संजय वर्मा-
प्राइम पर इन दिनों एक सीरियल देख रहा हूं -‘ मार्बलस मिसेज मेज़ल ‘! यह एक खूबसूरत खुशहाल शादीशुदा जोड़े की कहानी है । पति जोएल एक कंपनी में वाइस प्रेसिडेंट है , पर उसकी महत्वाकांक्षा स्टैंड-अप कॉमेडियन बनने की है । वह हर रात काम खत्म करने के बाद एक सस्ते कैफे में जाकर परफॉर्म करता है । उसकी पत्नी मेज़ल उसका हौसला बढ़ाने के लिए उसके साथ जाती है । उसे दर्शकों की प्रतिक्रियाएं बताती है , सुझाव देती है । पर जोएल बुनियादी तौर पर अच्छा कॉमेडियन नहीं है । एक दिन वह कैफे में बहुत बुरा परफॉर्म करता है । उसके जोक्स पर कोई नहीं हंसता , वह हड़बड़ा कर कुछ का कुछ बोलने लगता है और शर्मिंदा होकर स्टेज से उतर आता है ।
उस रात एक अजीब बात होती है । जोएल अपना सामान पैक करता है और मैज़ेल को छोड़ देता है । वह कहता है कुछ समय से उसका अफेयर अपनी सेक्रेटरी पेन से चल रहा है । पैन एक मूर्ख और झल्ली लड़की है जबकि मेज़ल सुंदर , बुद्धिमान , कुशल गृहणी और उसके दो बच्चों की मां है । जोएल का मैजल को छोड़ना जितना आश्चर्यजनक है उससे ज्यादा हैरान करने वाली बात इस फैसले की टाइमिंग है । जोएल ने इस फैसले के लिए वही रात क्यों चुनी जब वह असफल हुआ , उसने अपमानित महसूस किया । यह इस महान रचना का एक महान मोमेंट है ।
हम अक्सर साहित्य में , फिल्मों में मोहब्बत , दया क्रोध , नफरत , बदला , जुदाई की बात करते हैं पर शर्मिंदगी या एंब्रेसमेंट इन सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है जो इंसान के सारे जीवन को उलट-पुलट कर देता है । जोएल की असफलता में मेजल का कोई हाथ नहीं है वह तो उल्टा उसके जख्म पर मरहम लगा रही है पर वह उसी को छोड़कर एक कमतर लड़की के पास जाता है । क्यों ? क्या जोएल खुद से बेहतर औरत के पति होने के दबाव में था और उसकी असफलता और उससे उपजी शर्मिंदगी ने इस रिश्ते के ताबूत में आखिरी कील ठोक दी ।
मैंने अपने असल जीवन में एक दो ऐसे प्रेम प्रसंग देखे हैं , जहां एक काबिल समर्पित और अच्छी पत्नी की अच्छाई के सामने एहसास ए कमतरी के शिकार पति ने दूसरी कमतर औरत से संबंध बनाए । शायद एक कमजोर, मूर्ख लड़की के आंचल की शरण में उसके भीतर के आहत मर्द को सुकून मिलता हो ।
मेरी प्रिय और हमारे समय की महान शायरा नुसरत मेहंदी कहती हैं –
मैं क्या करूं कि तेरी अना को सुकूँ मिले /
गिर जाऊं टूट जाऊं बिखर जाऊं क्या करूं !
मुझे यह शे’र औरत और मर्द के रिश्ते पर लिखा हुआ एक महाकाव्य लगता है । कई उलझे हुए रिश्तो की जड़ में यह आहत अना है । दुख की बात यह है इसके लिए जिसे जिम्मेदार ठहराया जाता है उसकी कतई कोई गलती नहीं होती ।
लोग जब एंब्रेस फील करते हैं ,तो वे भाग जाते हैं । कुछ सशरीर तो कुछ मन से !
मेरा एक बहुत प्यारा दोस्त था । एक बार वह मेरे घर आया । शराब की महफिल जमी। कुछ उस दिन जोश ज्यादा था और कुछ उसकी नादानी । उसने ज्यादा पी ली । घर में ही उल्टियां की और अंटागफ़िल हो गया । मैंने उसे सोफे पर सुला दिया । मैं जब सुबह उठा तो वह जा चुका था । मैंने उसे फोन लगाया उसने नहीं उठाया । मैंने मिलने की कोशिश की उसने टाल दिया । मेरी लाख कोशिशों के बावजूद हमारे संबंध फिर कभी वैसे नहीं रहे । मैंने उसकी शराब और उल्टी को मामूली दुर्घटना माना था । मुझे बिल्कुल बुरा नहीं लगा, मगर वह आज तक उस शर्मिंदगी से उबर नहीं पाया और उसने मुझसे रिश्ता तोड़ लिया । उसके ज्यादा शराब पीने में मेरी कोई गलती नहीं थी , पर सजा मुझे मिली ।
इंसान ऐसे ही होते हैं दोस्तों ! सिर्फ प्यार काफी नहीं उन्हें शर्मिंदगी से बचाना भी हमारे ही हिस्से में आता है । यह एक नाजुक मसला है। कहते हैं- मैन नीड्स सिंपैथी मोस्ट ; व्हेन दे डिज़र्व इट लीस्ट । यानी इंसान को सहानुभूति की जरूरत तब सबसे ज्यादा होती है जब वे इसके हकदार सबसे कम होते हैं ।
तो नादान सजनियों एक बार चेक कीजिए – क्या आपका अनाड़ी बलम कभी शर्मिंदगी महसूस करता है ? ऐसे समय उसे सहानुभूति दीजिए । पर ठीक मात्रा में । इतनी कम नहीं कि औपचारिकता लगे और इतनी ज्यादा नहीं कि दया लगने लगे ।
एक और सलाह जो खतरनाक है और कुछ हद तक गलत भी । पर मैं अपने व्यक्तिगत जीवन में उस पर अमल करता हूं । ऐसी स्थिति में ‘अंडर प्ले’ कीजिए । अपने पंख छुपा लीजिए ! क्या पता उसकी अना को सुकूँ मिल जाए । टेक्निकली सही हो या गलत ,रिश्ता बच जाता है !
Satya
April 5, 2022 at 4:32 pm
Kya khoob likha hai….