मध्य वर्गीय निवेशकों को कई सौ करोड़ का चूना लगाने वाले सुपर टेक मालिकों आर के अरोड़ा, पत्नी संगीता और बेटे मोहित अरोड़ा के लंदन भागने की खबर झूठी साबित हुई।
इन लोगों की तरफ़ से भड़ास को जानकारी दी गई है कि अरोड़ा ख़ानदान भारत में ही है और सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का बारीकी से अध्ययन कर इससे सम्बंधित रणनीतियों को बनाने में मशगूल है।
ज्ञात हो कि सुप्रीम कोर्ट ने अभी अभी नोएडा में सुपरटेक का चालीस मंज़िला अवैध निर्माण ढहाने का आदेश दिया था।
सुपरटेक ख़ानदान के लंदन भागने की खबर आउटलाइन पत्रिका ने website पर प्रकाशित किया था जिसे अब हटा लिया है, बाक़ी भी हटा ही रहे होंगे।
पर यूआरएल पूरा पढ़ लीजिएगा। समझ आ जाएगा खेल!
https://www.outlookindia.com/website/amp/business-news-supertech-owners-in-london-indian-govt-readying-for-another-extradition-battle/393500
अश्विनी कुमार श्रीवास्तव-
नैशनल बिल्डिंग कोड का नियम यह है कि किसी भी दो आवासीय टावर के बीच कम से कम 16 मीटर की दूरी होनी जरूरी है, लेकिन प्रॉजेक्ट में टावर नंबर 16, 17 की मंजूरी देने पर टावर नंबर-15, 16 और 1 के बीच मौके पर 9 मीटर से भी कम दूरी बची। कोर्ट ने एनबीसी से इसके लिए निरीक्षण करवाकर रिपोर्ट भी ली थी।
अथॉरिटी की तरफ से कोर्ट में बताया गया कि मौके पर जो निर्माण हुआ है नियम के मुताबिक है। किसी भी नियम का उल्लंघन नहीं है।
लेकिन देश की सबसे बड़ी अदालत ने मंगलवार को नोएडा अथॉरिटी के लिए सबसे बड़ा फैसला सुनाया। फैसला यह है कि सुपरटेक एमरॉल्ड कोर्ट सोसायटी के निर्माणाधीन 40 मंजिल के दो टावर टूटेंगे। कोर्ट ने इस निर्माण को अवैध करार दिया है। साथ ही यह भी कहा है कि नोएडा अथॉरिटी की सुपरटेक के साथ मिलीभगत थी।
कोर्ट के इस आदेश और टिप्पणी के बाद नोएडा अथॉरिटी के तत्कालीन अधिकारियों की कार्यशैली सवालों के घेरे में आ गई है। साथ ही, बिल्डर्स के लिए किस तरह से अथॉरिटी में नियम-कानून ताक पर रखे गए यह भी सामने आ गया है।
दिल्ली- एनसीआर की दिग्गज रियल एस्टेट कंपनी सुपरटेक के दो टॉवर इसलिए तोड़े जा रहे हैं क्योंकि उसने अथॉरिटी से नक्शा पास तो करा लिया था लेकिन अप्रूवल में नियमों की अनदेखी की गई थी। इसके अलावा दो माह के भीतर कम्पनी को सभी फ्लैट ओनर का पूरा पैसा ब्याज सहित लौटाने का भी आदेश दिया गया है।
यह आदेश बेहद सराहनीय है और देशभर में इसका असर भी दिखाई देगा। दरअसल, नियम- कानून से खिलवाड़ सिर्फ बिल्डर ही नहीं करते हैं बल्कि वह ऐसा कर ही तभी पाते हैं, जब अथॉरिटी के अफसर उनसे सांठगांठ कर लेते हैं।
हालांकि सुपरटेक के मामले में न्याय मिलने में 12 साल लगे क्योंकि तब रेरा नहीं था इसलिए अथॉरिटी के अफसर नक्शा पास करने में बेख़ौफ़ होकर मनमानी किया करते थे। उन्हें पता था कि वे कुछ भी कर लें तो भी लोग उनके खिलाफ कोर्ट जाते ही नहीं है क्योंकि न्याय दशकों बाद मिल पाता है।
नक्शे को पास करते समय नियम को दरकिनार कर देना और बाद में भी उसमें अपनी सुविधानुसार फेरबदल करा लेना बिल्डर्स के लिए आम बात हुआ करती थी। जबकि आज तो रेरा के तहत प्रावधान यह है कि नक्शे में एक रत्ती भर का भी बदलाव करने के लिए 60 प्रतिशत से ज्यादा आवंटियों की मंजूरी लेनी होगी।
रेरा ने इसी तरह तमाम नियम कानूनों को स्पष्ट करके और उन्हें तोड़ने पर तत्काल व भारी दंड का प्रावधान करके रियल एस्टेट में तस्वीर बहुत सुखद कर दी है।
यही कारण है कि आज रेरा के आने से न्याय में इतनी देरी की समस्या ही खत्म हो गई है क्योंकि रेरा महज कुछ ही महीनों में फैसला सुना देता है। लिहाजा अथॉरिटी और बिल्डर की सांठ गांठ के खिलाफ किसी आम इंसान का टक्कर लेना पहले की तुलना में अब बहुत आसान हो चुका है।
आम आदमी को मिले इसी हथियार की बदौलत नियम कानून को अथॉरिटी के अफसरों या शासन- प्रशासन से सांठगांठ करके ताक पर रखना और मनमानी करना अब आग से खेलने जैसा हो चुका है।
नक्शा पास करते समय की गई धांधली को छिपाने के लिए बरसों बाद कोई बिल्डर फिर से अथॉरिटी के अफसर से मिलीभगत करके बचने के लाख रास्ते निकाल ले लेकिन यह सच ज्यादातर को पता चल चुका है कि नियम कानूनों को उस वक्त तोड़ना और बाद में बिना 60 प्रतिशत आवंटियों की मंजूरी के नक्शे में गुपचुप फेरबदल करा लेने की गलती बड़े बड़े रियल एस्टेट दिग्गज को जेल और जबरदस्त जुर्माने की गिरफ्त में ला सकती है।
और जिन्हें यह सच अब भी समझ नहीं आया है कि रियल एस्टेट में कानून का डंडा अब बहुत मजबूत हो चुका है, वे अब भी खुद को डेढ़ सयाना समझने के भ्रम में हैं… बिना यह एहसास किए कि बदले दौर में बकरे की अम्मा की खैर बहुत देर तक नहीं रहने वाली…