अजय कुमार, लखनऊ
शराब ब्रिकी लक्ष्य में 1.5 हजार करोड़ का इजाफा… उत्तर प्रदेश की योगी सरकार सामाजिक सुधार के बड़े-बड़े दावे करती है, लेकिन जब सरकारी खजाना भरने की बात आती है तब उसके मापदंड बदल जाते हैं। वह भी पूर्ववर्ती सरकार के ही नक्शे कदम पर चलती है। शायद इसी लिये अखिलेश सरकार के मुकाबले योगी सरकार ने आबकारी नीति में बिना किसी बदलाव के दारू से डेढ़ हजार करोड़ रूपए की अतिरिक्त धनराशि जुटाने का लच्क्ष निर्धारित किया है। वितीय वर्ष 2016-2017 के लिये अखिलेश सरकार ने शराब से 19 हजार करोड़ का राजस्व संग्रह का लक्ष्थ रखा था, जिसे योगी सरकार ने 2017-2018 के लिये 20 हजार 593 करोड़ 23 लाख रूपये निर्धारित किया है।
यानी ‘योगी’ जी प्रदेश वासियों को और भी दिल खोलकर पिलायेंगे। इससे समाज प्रभावित होता है तो हो सरकार और शराब कारोबारियों की तो झोली भरेगी ही। शायद योगी सरकार की सोच ही कुछ ऐसी रही होगी, जिसकी वजह से उनके सत्ता संभालते ही काफी उम्मीदों के साथ शराब बंदी के लिये यूपी की महिलाओं द्वारा चलाया गया धरना-प्रदर्शन अपने मुकाम पर नहीं पहुुच सका था। अवैध शराब का धंधा पूरे प्रदेश में खूब फलफूल रहा है जो अक्सर पियक्कड़ों की मौत का कारण भी बन जाता है। जैसा की हाल में आजमगढ़ में देखने को मिला। जहां एक दर्जन लोग मौत के मुंह में समा गये।
दुख तो तब होता है जब पता चलता है कि जो बीजेपी विपक्ष में रहते अक्सर ही सपा-बसपा सरकारों पर माफिया किंग पोंटी चड्ढा की कम्पनियों को संरक्षण देने का आरोप लगाया करते थे,चह भी ‘पोंटी प्रेम’ में फंस गये हैं। पूर्व की सरकारों की तरह बीजेपी राज में भी पोंटी गु्रप की तूती बोल रही है। आबकारी विभाग में कौन अधिकारी या कर्मचारी कहां तैनात किया जायेगा, इसका फैसला आज भी आबकारी विभाग नहीं पोंटी ग्रुप ही कर रहा है।
पोंटी ग्रुप की ताकत का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि राजधानी में तैनात एक महिला आबकारी निरीक्षक के खिलाफ तमाम शिकायतें मिलने के बाद भी आबकारी महकमा उसके खिलाफ कार्रवाई करना तो दूसर उसका तबादला तक नहीं कर पा रहा है। जहां एक आबकारी निरीक्षक का तबादला करने के लिये पोंटी ग्रुप के सामने सरकार हाथ खड़ा कर दे, उस विभाग की दुर्दशा और वहां चल रहे ट्रांसर्फर-पोस्टिंग के खेल का सहज अंदाजा लगाया जा सकता है। आबकारी विभाग में किस अधिकारी की कहां पोस्टिंग होगी, इसका फैसला यही ग्रुप करता था। यहां तक की किस अधिकारी को आबकारी आयुक्त बनाया जाये, इस फैसले पर भी इसी ग्रुप के कर्ताधर्ताओं द्वारा ही अंतिम मोहर लगाई जाती थी। हद तो तब हो जाती है जब 07 जुलाई 2017 को आजमगढ़ में जहरीली शराब पीने से करीब एक दर्जन लोंगो की मौत हो जाती है, लेकिन कार्रवाई के नाम पर आबकारी विभाग के सिर्फ चार सिपाही ही निलंबित होते हैं। मानों उनके अलावा पूरा महकमा दूध का धुला हो। असल में यह सब बड़े खेल का हिस्सा है।
