देहरादून : मुख्यमंत्री से लेकर प्रदेश सरकार के आला अफसरों के स्टिंग की साजिश बेपर्दा होने के बाद से उन लोगों में खासी बेचैनी है, जिनके इस साजिश की मुख्य धुरी के रूप में सामने आए उमेश कुमार शर्मा से संपर्क रहे हैं. न सिर्फ सियासतदां, बल्कि नौकरशाहों के बीच इस बेचैनी को साफ महसूस किया जा सकता है. चिंता यह भी साल रही कि हो न हो, कभी हुई मुलाकात को भी कहीं स्टिंग का रूप न दे दिया गया हो. चैनल के इन्वेस्टीगेशन एडीटर आयुष पंडित उर्फ आयुष गौड़ की ओर से 11 अगस्त को मुकदमा दर्ज कराने के बाद से ही नेताओं और वरिष्ठ अफसरों की ब्लैकमेलिंग की तफ्तीश कर रही है, लेकिन सरकार को अस्थिर करने की साजिश और इसमें शामिल अन्य लोगों की भूमिका को लेकर अभी बहुत कुछ सामने आना बाकी है.
सवाल यह है कि आखिर वे कौन से राजनेता और अधिकारी हैं, जिनके कहने पर अथवा जिन्हें फायदा पहुंचाने के उद्देश्य से स्टिंग का जाल बुना गया और जिनका जिक्र शिकायतकर्ता भी अभी करने से कतरा रहा है। एक और सवाल यह कि शिकायतकर्ता की मुख्यमंत्री आवास तक एंट्री किसने कराई। इसका जिक्र न तो तहरीर में है और न ही शिकायतकर्ता ने दिया है। जिस तरह की बातें उठ रही हैं उससे साफ है कि आरोपितों के पास पिछली सरकारों और इनमें अहम पदों पर तैनात रहे अधिकारियों के स्टिंग भी हैं। अब सवाल यह कि क्या ये भी पुलिस के कब्जे में हैं। इस बारे में फिलहाल परदा डाला जा रहा है। ऐसे तमाम अन्य सवाल हैं जिनका जवाब मिलना अभी बाकी है।
कानून के शिकंजे में आया चैनल का सीईओ उमेश कुमार एक समय भाजपा की आंखों का तारा रहा है. 2016 में उत्तराखंड में आए सियासी तूफान में उमेश के स्टिंग ने भी अपना अहम रोल निभाया. सूबे में भाजपा सत्ता पर काबिज हुई तो भी उसका जलवा बरकरार रहा. दल-बदल के बाद मौजूदा भाजपा सरकार में मंत्री बने दो काबीना मंत्रियों से उमेश के गहरे ताल्लुकात बने रहे. अब उसी भाजपा की सरकार ने शिकंजा कसा है तो इसके सियासी मायने भी तलाशे जा रहे हैं. कांग्रेस सरकार में उस वक्त के मुख्यमंत्री रहे हरीश रावत से उमेश की नजदीकियां किसी से छिपी नहीं रहीं. लेकिन 2016 में हरीश सरकार का तख्ता पलट करने की भाजपाई कोशिश के वक्त उमेश का नया चेहरा ही सामने आया. उसी सियासी संग्राम के दौरान तत्कालीन सीएम हरीश रावत, तत्कालीन मंत्री डॉ. हरक सिंह रावत और एक आईएएस अफसर मो. शाहिद के स्टिंग सामने आए तो पता चला कि सभी में उमेश का ही हाथ हैं.
भाजपा ने इन स्टिंग को सियासी तौर पर खूब भुनाया. बताया जा रहा है कि इसी वजह से उस वक्त तक उमेश की नजदीकियां भाजपा के शीर्ष नेतृत्व तक हो गईं थीं. अदालत के आदेश पर उत्तराखंड में हरीश की सरकार बहाल होने के बाद केंद्र की भाजपा सरकार ने कांग्रेस से बगावत करने वाले नेताओं को सीआईएसएफ का सुरक्षा कवच दिया. उसी समय यह सुरक्षा कवच उमेश को भी दिया गया. 2017 के आम चुनाव के बाद सूबे की सत्ता पर भाजपा काबिज हुई. उस वक्त भी उमेश की भाजपा से नजदीकियां बरकरार रहीं. नई सरकार का गठन होने के चंद रोज बाद ही उमेश ने अपने बेटे का जन्मदिन एक होटल में मनाया तो मुखिया समेत पूरी सरकार ने उस कार्यक्रम में शिरकत की थी.
भाजपा प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट और पूर्व सीएम विजय बहुगुणा समेत भाजपा के अन्य दिग्गजों ने इस कार्यक्रम में अपनी आमद दर्ज कराई. कुछ समय बाद केंद्र सरकार ने कांग्रेस से दल-बदल कर भाजपा में आए नेताओं को दिया गया सीआईएसएफ का सुरक्षा कवच वापस ले लिया, लेकिन उमेश की सुरक्षा अब तक बरकरार रही. इसे भी उमेश की भाजपा नेताओं से नजदीकियों से जोड़कर ही देखा गया था. मौजूदा सरकार के दो काबीना मंत्रियों डा. हरक सिंह रावत और सुबोध उनियाल की आज भी उमेश से नजदीकियां किसी से छिपी नहीं हैं. अहम बात यह भी है कि ये दोनों कांग्रेस से बगावत करके भाजपा में आए हैं.
बदले हालात में उसी भाजपा की सरकार ने उमेश पर कानूनी शिकंजा कस दिया है. इसकी वजह सत्ता के शीर्ष स्तर पर स्टिंग करने की कोशिश को बताया जा रहा है. सरकार ने जिस तरह से बेहद गोपनीय अंदाज में इस आपरेशन को अंजाम दिया है, उससे साफ जाहिर हो रहा है कि अगर उमेश के भाजपाई मित्रों को इसकी जरा सी भी भनक लग गई होती तो शायद उमेश को बचने का मौका मिल गया होता. उमेश से भाजपा की नजदीकियों के अचानक इतनी दूरी में तब्दील होने के सियासी मायने भी तलाशे जा रहे हैं. सूबे में नई सरकार का गठन होने के बाद उमेश की भाजपा नेताओं और मंत्रियों से तो खासी करीबी रही, लेकिन जानकारों का कहना है कि मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह के दरबार में उमेश की गहरी पैठ नहीं बन सकी थी. बताया जा रहा है कि इस मामले में उमेश को भाजपा के अन्य नेताओं से भी कोई मदद नहीं मिल सकी.
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