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दिल्ली

पत्रकार ने राज्यसभा सदस्य डा. सुब्रमनियन स्वामी के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही करने की मांग की

राज्यसभा का सदस्य भारतीय राजनीति का सबसे वरिष्ठ और परिपक्व व्यक्तित्व होना चाहिए। क्योंकि भारत के लोकतंत्र में इससे बड़ी कोई विधायिका नहीं है। अगर राज्यसभा का कोई सदस्य झूठ बोले, भारत के नागरिकों को धमकाऐ और राज्यसभा द्वारा प्रदत्त सरकारी स्टेशनरी का दुरूपयोग इन सब अवैध कामों के लिए करें, तो क्या उस पर कोई कानून लागू नहीं होता है? कानून के तहत ऐसा करने वाले पर बाकायदा आपराधिक मुकदमा चलाया जा सकता है और उसे 2 वर्ष तक की सजा भी हो सकती है। पर इससे पहले की कोई कानूनी कार्यवाही की जाऐ, राज्यसभा की अपनी ही एक ‘याचिका समिति’ होती है। जिसके 7 सदस्य हैं। इस समिति से शिकायत करके दोषी सदस्य के विरूद्ध अनुशासनात्मक कार्यवाही की जा सकती है।

पिछले दिनों ‘कालचक्र समाचार ब्यूरो’ के प्रबंधकीय संपादक रजनीश कपूर ने इस समिति के सातों सदस्यों को और राज्यसभा के सभापति व भारत के माननीय उपराष्ट्रपति श्री एम. वैंकेया नायडू जी को एक लिखित प्रतिवेदन भेजकर राज्यसभा के सदस्य डा. सुब्रमनियन स्वामी के विरूद्ध अनुशासनात्मक कार्यवाही करने की मांग की।

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जून 2018 में रजनीश कपूर ने सर्वोच्च न्यायालय में जनहित याचिका दायर कर प्रवर्तन निदेशालय के उपनिदेशक राजेश्वर सिंह की आय से अधिक सम्पत्ति की जांच की मांग की थी। क्योंकि सत्ता के गलियारों में छोटे से पद पर तैनात द्वितीय श्रेणी के इस अधिकारी का संपर्क जाल और कारोबार दूर-दूर तक फैला हुआ है, ऐसी बहुत शिकायतें आ रही थी। सर्वोच्च न्यायालय ने रजनीश कपूर की याचिका को गंभीरता से लेते हुए, इस जांच के आदेश दे दिए। उल्लेखनीय है कि भारत सरकार के कैबिनेट सचिव की ओर से भी एक गोपनीय दस्तावेज भेजकर अदालत में रजनीश कपूर की याचिका का समर्थन किया गया था।

इस पहल से भाजपा के राज्यसभा सांसद और विवादास्पद डा. सुब्रमनियन स्वामी तिलमिला गऐ और उन्होंने रजनीश कपूर को डराने के मकसद से अपनी सरकारी स्टेशनरी का दुरूपयोग करते हुए, एक पत्र भेजा। जिसमें लिखा था कि, ‘उन्हें अदालत ने आदेश दिया है कि वे श्री कपूर सूचित करे और उनका अदालत में उपस्थित रहना सुनिश्चित करे।’ यह सरासर झूठ था। न तो सर्वोच्च अदालत ने श्री कपूर के लिए ऐसा कोई आदेश दिया था और न ही डा. स्वामी से ऐसा करने को कहा था। गाहे-बगाहे हरेक के काम में टांग अड़ाने वाले डा. स्वामी ने ये पत्र राज्यसभा की सरकारी स्टेशनरी पर भेजा था। जबकि अदालत में वे राजेश्वर सिंह के पक्ष में निजी हैसियत से खड़े हुए थे। उसका राज्यसभा से कोई लेनादेना नहीं था। इस तरह यह पत्र सीधे-सीधे ब्लैकमेलिंग की श्रेणी में आता है। जिसका उद्देश्य श्री कपूर को धमकाना था। इसके पहले भी डा. स्वामी मुझे और रजनीश को इस मामले से हट जाने के लिए दबाव डाल रहे थे।

