अपूर्व भारद्वाज-
सिंधिया मंत्री नहीं, प्रधानमंत्री बनना चाहते हैं! हां, आपने बिलकुल सही पढ़ा ..मार्च 2020 में जब मैंने यह पोस्ट लिखा था.. तब बहुत से लोगों को मजाक लगा था पर सवा साल में गंगा में बहुत पानी बह चुका है और पोस्ट में लिखी एक-एक बात उस रोडमैप को सही साबित कर रही है। सिंधिया 10 साल आगे की राजनीति का सोचकर बीजेपी में शामिल हुए है क्योकि वो हमेशा से जानते थे कि वो कांग्रेस में राहुल के रहते कभी भी प्रधानमंत्री नहीं बन सकते थे इसलिए वो वहाँ गए जहां से उनकी दादी और पिता ने राजनीति शुरूवात की थी।
सिंधिया इतने कमजोर खिलाड़ी नहीं हैं कि केवल एक राज्य सभा की सीट और केंद्रीय मंत्री पद के लिए कांग्रेस छोड़ दें। अगर आप अभी भी यही सोच रहे हैं तो मुझे पुनः माफ कीजिएगा क्योंकि मैं फिर कह रहा हूँ कि आप राजनीति के कच्चे खिलाड़ी हैं। राजनीति सिंधिया के खून में है। वो यह सब एक तय योजना के मुताबिक कर रहे हैं। उन्होंने जो इतना बड़ा फैसला लिया है वो बहुत ही दूरदर्शिता से लिया गया एक सोचा समझा दांव है जो भारत के भविष्य की राजनीति की तस्वीर को ध्यान में रखकर चला गया है।
बीजेपी में मोदी के बाद प्रधानमंत्री के तीन ही उम्मीदवार दिखते हैं। एक अमित शाह, दूसरे योगी और तीसरे देवेन्द्र फडणवीस। अमित शाह राजनीतिक रूप से सिंधिया से बहुत कुशल हैं लेकिन प्रशासन औऱ कम्युनिकेशन में सिंधिया अमित शाह से इक्कीस हैं। अमित शाह का बैकग्राउंड भी उनके आड़े आ सकता है इसलिए सिंधिया को अपनी सम्भावना उजली लगती है। सिंधिया अमित शाह को कड़ी टक्कर दे सकते हैं।
योगी से हर मामले में सिंधिया आगे हैं। योगी को देश प्रधानमंत्री के रूप में केवल प्रचंड हिंदू आँधी के रुप में ही स्वीकार कर सकता है, जो 10 साल के आगे की राजनीति में एक मुश्किल कार्य है. आगे की राजनीति केवल व्यक्तित्व पर होगी और उसमें सिंधिया योगी से मीलों आगे हैं।
सिंधिया का मुख्य मुकाबला देवेन्द्र फडणवीस से है। फडणवीस उनसे हर बात में बराबर हैं लेकिन राजनीति में उनसे उन्नीस हैं। इसलिए उन्हें शाह ने महाराष्ट्र में मात दे दी थी। महाराष्ट्र में फडणवीस को ठाकरे और पवार कभी उभरने नहीं देंगे इसलिए महाराज को यहाँ भी अपनी सम्भावना अच्छी लगती है।
सिंधिया राजनीति का एक युवा और चॉकलेटी चेहरा है औऱ गुजरात से लेकर उत्तरप्रदेश तक उनकी पहचान है। वो पूरे गाय पट्टी में एक बड़ा खिलाडी बनना चाहते हैं। सिंधिया शुरू से दक्षिणपंथ के प्रति झुके हुए थे इसलिए वो 370 से लेकर CAA तक हर मुद्दे पर बड़े ही सॉफ्ट रहे हैं। सिंधिया की राजनीति हमेशा सवर्णों, किसानों और मध्यम वर्ग के आस पास रही है और इसलिए वो बड़े शहरों के इंफ्लुएंसेर ऑडियंस के साथ ठेठ देहाती को भी हमेशा आकर्षित करते रहे हैं।
आज से सवा साल पहले जो लोग ज्योतिरादित्य सिंधिया को धोबी का कुत्ता और अवसरवादी जैसी तमाम तरह की उपमाओं से विभूषित करके उनकी आगे की राजनीति को खारिज कर रहे थे वो भी इस बात को गंभीरता से सोच रहे हैं क्योंकि बहुत से पुराने कांग्रेसी जानते हैं कि अगर माधवराव सिंधिया आज जीवित होते तो वो इस देश के प्रधानमंत्री होते ज्योतिरादित्य को अपने पिता के सपने को पूरा करना है औऱ वो आज इसके लिए पहला कदम बढ़ा चुके हैं!