Rana Yashwant : ६ अक्टूबर की सुबह जब दिल्ली के लोगों ने शहर का नामी गिरामी अखबार हाथ में लिया तो उसके पहले औऱ आखिरी पन्ने पर ई शापिंग की कंपनी फ्लिपकार्ट के विज्ञापन दिखे। बंपर डिस्काउंट का विज्ञापन। रसोई की जरुरत से लेकर टीवी लैपटॉप मोबाइल औऱ कई छोटी मोटी जरुरत तक की चीजों की ऑनलाइन बुकिंग का विज्ञापन। समय भी लिख दिया गया था- सुबह ८ बजे से। नतीजा ये हुआ कि कंपनी का नेटवर्क क्रैश कर गया। कहने का मतलब ये कि हिंदुस्तान में ऑनलाइन शॉपिंग के लिये इतने लोग आ गये कि ट्रैफिक कंजेशन ने सिस्टम ठप कर दिया।
( File Photo Rana Yashwant )
घर के भीतर घुसकर जेब से पैसा निकालने की इतने बड़े पैमाने पर इस तरह की ये पहली कोशिश थी। तकनीक ने बाजार के लिये आप तक पहुंचने का रास्ता कितना आसान कर दिया है ये इसकी बेहतरीन मिसाल है। पैसा अगर नहीं भी है तो उसका किसी तरह से इंतजाम कर सामान खरीदने का लालच पैदा करता है ये बाजार। उसका अपना एक अर्थशास्त्र है जो आपको ये समझाता है कि अभी खऱीद लेने से तीस परसेंट या चालीस परसेंट की रकम बच जाएगी। कुल मिलाकर मोटी सी बात ये कि बचत का इत्मिनान पैदा कर दूसरे काम के लिये रखे आपके पैसे को खींचने का तंत्र विकसित हो रहा है। जैसे जैसे देश में स्मार्ट फोन की संख्या औऱ इंटरनेट कनेक्टिविटी बढेंगी हिंदुस्तान के बाजार को इसतरह के स्टिमुलेंट दिए जाएंगे ताकि उसकी परचेजिंग कैपेसिटी को उसकी वाजिब क्षमता से कहीं ज्यादा बढाया जा सके।
नतीजा ये होगा कि पारिवारिक और सामाजिक जिम्मेदारियों पर होनेवाले खर्चों में स्वाभाविक कटौती होगी जिसका असर आपको कभी सीधा नजर नहीं आएगा। केएफसी, मैक्डोनल्ड, डॉमिनोज़ जैसी कंपनियां एक मैसेज और कॉल पर आपके घर फास्ट फूड पहुंचा देती हैं। अब शर्ट, जूते, गॉगल्स, जींस और कई एसेसरीज ई शॉपिंग के जरिए २४ घंटे में आपतक डिलिवर कर दिए जाते हैं। और वो भी बाजार के दाम से कहीं कम पर । क्योंकि, स्टॉकिस्ट और रिटेलर का प्राफिट उन्हें जोड़ना नहीं पड़ता। बस अपना मुनाफा लेकर वो सामान आपतक पहुंचा देती हैं। लेकिन हमारा आपका पैसा देश के बाजार की जगह ऐसी कंपनियों के नेटवर्क में सर्कुलेट होता है। देशी दुकानदारों और बाजार के लिये यह एक दूसरे तरह का खतरा है।
इंडिया न्यूज चैनल के मैनेजिंग एडिटर राणा यशवंत के फेसबुक वॉल से.
Amit kumar
October 8, 2014 at 5:18 pm
जबरदस्त खतरा सर, कहां जाएंगे रिटेल वाले और उनके यहां काम करने वाले। कोई इस परसोचने को तैयार नहीं।
AKHAND PRATAP SHAHI
October 9, 2014 at 8:04 am
सौ फीसदी सही आंकलन….. देशी दुकानदारों के साथ ही उन तमाम काश्तकारों, श्रमजीवियों, कारीगरों के साथ रचा जानेवाला एक कुचक्र… जिसमें हम बाखुशी शामिल हो रहे हैं… अपने”ग़ैरजरूरी” फायदों के लिए…