सत्येंद्र पीएस-
रोज रोज मौतों की खबरें विचलित कर देती हैं। कल रात 12 बजे के पहले ही सूचना मिली कि फाइनेंशियल एक्सप्रेस के ग्रुप मैनेजिंग एडिटर सुनील जैन नहीं रहे। वह अपने जमाने मे तपे सम्पादक गिरिलाल जैन के पुत्र थे, जो कहते थे कि देश के प्रधानमंत्री से भी ताकतवर सम्पादक होता है। उस समय इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री थीं और गिरिलाल जैन टाइम्स ऑफ इंडिया के सम्पादक।
सुनील जैन से मेरी हल्की सी मुलाकात थी। जब भी मिलते, बड़े जोश और एनर्जी से। कभी लगता ही नहीं कि इतनी बड़ी पर्सनालिटी से मिल रहा हूँ। हालांकि जब वह फाइनेंशियल एक्सप्रेस में चले गए, उसके बाद कभी मुलाकात नहीं हुई। लेकिन उनसे मिलकर हिंदी के चिरकुट टाइप सम्पादक जरूर याद आते थे जिनमें से ज्यादातर को सामान्य इंसान कहना भी मुझे मुश्किल फील होता है।
सुनील जैन ने स्पेक्ट्रम घोटाले के खिलाफ मुहिम चलाई थी। उस दौर में उनके साप्ताहिक कालम का इंतजार रहता था कि आज कौन सा बम फोड़ेंगे? हालांकि उसके बाद मुझे पढ़ने का मौका नहीं मिला कि क्या वह अब भी सचमुच मानते थे कि स्पेक्ट्रम मामले में कोई घोटाला हुआ था? जो भी हो, मुझे लगता है कि वह रीढ़ वाले व्यक्ति थे और उनकी सत्ता के सामने हिलने वाली कोई अदृश्य पूंछ नहीं थी।
आज भी रात के 12 नहीं बजे कि फेसबुक पर सूचना आई कि हमारे एक प्रिय मित्र और रिलेटिव मिथिलेश कुमार मल्ल के बहनोई नहीं रहे। वह भोपाल में रहते थे। ऐसी सूचनाएं सुनकर ऐसा झटका लगता है कि पूरी रात की नींद हिल जाती है।
पता नहीं कैसे ये मुख्यमंत्री प्रधानमंत्री लोग ये नीचे कटिंग में दी गई खबर टाइप खबरें रोज देखने के बावजूद कुर्सी से चिपके और जिंदा रहते हैं! क्या मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री बनने के बाद लोग मनुष्य नही रह जाते? उन्हें अवसाद, दुःख, असहायता नहीं होती और लाशों के ऊपर सफर करके कुर्सी पाने के आदती होते हैं ये लोग?