समाचार प्लस चैनल के मालिक उमेश जे कुमार के गाजियाबाद स्थित आवास पर छापेमारी के लिए शनिवार का दिन यूं नहीं चुना गया. पुलिस को यकीन था कि इस रोज उमेश कहीं भी हो करवाचौथ के व्रत के लिए वह पत्नी के पास जरूर आएगा. ऐसे में उसे पकड़ना और घर की तलाशी लेना, दोनों काम आसान हो जाएंगे. 22 अक्टूबर को कोर्ट से उमेश जे कुमार के घर का सर्च वारंट मिलने के बाद भी पुलिस खामोश रही.
अक्सर रात में होने वाली बैठक में डीआइजी अजय रौतेला और एसएसपी निवेदिता कुकरेती का पूरा जोर इस बात पर था कि सर्च वारंट के लिए पुलिस टीम के उमेश के आवास पर धमकने से पहले उसे कानोंकान खबर न लगे. तय हुआ कि करवाचौथ की रात में पुलिस टीम दून से रवाना होगी और देर रात या तड़के उसके घर की तलाशी लेगी. इसके बाद बाद तय हुआ कि करवाचौथ के दिन पुलिसकर्मी अपने-अपने घर पर त्योहार मनाने के बाद गाजियाबाद के लिए रवाना होंगे.
इस रणनीति के तहत त्योहार मनाने के बाद सीओ मसूरी बीएस चौहान, सीओ विकासनगर भूपेंद्र सिंह धौनी, एसओ राजपुर अरविंद सिंह समेत दो दर्जन पुलिस कर्मी पांच अलग-अलग वाहनों से गाजियाबाद के लिए रवाना हुए. गाजियाबाद पहुंचने के बाद इंदिरापुरम पुलिस को साथ लेकर पुलिस जब उमेश के आवास पर पहुंची तो वह घर पर ही मिल गया. इसे देख पुलिस टीम ने राहत की सांस ली और घर की तलाशी लेने के बाद उसे गिरफ्तार भी कर लिया.
उमेश के गाजियाबाद स्थित घर पर छापेमारी के लिए बनाई गई टीम के अधिकांश पुलिसकर्मियों को मालूम ही नहीं था कि कहां जाना है और किसके यहां छापा मारना और क्या करना है. बस उन्हें इतना ही ब्रीफ किया गया था कि उन्हें किसी ऑपरेशन में लगाया गया है, जिसमें हद दर्जे तक गोपनीयता बरती जानी है. वह तो जब उमेश पुलिस कर्मियों के सामने पड़ा, तब उन्हें मालूम हुआ कि ऑपरेशन क्या था और कितना हाईप्रोफाइल.
पुलिस सूत्रों की मानें तो पुलिस के पास अब जो सबूत हैं, उसमें सबसे अहम आयुष का मजिस्ट्रेट के सामने दिया गया बयान और उसके द्वारा सौंपी गई वाट्सएप चैटिंग और कॉल रिकार्डिंग शामिल हैं. इसमें यह तो पता चल रहा है कि स्टिंग के लिए उमेश अपने पत्रकार आयुष पर लगातार दबाव बना रहा था, लेकिन उत्तराखंड आयुर्वेद विवि के निलंबित कुलसचिव मृत्युंजय मिश्रा समेत अन्य आरोपितों की मिलीभगत को लेकर कई सारे सवालों के जवाब सामने आना बाकी हैं. पुलिस को उम्मीद है कि उमेश के गाजियाबाद स्थित आवास से जो इलेक्ट्रानिक उपकरण बरामद हुए हैं, उनकी की जांच में इन सवालों के काफी हद जवाब मिल सकते हैं.
उत्तराखंड में स्टिंग ऑपरेशन कर ब्लैकमेलिंग का खेल खूब फल-फूल रहा है. इसमें सबसे ज्यादा सोशल मीडिया और आरटीआई को हथियार के रूप में अपनाया जा रहा है. यही कारण है कि सत्ता के गलियारों से लेकर शीर्ष नौकरशाह भी इससे नहीं बच पा रहे हैं. पुराने अनुभव एवं भविष्य की स्थितियां भांपते हुए पुलिस ने अब स्टिंगबाज और ब्लैकमेलरों की कुंडली खंगालनी शुरू कर दी है. अभी तक 18 ब्लैकमेलर पुलिस की रडार पर आ चुके हैं.
उत्तराखंड में स्टिंग ऑपरेशन कर ब्लैकमेलर संगठित अपराध कर रहे हैं. यह बात पुलिस अफसर भी स्वीकार कर चुके हैं. पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत का स्टिंग हो या प्रदेश के बड़े नौकरशाहों का. सभी में ब्लैकमेलिंग का खेल चला है. इसके अलावा राजधानी से लेकर जिलों में आरटीआइ, सोशल मीडिया या दूसरे तरीकों से स्टिंगबाज सत्ता के गलियारों के शीर्ष तक पहुंचने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहे हैं. ब्लैकमेलिंग का खेल राजधानी देहरादून, हरिद्वार, ऊधमसिंहनगर में सबसे ज्यादा है. इसके अलावा नैनीताल, बागेश्वर, उत्तरकाशी, चमोली जैसे सीमांत जनपदों में भी ब्लैकमेलिंग के मामले सामने आ रहे हैं. यहां खुफिया एजेंसी ने कुछ टीवी-चैनल, पोर्टल और समाचार पत्र चलाने वाले बिल्डर, फाइनेंसर्स, आरटीआइ कार्यकर्ता, सामाजिक संगठन के लोगों को रडार पर लिया है.
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