुख वक्ता पटेरिया जी थे । अध्यक्षता आइ टी एम यूनिवर्सिटी ग्वालियर के कुलाधिपति रमाशंकर सिंह जी ने की थी। फोटोग्राफी के शौकीन पटेरिया जी के सुपुत्र भी साथ थे और इन पंक्तियों के लेखक को यह अवसर मिला कि दोनों को ग्वालियर के ऐतिहासिक स्थलों का भ्रमण कराया जाए ।

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न्यूयॉर्क टाइम्स का ध्येयवाक्य है – All the news that’s fit to print ‘ . पटेरिया जी इस वाक्य को चरितार्थ करने वाले पत्रकार रहे । छतरपुर जिले के विजावर जैसी जगह से निकल कर उन्होंने पत्रकारिता में जो स्थान बनाया वह आंचलिक पत्रकारों में आशा और साहस जगाने का काम करती है । पटैरिया जी को अश्रुपूरित श्रद्धांजलि।

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