जेएनयू को टैंकों से कुचलने का सुझाव दौड़ रहा है!

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-डॉ राकेश पाठक-

आइये जान लीजिये हम किस तरफ बढ़ रहे हैं। जेएनयू में कुछ अलगाववादियों  के नारों पर देश भर में उफान आया हुआ है। एक पक्ष है जो बिना किसी जाँच पड़ताल , मुकदमा अदालत , सबूत गवाही के नारे लगाने वालों की जीभ काटने , सीधे गोली मारने या फांसी पर लटका देने की मांग कर रहा है।ऐसे लोगों में उन्मादी भीड़ के साथ पूर्व मंत्री और सांसद तक शामिल हैं।सोशल मीडिया ऐसे बयानों और मांगों से अटा पड़ा है।

अब जैसे इतने पर ही तसल्ली नहीं हुयी तो सरहद पर तैनात बंदूकों के मुंह भीतर की ओर मोड़ने की मांग दो दिन से चल रही है। और अब जेएनयू को टैंकों से कुचलने का सुझाव दौड़ रहा है। चीन की राजधानी बीजिंग में “थ्येन आन मन चौक” पर फौजी टैंकों से हज़ारों छात्रों को कुचलने का हवाला दिया जा रहा है। और ये सुझाव बहुत ज़िम्मेदार लोगों का है। पूरा सुझाव उपर स्क्रीन शॉट में है।

कुछ बहुत ही सादा सवाल-

1) क्या चंद देशद्रोहियों की सजा पूरी यूनिवर्सिटी को दी जायेगी?
2) क्या टैंकों से विचार को कुचला जा सकता है?
3) क्या सचमुच ये इतना बड़ा मामला है कि सेना के बेलगाम टैंक हज़ारों बेगुनाह छात्रों को कुचल दिया जाये?

और इन सवालों के जवाब भी दीजिये~

* जम्मू कश्मीर में ऐसे ही नारे हर हफ्ते लग रहे हैं।दशकों से लगते रहे हैं लेकिन अब ज्यादा लगते हैं। तो वहां अब तक कितनी बार टैंक भेजे?
* पिछले बरस वहां की सरकार ने मसर्रत आलम को जेल से छोड़ दिया था। बाहर आते ही उसने बड़ी रैली की। पाक झंडे लहराये। “मेरी जान पाकिस्तान” के नारे ही नहीं लगाये बल्कि चैनलों के कैमरे पर गाल बजाता रहा।बहुत हल्ला मचा तब दुबारा जेल में डाला।भूले तो न होंगे तब किसकी सरकार थी?
क्या तब टैंक भेजे ??
* उत्तर पूर्व के कई राज्यों में दशकों से हिंसक अलगाववादी आंदोलन चल रहे हैं।सरकार बरसों बरस समझौता वार्ताएं चलाती है। अब भी चल रही है। कहाँ कहाँ टैंक से कुचले गए देशद्रोही…? नागालैंड के घोषित विद्रोहियों से इसी सरकार का समझौता होने वाला है। और हां सरकार उनके प्रथक झंडे पर भी राज़ी है।
* हद ये है कि उग्र राष्ट्रवाद के बुखार में तपते लोग ऑपरेशन ब्लू स्टार और हज़रत  बल का हवाला दे रहे हैं। क्या इन उन घटनाओं से इसकी तुलना उचित है?
* देश के आधा दर्जन से ज्यादा राज्यों में नक्सलियों ने सशस्त्र संघर्ष छेड़ रखा है। आज तक किसी सरकार ने न उन पर बम बरसाए न टैंक भेजे।

सबसे ज़रूरी बात-
जिस दिन टैंक बैरकों से निकलेंगे उसके बाद वे आसानी से लौट कर नहीं जायेंगे। वे सिर्फ जेएनयू तक नहीं रुकेंगे। अगले दिन वे बीएचयू पहुंचेंगे और उसके बाद जीवाजी या बरकतुल्लाह यूनिवर्सिटी। वे यहीं नहीं रुकेंगे, किसी दिन आपके घर दफ़्तर को कुचलने आ जायेंगे

हां अनदेखा नहीं किया जा सकता
आज सुबह जब टैंकों की मांग की पहली इत्तला दी तो कुछ सुधिजनों की राय सामने आई कि ऐसी मांगों या बातों को अनदेखा या इग्नोर करना चाहिए।किसे के चाचाजी ने उससे कहा कि इग्नोर करो तो किसे के अब्बू ने। नहीं बिलकुल नहीं, इग्नोर नहीं करना चाहिए। ऐसी उन्मादी बातें बिना पैरों के दौड़तीं हैं और बहुत जल्द समाज की सामूहित चेतना में घर करने लगतीं हैं। स्वतन्त्र चेता लोगों की ज़िम्मेदारी है कि समय पर आगाह करें कि क्या ठीक है क्या नहीं? सिर्फ इग्नोर करने से काम नहीं चलेगा। फिर भी अगर आपको लगता है कि जेएनयू को टैंकों से कुचलना सही है तो आप ऐसा करके देख लीजिये।

बार बार ये लिखना ज़रूरी नहीं है कि JNU में जिन लोगों ने भी देशद्रोही काम किया है उनको माफ़ नहीं किया जा सकता। उनकी सही जगह काल कोठरी ही है।

लेखक डॉ राकेश पाठक डेटलाइन इंडिया के प्रधान सम्पादक हैं.



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