सत्तारूढ़ नेताओं और सरकारी अधिकारियों को करोड़ों का कमीशन खिलाकर उत्तर-प्रदेश में शराब के धंधे पर वर्चस्व बनाने वाला चड्डा ग्रुप शराब के धंधे के अलावा अब चड्ढ़ा पंजीरी,चड्ढा चीनी, चड्ढा टाउनशिप जैसे कई गोरख धंधों के सहारे भी मालामाल हो रहा है, पर ताजुब ये है कि पूर्ववर्ती सरकारों की तरह योगी सरकार भी हाथ पे -हाथ रखे बैठी है। सरकार को चार महीने हो गये है,लेकिन अभी तक चड्डा ग्रुप के खिलाफ सरकार का रवैया सुस्त बना हुआ है। शराब के ठेकों पर इस बार भी पौंटी चड्ढा के छोटे भाई हरदीप, जसदीप कौर चड्ढा ग्रुप का कब्जा है। यह ग्रुप शराब के दामों पर ओवररेटिंग का कारनामा करने में महारथ हासिल किये हुए है।
गौरतलब हो, करीब 10 साल पहले चड्डा ग्रुप ने मंत्रियों/अफसरों को जाने वाले मोटे कमीशन का घाटा कम करने के लिए शराब की दुकानों पर ओवररेटिंग का ख्रेल शुरू किया था। नई सरकार बनने के बाद 15 दिनों तक ओवररेटिंग का खेल बंद रहा, लेकिन चड्डा सिंडिकेट को फिर से दुकान बेचने का ठेका मिलने के बाद चड्डा ने अपने ठेकों पर शराब पर ओवररेट वसूलना शुरू कर दिया। आबकारी विभाग के राजस्व का जो पैसा सरकारी खजाने में जाना चाहिए ,वह ओवररेटिंग के सहारे चड्ढा ग्रुप के घर जा रहा है, यही नहीं चड्ढा ग्रुप शराब के कारोबार में नकली शराब व शराब बिक्री में भी टैक्स चोरी कर रहा है।
चड्ढा ग्रुप के गोरखधंधे का आलम यह है कि अरबों की अमरोहा की चीनी मिल को माया सरकार में कौड़ियों के भाव में बेच दिया गया था। बसपा शासनकाल में करीब 600 बीघा जमीन वाली इस चीनी मिल को मात्र 17 करोड़ रुपये में पोंटी चड्ढा ग्रुप को बेचा गया था। दो करोड़ साठ लाख रुपये का स्टांप शुल्क भी 17 करोड़ रुपये में शामिल था। योगी सरकार ने इसकी जांच जरूर बैठा दी है।
बताते चलें उत्तर प्रद्रेश में वर्तमान में देशी शराब की 14 हजार 21, अंग्रेजी शराब की पांच हजार 471 दुकाने और 4.518 बियर शॉप, 415 बियर माडल शाप के अलावा 2.440 भांग के ठेके चल रहे हैं। बात बीते वित्तीय वर्ष 2016-2017 की कि जाये तो इस वित्तीय वर्ष में आबकारी विभाग ने शराब की इन दुकानों से 19 हजार करोड़ रूपये राजस्व वसूली का लक्ष्य रखा था, जो पूरा नहीं हो पाया। मोटे तौर पर आबकारी विभाग को लगभग चार हजार करोड़ रूपये का नुकसान होने का अनुमान है।
एक बार यूपी की राजनाथ सरकार ने इस ग्रुप के पंख कतरने की कोशिश की थी, लेकिन वह सफल नहीं हो पाये। 2001 से पहले तक तो थोक से लेकर फुटकर तक की शराब दुकानों पर इसी गु्रप का एकाधिकार था,लेकिन 2001 में बीजेपी सरकार के तत्कालीन मुख्यमंत्री राजनाथ सिंह ने फुटकर दुकानों की नीलामी सिस्टम समाप्त करके लॉटरी सिस्टम लागू कर दिया, जिससे फुटकर शराब व्यवसाय में चड्ढा ग्रुप की हिस्सेदारी तो घटी, लेकिन लाटरी से दुकान हासिल करने वाले फुटकर शराब कारोबारियों को आज भी इस गु्रप की पंसद की शराब बेचने को मजबूर होना पड़ता है। यह ग्रुप जिस ब्रांड की शराब चाहता है उसे सप्लाई करता है। बात पसंद तक ही सीमित नहीं है। आबकारी शुल्क बचाने के लिये यह ग्रुप नंबर दो की शराब भी धड़ल्ले से बेच रहा है।
