Urmilesh-
बीती रात भोजन के बाद कोई गंभीर पठन-पाठन का मन नहीं था. बाहर निकलने की भी इच्छा नही हुई तो टीवी खोल लिया. एक बड़े चैनल पर गया. बहुत तेज और चमकीला चैनल है. ‘अच्छी पत्रकारिता’ के लिए हमेशा पुरस्कार पाता रहता है. इस पर एक खबर पेश की जा रही थी: देश के कई इलाकों में पेट्रोल के दाम 100 रुपये पार.
खबर की अगली विश्लेषणात्मक लाइन एक बड़े सत्ताधारी नेता को उद्धृत करते हुए पेश की गयी: इस भारी बढ़ोत्तरी के पीछे डाक्टर मनमोहन सिंह की तत्कालीन सरकार की नीतियां ही जिम्मेदार हैं. हमारी तो मनमोहन सिंह हों या वाजपेयी, दोनों की अगुवाई वाली सरकारों की अर्थनीति से असहमति थी. पर ये समझ में नहीं आया कि दामों की मौजूदा बढ़ोतरी के लिए मनमोहन सिंह सरकार कैसे जिम्मेदार है?
ये ठीक है कि मौजूदा भारत के चैनल हैं तो सत्ताधारियो का साथ देना ही है पर खबर को गोबर क्यों बना रहे हो भाई? खबर छोडकर कुछ और दिखाते! पत्रकारिता का ऐसा मज़ाक तो नहीं उड़ता!
दूसरी खबर आई: पाकिस्तान में मंहगाई आसमान छू रही है. पाकिस्तानी-जनता और विपक्ष के आक्रोश के निशाने पर इमरान सरकार! महंगाई के आंकड़े भी दिखाए जा रहे थे. क्या खबर थी! पर ऐसी खबर सिर्फ पाकिस्तान की ही हो सकती है क्योंकि भारत मे तो चीजें ‘लगातार सस्ती’ जो हो रही हैं! इसलिए भूलकर भी भारत के संदर्भ में महंगाई का जिक्र नहीं करना है! क्या किसी लोकतांत्रिक देश में ऐसे मीडिया की कल्पना की जा सकती है?
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