Aalok Pandey : कल शाम को ज़मानत होने के बाद भी अभी तक रिहाई क्यूँ नहीं… ये राँची के Rims hospital की तस्वीर है जहाँ गैलरी में हो रहा है Umesh Kumar का इलाज…
समाचार प्लस चैनल में कार्यरत आलोक पांडेय की एफबी वॉल से.
रांची ले जाए जाने के तुरंत बाद उमेश को खराब स्वास्थ्य के आधार पर अस्पताल में दाखिल कराया गया था…. उस मौके की कुछ तस्वीरें…
इस बीच नैनीताल से खबर है कि समाचार प्लस न्यूज चैनल के सीईओ उमेश कुमार के खिलाफ जारी बी वारंट पर कोर्ट ने रोक लगा दी है. हाई कोर्ट ने उमेश कुमार के खिलाफ जारी बी वारंट पर रोक लगाते हुए विवेचक को पांच दिसंबर तक जवाब पेश करने या फिर खुद कोर्ट में पेश होने के निर्देश दिए हैं.
याचिका में मुख्यमंत्री और अपर मुख्य सचिव ओमप्रकाश को व्यक्तिगत तौर पर पक्षकार बनाया गया है. मंगलवार को न्यायाधीश न्यायमूर्ति लोकपाल सिंह की एकलपीठ में उमेश कुमार की याचिका पर सुनवाई हुई. दो नवंबर को राजपुर थाने में विनय मलिक की ओर से उमेश कुमार, आशीष एरोन, विक्रम और जितेंद्र के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कराई गर्इ थी.
याचिकाकर्ता के अनुसार उमेश समेत तीन अन्य उसके प्लॉट पर कब्जा करना चाहते हैं जबकि याचिकाकर्ता उमेश का कहना था कि प्लॉट आशीष ऐरॉन का है. कोर्ट ने 1999 में आशीष के हित में इस प्लाट से संबंधित निर्णय दिया था. आशीष को हाई कोर्ट से स्थगनादेश मिल चुका है. आईओ की ओर से देहरादून कोर्ट में प्रार्थना पत्र देकर उमेश को गिरफ्तार करने के लिए बी वारंट जारी कराए हैं, जो नियम विरुद्ध हैं. इस वारंट को याचिका के जरिये उमेश द्वारा चुनौती दी गई.
याचिका में आरोप लगाया है कि याची के खिलाफ जितनी भी प्राथमिकी दर्ज की जा रही है, उसमें मुख्यमंत्री व अपर मुख्य सचिव ओमप्रकाश का हाथ है. एकलपीठ ने बी वारंट के क्रियान्वयन पर रोक लगाते हुए आइओ को निर्देश दिए हैं कि वह पांच दिसंबर तक जवाब पेश करें या जवाब पेश नहीं करने की स्थिति में खुद पेश हों.
उधर, फेसबुक पर इंडिया न्यूज चैनल के मैनेजिंग एडिटर राणा यशवंत ने उमेश कुमार के पक्ष में खुलकर आवाज उठाई है. पढ़िए, राणा यशवंत ने क्या लिखा है….
Rana Yashwant : बोलना एक व्यवहार है, बोलना एक विचार है और बोलना एक अधिकार भी है. आज मैं अधिकार के नाते बोल रहा हूं. हम अक्सर बोलने में पॉलिटिकली करेक्ट होने की कोशिश करते हैं और जब ऐसा होता है तो हम नाप-तौल कर बोलते हैं. अपने नफा-नुकसान का हिसाब लगाकर बोलते हैं. मैं सिर्फ और सिर्फ एक जिंदा इंसान के लोकतांत्रिक व्यवस्था में बोलने के अधिकार से लिख रहा हूं.
यह मामला समाचार प्लस चैनल के एडिटर इन चीफ उमेश कुमार शर्मा के साथ दो सरकारों के सामंती और दमनकारी रवैये को लेकर है.अगर मैं बातों को सिलसिलेवार तरीके से रखूंगा तो ये समूची साजिश और कानून के गैरकानूनी इस्तेमाल की सारी परतें बारी-बारी से उधड़ जाएंगी.
१- उमेश को उत्तराखंड की पुलिस ने एक स्टिंग ऑपरेशन के अंदेशे के आधार पर गिरफ्तार किया.
२- जिस रोज गिरफ्तारी हुई उसके चार दिन बाद झारखंड के रांची में एक मामला दर्ज किया जाता है.मामला देशद्रोह का. देशद्रोह क्या? सरकार गिराने की साजिश. उमेश कुमार ने केस दर्ज करानेवाले को व्हाट्सैप पर सरकार गिराने का जुगाड़ करने को कहा. केस दर्ज करानेवला कौन? बीजेपी किसान मोर्चा का पूर्व अध्यक्ष.क्या मजेदार केस है! फोन से ही सरकार गिर जाएगी!