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यह रोचक बात है कि एक द्वितीय श्रेणी के अधिकारी, जिस पर भ्रष्टाचार के आरोप हो, उसकी मदद के लिए राज्यसभा के सांसद डा. स्वामी क्यों इतने बैचेन थे? इस मामले में जो तथ्य प्रकाश में आऐ हैं, वे किसी भी कानूनप्रिय नागरिक को विचलित करने के लिए काफी है।

इन घटनाओं के बाद श्री कपूर ने उपराष्ट्रपति व राज्ससभा की याचिका समिति को उक्त प्रतिवेदन भेजा है। जिसमें उन्हें घटनाओं ब्यौरा देते हुए, सर्वोच्च न्यायालय के उस दिन के आदेश की प्रति व डा. स्वामी के पत्र की प्रति संलग्न की है। जिससे कि समिति के माननीय सदस्य स्वयं देख लें कि डा. स्वामी ने सर्वोच्च न्यायालय के आदेश को किस तरह तोड-मरोड़कर रजनीश कपूर को धमकाने के उद्देश्य से भेजा और इसके लिए राज्यसभा की स्टेशनरी का दुरूपयोग किया। जोकि सीधा-सीधा कानूनन अपराध है।

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अब ये राज्यसभा समिति के सदस्यों के ऊपर है कि वे कितनी जल्दी इस याचिका पर अपना निर्णंय देते हैं। यहां यह उल्लेख करना भी जरूरी है कि डा. स्वामी राजनैतिक पाले बदलने में माहिर हैं। ये सारा देश जानता है। कभी वो राजीव गांधी के साथ खड़े होते हैं। तो फिर कभी उन्हें धोखा देकर अटलबिहारी बाजपेयी के साथ आ जाते हैं। फिर उन्हीं अटलबिहारी बाजपेयी की सरकार गिराने में जयललिता का साथ लेते हैं। फिर उन्हीं जयललिता के खिलाफ खड़े हो जाते हैं। बाबरी मस्ज़िद गिरने पर डॉ स्वामी ने देशभर में बयान दिये थे कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और उससे जुडे़ सभी संगठनों को आतंकवादी घोषित कर प्रतिबंधित कर दिया जाना चाहिए। साथ ही उन्होंने चुनाव आयोग से लिखकर मांग की थी कि भाजपा की मान्यता रद्द कर देनी चाहिए। आज वे राम मंदिर के अगुआ बनकर भोले-भाले धर्मप्रेमियों को भ्रमित कर रहे हैं।

कहाँ तो वे स्वयं को मोदी जी का शुभचिंतक बताते हैं और कहां वे रोज़ मोदी जी के नियुक्त अधिकारियों को रोजाना भृष्ट घोषित करते रहते हैं। वैसे अपने राजनैतिक दल ‘जनता पार्टी’ के उपाध्यक्ष पद पर 7 वर्ष तक उन्होंने विवादास्पद विजय माल्या को पदासीन रखा था। विवादास्पद तांत्रिक चंद्रास्वामी और हथियारों के कुख्यात अंतर्राष्ट्रीय व्यापारी अदनान खशोगी के भी वे घनिष्ठ मित्र रहे हैं। राजीव गांधी हत्या कांड में चंद्रास्वामी व डा. सुब्रमनियन स्वामी की संलिप्तता की सच्चाई्र जानने वाली जांच अभी तक नहीं हुई है। भ्रष्टाचार के विरूद्ध स्वयं को मसीहा घोषित करने वाले डा. स्वामी अपनी जनता पार्टी में काले धन को कैसे जमा करते आऐ हैं, इस पर दिल्ली उच्च न्यायालय कड़ी टिप्पणी कर चुका है। इसलिए राज्यसभा की याचिका समिति के माननीय सदस्यों को इस बे-लगाम घोड़े की लगाम कसने में कोई संकोच नहीं होना चाहिए।

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लेखक विनीत नारायण वरिष्ठ पत्रकार और स्तंभकार हैं.

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