नई दिल्ली : गांव की संस्कृति, भाषा, बोली-बानी, आपसी संबंधों में प्रेम की ताज़गी सबकी सब मुझे बचपन से ही मोहित करती रही हैं। सच तो ये है कि मुझे साहित्य रचने की प्रेरणा एवं शक्ति गांव से ही मिलती है, इसलिए मैं गांव पर ही लिखती हूं। ये बातें चर्चित लेखिका एवं दिल्ली अकादमी की उपाध्यक्ष मैत्रेयी पुष्पा ने दिल्ली के साहित्य अकादमी के सभागार में आयोजित व्याख्यान एवं सम्मान समारोह में कही।
हिन्दी की साहित्यिक पत्रिका ‘नई धारा’ द्वारा आयोजित द्वादश उदयराज सिंह स्मारक व्याख्यान में ‘मैं गांव पर ही क्यों लिखती हूं‘ विषय पर बोलते हुए मैत्रेयी पुष्पा ने कहा कि भारत के गांव बदल रहे हैं। फ़ोर लेन सड़कें और डिजिटल क्रांति ने विकास की चकाचौंध संस्कृति के ज़रिए गांव की पारंपरिकता को तहस-नहस कर दिया है। गांव में अब सड़कें नहीं फ़ोरलेन हैं। उन्होंने कहा कि गांव में प्रेम है, संवेदनशीलता है जिसका शहर में अभाव है। प्रेम जहां है हम उसे वहां तलाश नहीं करते। हम सुविधाओं के ग़ुलाम हो गए हैं। शहर में गांव जैसा अपनत्व नहीं है।
इस अवसर पर नई धारा की ओर से मैत्रेयी पुष्पा को उदय राज सिंह स्मृति सम्मान से विभूषित करते हुए उन्हें एक लाख रुपये, प्रतीक चिह्न, अंगवस्त्र दिए गए। ‘नई धारा’ के प्रधान संपादक डॉ प्रथमराज सिंह ने लेखक-पत्रकार विश्वनाथ सचदेव (मुंम्बई), चर्चित गज़लगायक अनिरुद्ध सिन्हा (मुंगेर) और चर्चित लेखिका एवं वर्धमान विश्वविद्यालय (पश्चिम बंगाल) की हिन्दी विभाग की प्राध्यापक डॉ रीता सिन्हा को ‘नई धारा रचना सम्मान’ से सम्मानित करते हुए उन्हें 25-25 हज़ार रुपये, सम्मान पत्र, प्रतीक चिह्न, अंगवस्त्र प्रदान किए।
समारोह को संबोधित करते हुए नई धारा के प्रधान संपादक डॉ प्रथमराज सिंह ने कहा कि नई धारा हमारे लिए केवल एक साहित्यिक पत्रिका भर नहीं है बल्कि एक रचनात्मक अभियान है, इसके ज़रिए हम समाज और साहित्य को एक सकरात्मक दिशा देना चाहते हैं। हम आशा और विश्वास करते हैं कि पूर्वजों की इस परंपरा को परिवार की नई पीढ़ी मज़बूती से आगे बढ़ाएगी।
‘नई धारा’ के संपादक डॉ शिवनारायण ने समारोह को संबोधित करते हुए कहा कि किसी लेखक के जीवन की सार्थकता उसकी निजि उपलब्धियों में नहीं, बल्कि उसके समाज सापेक्ष संघर्ष में है, इसलिए उसे अपने सामाजिक सरोकारों को अधिक से अधिक सार्थक बनाने की दिशा में सक्रिय रहना चाहिए। उन्होंने कहा कि बीते 67 वर्षों से लगातार प्रकाशित ‘नई धारा’ बिहार के सूर्यपुरा राज परिवार की पांच पीढ़ियों की हिन्दी सेवा का व्रत है, जिसे राजा राधिकारमण प्रसाद सिंह, शिवपूजन सहाय, रामबृक्ष बेनीपुरी जैसे तपोनिष्ठ लेखकों ने पल्लवित-पुष्पित किया। यह मेरा सौभाग्य है कि मैं बीते 25 वर्षों से इस पत्रिका का संपादन कर रहा हूं।
समारोह में गज़लगायक अनिरुद्ध सिन्हा ने अपनी गज़ल सुनाकर दर्शकों का मन मोह लिया। इस अवसर पर ‘ नई धारा सम्मान ’ से सम्मानित लेखिका एवं वर्धमान विश्वविद्यालय (पश्चिम बंगाल) की हिन्दी विभाग की प्राध्यापक डॉ रीता सिन्हा ने समाज में व्याप्त कूरीतियों और स्त्रियों की बौद्धिकता और लेखनी पर विस्तारपूर्वक प्रकाश डाला। डॉ रीता सिन्हा ने कहा कि ‘ नई धारा ’ का सम्मान मेरे लिए संकेत है कि मैं समस्त दुराग्रहों से ऊपर उठकर समाज की विडंबनाओं और विसंगतियों को अपनी रचनाओं के माध्यम से लाने का प्रयत्न करूं।
हिन्दी के चर्चित कवि और भारतीय ज्ञानपीठ के निदेशक लीलीधर मंडलोई ने अपने अध्यक्षीय भाषण में कहा कि मैत्रेयी पुष्पा का सम्मान पूरे बुंदेलखंड का सम्मान है। मैत्रेयी की लेखनी में बुंदेलखंड की मिट्टी की ख़ुशबू महसूस की जा सकती है। मंडलोई ने कहा कि नई धारा का साहित्यिक कार्य बहूआयामी है। उन्होंने आयोजकों को नई धारा के सम्मान समारोह और साहित्यिक गतिविधियों की फिल्म बनाने और आर्काइव करने की सलाह दी। कथाकार बलराम ने धन्यवाद ज्ञापन किया। इस अवसर पर देशभर से आए बड़ी संख्या में साहित्यकार मौजूद थे।