Ramesh Prajapati : हरे प्रकाश उपाध्याय के संपादन में लखनऊ से निकली “मंतव्य” पत्रिका ने हिंदी साहित्य जगत में बड़े ही धमाकेदार एंट्री की है। हरे प्रकाश जी ने रचनाओं के चुनाव में धैर्य और निष्पक्षता से काम लिया है। पत्रिका का कवर पेज़ ही आज के वीभत्स समय पर चोट करता है। कथा खंड में काला पहाड़ और रेत जैसे उपन्यासों के रचयिता भगवानदास मोरवाल के आने वाले उपन्यास “नरक मसीहा” का अंश आम आदमी की विवशताओं को अभिव्यक्त करता है। तेजिन्दर के उपन्यास “डरा हुआ आदमी” बाज़ार की चक्की में पीसते व्यक्ति की जद्दोजहद को चित्रित करता है।
वैभव सिंह का आलेख बहुत ही सार्थक है। रोहिणी अग्रवाल औ शशि भूषण द्विवेदी जी ने अपनी आलोचना से नई उर्जा दी है। रोहिणी जी की आलोचना दृष्टि बहुत ही विश्लेशणात्म्क है। उन्होंने उस धारणा को तोड़ा है जिसमे कहा जाता है कि आज आलोचना अपने मानदंड भूल गई है । कविता खंड के अंतर्गत निरंजन श्रोत्रिय, पीयूष देइया, विशाल श्रीवास्तव, अविनाश मिश्र की कविताएँ तो प्रभावित करती हैं साथ ही संजय अलंग की कविताएँ अपना नया मुहवारा रचती हैं, और अन्य कवियों की कइ कविताएँ भी अपनी जोरदार उपस्थिति से रूबरू कराती हैं। कुल मिलाकर ये कह सकते हैं कि आर्थिक संकट से जूझते इस विकट दौर में हरे प्रकाश भाई ने मंतव्य को प्रस्तुत करके साहित्य के प्रति अपनी निष्ठा समर्पण और साहस को उजागर कर दिया है। हरे भाई को बधाई। पत्रिका पाप्त करने का पता- ”हरेप्रकाश उपाध्याय, मंतव्य, ए-935/4 ,इंदिरा नगर, लखनऊ-226016”
रमेश प्रजापति के फेसबुक वॉल से. रमेश दिल्ली में शिक्षा क्षेत्र में सक्रिय हैं.
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