भड़ास पर नवभारत टाइम्स मुंबई में दशहरा की तैयारी की फोटो खबर में बुराई पर अच्छाई की जीत की जगह अच्छाई पर बुराई की जीत की खबर पढ़ी।
ये चूक पत्रकार साथियों से अक्सर होती है। अभी तक के पत्रकारिता जीवन में मैंने कई बार इस तरह की गड़बड़ी देखी है। कुछ साल पहले अमर उजाला मेरठ में एक साथी से यह गलती हो गई थी। तब संपादक शशिशेखर जी थे। नवभारत टाइम्स की खबर में तो फोटो के साथ दी गई पंक्तियों में दशहरा से कुछ पहले यह गड़बड़ हुई है, लेकिन अमर उजाला में ठीक दशहरा के अगले दिन सुबह को जब लोगों ने अखबार खोला तो सिटी के पेज पर लीड खबर का शीर्षक लगा था- अच्छाई पर बुराई की विजय।
केवल एक शीर्षक के कारण सारा अखबार पिटा नजर आने लगा। पूरा दिन खराब हो गया। मैं डेस्क इंचार्ज था, लेकिन मेरा दशहरा के दिन ऑफ पड़ गया था। मैं तो बच गया, लेकिन फिर भी दशहरा के अगले दिन शाम को शशिशेखर जी के सामने पूरी डेस्क के साथ मुझे भी बहुत शर्मिंदा होना पड़ा।
मैं पत्रकार साथियों को आगाह करना चाहता हूं कि यह गलती अभी कई बार और हो सकती है और किसी से भी हो सकती है। इसीलिए खासकर दशहरा के आसपास जब भी बुराई पर अच्छाई की जीत लिखें तो एक बार शीर्षक को बोलकर जरूर दोहरा लें। एक-एक शब्द को रुक-रुककर पढ़ें। बु रा ई प र अ च् छा ई की जी त। इससे गलती पकड़ में आ जाती है। यह नियम अन्य खबरों के शीर्षक लगाते समय भी अपनाएं। बहुत थोड़ा सा समय लगेगा, मगर कभी गलती नहीं होगी।
दरअसल भाषा में अच्छाई का अ, बुराई के ब से पहले आता है। बोलने में भी सब अच्छा-बुरा ही कहते हैं। कोई भी बुरा-अच्छा नहीं कहता, इसलिए दशहरा से जुड़े इस वाक्य में पत्रकार साथी जल्दी-जल्दी में अच्छाई को ही पहले लिख जाते हैं और बुराई को बाद में।
लव कुमार सिंह
पत्रकार, लेखक
शास्त्रीनगर, मेरठ
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