अगले साल नई शराब नीतिः आबकारी मंत्री
उत्तर प्रदेश के आबकारी मंत्री जय प्रताप सिंह से जब शराब सिंडेकेट के बारे में पूछा गया तो उनका कहना था कि शराब कारोबार से सिंडिकेट तोड़ने के लिए अगले वित्तीय वर्ष में नई आबकारी नीति लागू होगी। इसका खाका तैयार हो गया है। कुछ दिनों के अंदर रिपोर्ट शासन को मिल जाएगी, जिसे मंत्रिमंडल की बैठक में अंतिम रूप देकर लागू करा दिया जाएगा। मौजूदा नीति के कारण प्रदेश सरकार को राजस्व की क्षति हो रही है। नई नीति से राजस्व बढ़ने के साथ-साथ अधिक से अधिक लोगों को रोजगार मिलेगा। दुकानें कम होंगी लेकिन कोटा अधिक होगा, नई डिस्टलरी भी खुलेंगी। आबकारी मंत्री के अनुसार विभाग के 36 अधिकारियों को पिछले महीने तेलंगाना, महाराष्ट्र, कर्नाटक सहित नौ राज्यों में वहां की आबकारी नीति का अध्ययन करने के लिए भेजा गया था। उनकी रिपोर्ट आयुक्त कार्यालय को मिल गई है, जिसका अध्ययन किया जा रहा है। सभी राज्यों की नीति के अच्छे बिंदुओं को शामिल करके यूपी के लिए नई आबकारी नीति बनाई जाएगी। उन्होंने कहा कि एक-दो सिंडिकेट ने कई नामों से पश्चिमी यूपी के 32 जिलों की शराब की दुकानों पर कब्जा कर लिया है। पूरे प्रदेश का थोक कारोबार भी उन्हीं के शिकंजे में है। जिस ब्रांड की शराब को वह चाहते हैं, वही उपभोक्ताओं तक पहुंचती है। नई नीति से और डिस्टलरी खुलने की संभावनाएं हैं।
बहार-यूपी बार्डर पर माफियाओं का दबदबा
बिहार में शराब बंदी के बाद से यूपी-बिहार सीमा पर अवैध रूप से शराब माफियाओं का खेल जारी है। उनके गुर्गे सीमा का फायदा उठा कर करोड़ों रुपये की शराब पार कर रहे हैं।यूपी पुलिस शराब माफियाओं के गुर्गो या तस्करों की तरफ से आंख बंद किये रहती है। इस लिये यह धंधा और भी फलफूल रहा है। उत्तर प्रदेश के पूर्वी हिस्से की सीमा बिहार से जुड़ती है और यहां पर करोड़ों रुपये अवैध शराब का कारोबार चलता है। इसमें कच्ची शराब, ब्रांडेड शराब, वाइन इत्यादी को पेटी में बंद कर छोटे मालवाहक वाहनों से उत्तर प्रदेश की सीमा से बड़े ही आसानी से बिहार की सीमा में पहुंचा दिया जाता है। बिहार पहुंचने के बाद शराब के दाम को तय कर वहां बैठे थोक व्यापारी को इसे बेच देते है। बिहार में शराब बंद होने के बाद से उत्तर प्रदेश के शराब माफियाओं की चांदी हो गयी है और उनकी सक्रियता भी बढ़ी है। वाराणसी, गोरखपुर, आजमगढ़, गोंडा, प्रतापगढ़ और चंदौली में बनायी जाने वाली अवैध शराब को लागत मूल्य से दोगुने या तीन गुने दामों में बिहार में बेचा जाता है। वहीं बिहार से कच्चे फल (महुआ, जामुन, पुराने अंगूर) से बनी शराब को उत्तर प्रदेश में पसंद किया जाता है और इसके लिए उसे यहां ला कर बेचा जाता है। बिहार से लगने वाली सीमा पर छोटे-बड़े कई शराब माफिया और उनकी गैंग सक्रिय है। इसमें कुछ शराब माफियाओं पर राजनीतिक दलों की मोहर लगी हुई है और इसके कारण यूपी पुलिस सीधे तौर पर उनके ऊपर हाथ नहीं डाल पाती है।
लेखक अजय कुमार लखनऊ के वरिष्ठ पत्रकार और स्तंभकार हैं.