शशिभूषण-
कल उदय प्रकाश जी ने मेरा पत्र पढ़ने के बाद फ़ोन किया। उन्होंने कहा, मैंने आपका पत्र पढ़ा। मैं आपको सचमुच बहुत प्यार करता हूँ। मैंने चंदा दिया इसका कोई राजनीतिक मतलब नहीं है। जो राजनीति समझ लेता है वह राजनीति छोड़ देता है। राजनीति में राज है उसकी क्या नीति होगी? मैं किसी प्रकार की राजनीति में नहीं हूँ। अब किसी प्रकार की राजनीति का कोई अर्थ नहीं है। मेरे गांव के लोग आए और मैंने उन्हें चंदा दे दिया। मेरे साथ कोई ज़बरदस्ती नहीं थी। वे सब अच्छे से पेश आये। दान दक्षिणा यहां का मुहावरा है जैसे लोग दान दक्षिणा दे देते हैं वैसे ही मैंने दे दिया। इसमें मुझे कुछ भी ग़लत नहीं लगता। मेरे चंदे से क्या फ़र्क़ पड़ता है ? मेरी परवाह किसे है ? फेसबुक पर इसलिये रसीद लगायी क्योंकि अगले दिन अख़बारों में छपता और यह भयंकर होता। छिपाना हो जाता। सच्चाई यह भी है मैं राम को मानता हूँ। वे मेरे दिल में हैं।
काफ़ी देर तक बात हुई। वैसी ही जैसे कभी-कभी हुईं थीं। मैंने भी अपनी बात दोहराई तिहराई कि मैं आपको बहुत प्यार करता हूँ और आपका उतना ही सम्मान करता हूँ। लेकिन मुझे बहुत दुख हुआ। धक्का लगा। सोच ही नहीं पा रहा था क्या मतलब है इसका ? फिर लोग आपका प्रशंसक मानकर मेरी ही नाक काट लेने आये। मैं कभी नहीं चाहूँगा कि जो लिख दिया उससे अब कभी आप मुझसे बात ही न करें। मैंने जो सोचा बिल्कुल वही लिखा है। बहुत से लोग ऐसा ही सोच रहे हैं। आपको अंदाजा है आप कितने अकेले हो रहे हैं ? और किस -किस तरह के लोग इस घटना से जश्न मना रहे हैं ? उदय जी ने कहा, मैं अकेला ही हूँ। अकेला रह सकता हूँ। और जितना भी अकेला कर दिया जाऊं जब तक मेरी हत्या न कर दी जाए मैं अकेला रह सकता हूँ। मैंने करियर या राजनीतिक सुरक्षा के लिए चन्दा नहीं दिया। लोग आए मांगा तो दे दिया।
ऐसी ही कितनी बातें थीं जो हुईं।
मैंने बहुत सोचा। मुझे ख़याल आया अगर उदय जी के चंदा देने के राजनीतिक निहितार्थ निकल सकते हैं या साफ़-साफ़ निकलते हैं तो उदय जी की बातें भी झूठ ही क्यों समझी जानी चाहिए? कम से कम मैं कौन होता हूँ उनकी यह व्यक्तिगत आज़ादी छीन लेने वाला कि उनके सम्बन्ध में नतीज़े निकाल लूं और वही सही ठहराऊं जो मैंने समझा? मुझे उदय जी का पक्ष मान लेने में क्या अड़चन होनी चाहिए ? उन पर दोष ही दोष मढ़ देने से मुझे क्या मिलेगा ? किसी ऐसे इंसान को राजनीतिक ही क्यों मानना चाहिए जो बार-बार कहे मैं राजनीतिक नहीं हूँ। किसी राज्य में कोई बिल्कुल वैसे ही कैसे रह सकता है जैसा चाहे ? फिर उदय जी के लेखन में तो खोट है नहीं। वे अपने श्रेष्ठ लेखन के कारण ही सम्मान और प्रेम के पात्र बने। मैंने उनसे कहा, आप से बात करके कोई आपके ख़िलाफ़ कैसे रह सकता है ? कैसी निर्दोष बातें करते हैं आप। मगर इतनी बड़ी दुनिया में आप किस-किस से बात कर उसे समझा सकते हैं ? आप कहानियों में लिखते हैं जब यहां यह हो रहा था तो दुनिया में कहां क्या हो रहा था तो क्या चंदा देते समय नहीं सोचा कहाँ क्या-क्या हो रहा है? उदय जी ने कहा, जो भी हो मैंने क्या ग़लत किया ? मैं कहीं से राजनीतिक व्यक्ति नहीं हूँ। मैंने सिर्फ़ चंदा दिया और इसका कुछ मतलब नहीं है।
मूल पत्र ये है-
प्रिय उदय प्रकाश जी,
मैंने रसीद देखी आपने भावी हिन्दू राष्ट्र के सपने और बुनियाद राम मंदिर निर्माण को अपनी ओर से चंदा दे दिया है। चंदा दान या दक्षिणा नहीं होता है फिर भी आपने कहा है तो मुझे मान लेने में हर्ज़ नहीं। मैं मानता ही तो आया आपका लिखा-बोला। लेकिन उदय जी आपने जो चंदा दिया है वह राजनीतिक सुरक्षा निधि है। दान भारतीय अर्थों में और हमारी अब तक की सांस्कृतिक समझ के अनुसार चंदे से भी बड़ा आंतरिक सहयोग या संस्कार दाय होता है। काश आपने चंदा ही दिया होता तो हम उसे एक छोटा मोटा निवेश समझकर भूल सकते।
