प्रखर श्रीवास्तव-
नामी व्यक्तित्व के तमाम फेक अकाउंट के बीच असल अकाउंट की प्रमाणिकता के लिए शुरू किया गया ब्लू टिक , आज स्टेटस सिंबल का रूप ले चुका है | जितनी संतुष्टि सरकारी सेवक को पेंशन की होती है, प्रतिस्पर्धा के इस दौर में उतने ही खुशी ब्लू टिक पा जाने वाले लोगों को भी होती है |
इस तरह पहचान के वेरिफिकेशन के लिए शुरू हुआ ब्लू टिक खासकर बुद्धिजीवी वर्ग के बीच आम और खास का खेल बन कर रह गया, इस खेल में गेम चेंजर की भूमिका निभा रहे हैं ट्विटर के नए सीईओ ऐलन मस्क, जिन्होंने कंपनी की कमान संभालने के चार दिन भीतर ही घोषित किया कि वेरिफाइड प्रोफाइल वाले सभी लोगों को इस फीचर का फायदा उठाने के लिए 8 डॉलर (661 ₹) प्रति माह खर्च करने होंगे | जिसका ट्वीटर यूजरस ने भारी विरोध करते हुए, भुगतान कि बजाए ब्लू टिक त्यागने कि बातें कहीं, मगर देखना होगा कि कितने मजबूत चेतना के व्यक्ति इसे त्याग कर खुद को खास से आम बना लेंगे ?
ऐलन मस्क नुक्सान और मुनाफे का तराजू लिए पूर्णतः एक सफल व्यवसाई हैं, इसलिए उनसे लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा कि अपेक्षा नहीं की जा सकती , वैसे ऐप के ऊपर पैसा की मांग कोई नई नहीं है, Youtube Premium, Teligram & Snapchap Premium विज्ञापन न दिखाने के साथ कुछ अतिरिक्त सेवाओं के लिए पैसा लेते ही हैं, ट्विटर ने भी 8 डालर देने के बदले विज्ञापन न दिखाने के साथ ही रिप्लाई, मेंशन, सर्च में प्राथमिकता देने जैसी कुछ सुविधाओं की बात बताई है|
टेक जानकारों की माने तो जिस तरह इंस्टाग्राम पर रील से पैसे कमाए जाते हैं, और यूट्यूब पर वीडियो के हिट्स और व्यू से उस प्रकार ट्विटर का पास कोई बहुत खास इंगेजिंग फैक्टर नहीं है इसलिए ही अन्य एप्लीकेशन के मुकाबले वहां पर विज्ञापन की भी कमी है |
बिज़नेस टुडे की आकांक्षा चतुर्वेदी ट्विटर की 2022 अर्निंग रिपोर्ट का जिक्र करते हुए बताती हैं कि ट्विटर 270 मिलियन के घाटे में है, और ये स्थति पिछले 2-3 सालों से बनी हुई है|
टिक का भौकाल और आर्थिक मार के बीच जब पैसा न देने और टिक वापस करने की बात ने जोर पकड़ा तो ट्विटर ने कहा कि “8 डॉलर अधिकतम है जो कि सबको नहीं देना, देश की क्रय शक्ति प्राथमिकता के हिसाब से भुगतान मान्य होगा” , जो कि भारत में 185 ₹ पड़ेगा | बिज़नेस टुडे कि हिसाब से वर्तमान में मौजूद इंएक्टिव खातों को मिलाकर भी यदि प्रत्येक खाता 8 डालर कि रकम से भी देखा जाए तो ट्वीटर का घाटा उस आंकड़े से दस गुना अधिक निकलता है , इसलिए इस योजना से ट्विटर घाटे से उबर जाए ऐसा मुमकिन नहीं दिखता है , जबकी ट्वीटर के शीर्ष पद पर बैठे जो लोग बर्खास्त हुए, वो अपने साथ एक मोटी रकम भी ले कर गए इसलिए ट्वीटर को लाभ कि स्थति में लाने के लिए ये रास्ते आर्थिक जानकारों के नज़रिए से भी उचित प्रतीत नहीं होते…
खैर इतनी बवाल बाजी के बीच ब्लू टिक की मानसिक छवि के मूल्यों में गिरावट तो हुई है, मगर कई बुनियादी सवाल भी पैदा हुए जैसे कि –
1) भारत में वर्तमान में मौजूद सरकारी दफ़्तरों, राज्यपालों, पुलिस अधिकारीयों व आई आई एस अधिकारीयों के वेरीफाइड खातों में यदि आने वाले वक्त में ब्लू टिक रहता है तो इसका भुगतान उनके निजी खर्चो से होगा या कर दाताओं के पैसे से ?
2) ट्वीटर पर व्यवसायिक लक्ष्यों की पूर्ति के चलते अब अकाउंट असली है या फर्जी इस बात के लिए कौन आश्वस्त करेगा और ट्विटर के पास क्या योजना है कि वह छद्म नामों से नफरती कंटेंट फैला रहे नकली प्रोफ़ाइल को पहचान पाए ?
इस दौर में हम सब डाटा कंपनियों की विशालकाय फाइलों में एक आंकड़ा भर हैं, जिस भीड़ का प्रयोग विज्ञापन दाताओं को रीच दिखा कर ₹ लेकर किया जाना आम है, मतलब हम एक उत्पाद है जिसको दिखा कर विज्ञापन के बाजार का मुनाफा चल रहा इसके बाद यदि हम विज्ञापन न देखना चाहें तो उसके लिए ₹ देने की स्कीम एक्टिव हुई और अब खास वर्ग के ब्लू टिक के लिए ₹ कितना फायदेमंद होगा या कितना नुकसानदेह ये वक्त बताएगा मगर वर्तमान में इस विरोधाभासी लड़ाई में मीम की तलवारें मैदान में हैं |
प्रखर श्रीवास्तव
स्वतंत्र लेखक एवं समीक्षक
शोधार्थी, पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग,
लखनऊ विश्वविद्यालय