३- खैर, इधर उत्तराखंड में अदालत ने आखिरकार जमानत दे दी. लेकिन जबतक कागजात जेल पहुंचते पुलिस ने कहा समय खत्म हो गया, रिहाई कल.
४-उसी रात यानी १६ अक्टूबर की रात रांची के मामले में वारंट का हवाला देकर पुलिस उमेश को रांची लेकर निकल गई और वहां १८ तारीख को पहुंची.
५- लेकिन १७ अक्टूबर को उमेश के खिलाफ जमीन विवाद में हमला करवाने का मुकदमा उत्तराखंड में दर्ज हो जाता है. यानी उन्हें पुलिस जब रांची ले जा रही थी, उसी दौरान उन्होंने हमला करवा दिया. ये भी दिलचस्प ही है न!
६- कुल मिलाकर तैयारी ये कि जैसे ही रांची की अदालत से जमानत मिले तो उत्तराखंड पुलिस के हवाले कर दिया जाए.
७-ये मामला हाईकोर्ट गया तो हाई कोर्ट ने उत्तराखंड पुलिस को जमकर लताड़ा.
८- लेकिन तैयारी पीछे से एक और थी. ११ साल पुराने जमीन विवाद के एक मामले में,जिसमें उमेश शुरुआती दौर में आरोपी नहीं थे और जिसको लेकर पिछली उत्तराखंड सरकार ने केस बंद करने का जीओ जारी कर दिया था, उसको नए सिरे से खोलने की तैयारी कर ली गई. इसके तहत उमेश को उत्तराखंड पुलिस ने फिर से अपने कब्जे में लेने की कोशिश की.
९-तबीयत बिगड़ने के चलते उमेश को रांची के अस्पताल में दाखिल कराया गया है, लेकिन झारखंड और उत्तराखंड की पुलिस उनको शटल बनाने में अपना सारा दिमाग और सारी ताकत झोंके हुए है.
१०- आपकी रंजिश इस हद तक है कि जिस आदमी की तबीयत उत्तराखंड में नाजुक थी, आर रिपोर्ट आने से पहले ही रांची लेकर निकल गए.रांची में डॉक्टरों का बोर्ड कहता है कि एम्स में दाखिल करवाइए, जेल प्रशासन कह रहा, लेकिन आप इस बात पर आमादा है कि उत्तराखंड पुलिस जमानत से पहले लेकर देहरादून आ जाए.
सवाल ये है कि अगर आप सरकार हैं तो क्या कानून आपकी मिल्कियत है? आप किसी की जान से भी खेलने को आजाद हैं? नासमझ को भी समझ आ जाएगा कि आप कर क्या रहे हैं. जिस आदमी को अदालतें जमानत दे दे रही हैं, जिसके खिलाफ रांची हाईकोर्ट में आप फटकार झेल चुके हैं, मुख्यमंत्री तक को कोर्ट ने नोटिस भेजने का आदेश दे दिया है- आप पाक साफ समझते हैं खुद को? अंधेरगर्दी है. गुंड़ागर्दी है. कानून को ठेंगे पर रखना इसी को कहते हैं. पता नहीं लोग चुप कैसे हैं!
मैं ये तमाशा पिछले एक महीने से देख रहा हूं और सारा तंत्र एक महीने से झूठ-फरेब का पुलिंदा तैयार कर देहरादून से रांची और रांची से देहरादून कर रहा है. क्या तमाशा है ये? आपको स्टिंग का अंदेशा था? अंदेशा हो भी तो क्या परेशानी? आप कुछ गलत कर रहे थे? नहीं, तो फिर डर काहे का? अपने गिरेबां मे झांकिए न! किसी आदमी को परेशान करने का पूरा अधिकार है, गलत है तो हर सजा सही है, लेकिन आप अपने किए को दबाने के लिये किसी को दबा रहे हैं, तो फिर जान लीजिए ये लोकतंत्र है सर! इंसाफ के दरवाजे बंद नहीं होते. आप आज है, कल नहीं होंगे लेकिन आपका किया आपका हमेशा पीछा करेगा. सही को सही और गलत को गलत कहने का साहस होना ही इंसान के सही होेने की शर्त है. मुझे उम्मीद है कि दो राज्य सरकारों की करतूतों के खिलाफ इस शर्त पर खरा उतरने वाले बहुत सारे लोग सामने आएंगे.
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