शुक्रिया उदय जी आपने मुझ जैसे सृजन अकिंचन को अपनी दान की रसीद दिखाकर जगा दिया है। आप पर मैंने जितनी अध्ययन उम्र लगायी थी आपने उसी अनुपात में मुझे सदमा देकर जगा दिया है। स्वीकार करूँगा आपका यह कदम मेरे लिए बड़ी शिक्षा है। मैं आज नागरिक होने के नाते आपकी कहानियों लेखों और सचमुच के स्नेह से ज़्यादा इस रसीद शिक्षा से लाभान्वित हूँ। अफ़सोस मुझे इतनी देर से देखना आया है क्योंकि आपने मेरे देखते-देखते अपना करियरवादी स्वरूप पाया है। हालांकि लोग कह रहे आपने खोया है। पर वह जाया नहीं हो सकता जो आपने पाया है। आपसे कोई क्या छीन सकता था आप विकसित मस्तिष्क हैं। और अब तो खैर न्यू इंडिया के पब्लिक इंटेलेक्चुअल होंगे।
उदय जी, मैं जान गया हूँ जिस अयोध्या ने राम से जल समाधि ले ली थी उसी अयोध्या ने आपसे चंदा ले लिया और आपके ही अनुरोध पर शुभ अंक वाली रसीद काट दी है। उम्मीद है आपका यह निवेश आपको कई गुना लौटाएगा। इसे कौन याद रखेगा अयोध्या ने आपको ढेर कर दिया ? सच पूछिए तो अयोध्या के आगे आप टिक भी कितना सकते थे। आगे देखना यह है कि अयोध्या भारत से क्या-क्या माँग लेती है ? और भारत का संविधान कितना टिक पाता है। और हां, आप इस रसीद के साथ अपने विचारों को कितना सलामत रख पाते हैं। क्योंकि किसी ने कहा है घोड़ा घास से यारी करेगा तो खायेगा क्या ? फिर भी आप कह रहे हैं तो मैं आखिरी बार मान लेता हूँ अपनी रसीद बोकर आप काग़ज़ पर आगे भी मनुष्यता उगा लेंगे। उगाइयेगा हम देखेंगे।
उदय जी मुझे माफ़ करें मैं समझता था आप मुँह में बुद्ध बग़ल में संघ के राम रखने वाले कभी नहीं हो सकते। आप भारतीयता की कीमत पर धार्मिक राजनीति का मंदिर नहीं चुन सकते। लेकिन अब आप हिंदी साहित्य के इतिहास में अमर हो ही चुके हैं तो हम जैसे बुद्धि अकिंचनों की निंदा प्रशंसा से ऊपर उठकर हँसते रहिएगा, अंतरराष्ट्रीय आकाश में। मैं चाहता हूँ आपको कभी इस बात से दुख न हो कि हम सब और आपकी आने वाली पीढ़ियों में बच्चे जो भारत से बाहर भी होंगे सच्चाई से कह सकेंगे कि अयोध्या वाले हिन्दू राम मंदिर में आपके खून पसीने की कमाई लगी है। हिंदी में कलम घिसने से मिलने वाली ख़ून पसीने की पैसा पैसा जोड़कर बनी 5400 रुपये मात्र की कथित शुभ धनराशि !
उदय जी मैं आपके आगे क्या हूँ ? आपके समान दूसरा लेखक हिंदी में कौन है? और आपके स्नेह से प्रसन्न रहने के अतिरिक्त मैंने कब क्या मांगा या चाहा है ? लेकिन अब जबकि आपने अपना पक्ष मेरे दिल के गाल पर रसीद कर दिया है तो मुझे दुखी होने का अधिकार तो देंगे न? मैं आपसे कह नहीं सकता कि आपका प्रशंसक होने के कारण किस प्रकार भांति-भांति के लोग मेरी नाक काट लेने को बढ़े आते हैं। अकारण। फिर भी मैं आपकी कभी निंदा नहीं करना चाहूँगा क्योंकि मैंने सच्चे मन से आपकी निःस्वार्थ प्रशंसा कर रखी है। मुझे अपने विगत की लाज तो रखनी पड़ेगी। इसी बात की अधिक ग्लानि है। बस शोक किया करूँगा कि आपने भी मारे गए कितने लोगों की लाश पर खड़े होकर कथित शुभ अंकों वाली रसीद कटवा ली। उदय जी चंदा देना न देना आपका अधिकार है लेकिन मुझे आशीर्वाद दीजियेगा कि मैं बिना झूठ बोले चंदा देने से बचा रहूँ और ज़रूरी हो जाने पर मना कर देने की हिम्मत रख सकूँ। अगर कोई छोटा मुँह बड़ी बात हो गयी हो तो क्षमा भी चाहता हूँ।
आपको वाल्मीकि और तुलसी की पांत का अखिल भारतीय लेखक हो जाने की बधाई। भवतु सब्ब मंगलम !
आपका
शशिभूषण
sanjay vyas
February 8, 2021 at 1:43 pm
uday ji chanda dena koi gunah nahi he…safai dene ki koi zarurat nahi…jis kary se man ko achchha laga, galat ho hi nahi sakta…zaruri nahi jo sahitykar ki jamat kahe vahi achchha ho… aap bheed se alag hen.