पूर्व ग्रह मंत्री पी चिदंबरम के जेल में जाने के बाद भाजपा और उसके समर्थक ऐसा हल्ला मचा रहे हैं जैसे कि मोदी सरकार अब सब भ्रष्टाचारियों को जेल में डाल देगी। भाजपा के कई नेताओं के भ्रष्टाचार में लिप्त होने के बावजूद उनका कोई बाल बांका न होना इस बात का प्रमाण है कि मोदी सरकार भी दूसरी सरकारों की तरह अपने विरोधियों से निपट रही है। पूर्व केंद्रीय मंत्री पी. चिदंबरम को आईएनएक्स मीडिया मामले में कथित भ्रष्टाचार के आरोप में हुई गिरफ़्तारी को इस नजरिये से भी देखा जा रहा है कि मौजूदा गृहमंत्री अमित शाह को जब सीबीआई ने शोहराबुद्दीन शेख फर्जी मुठभेड़ मामले में हत्या के आरोप में गिरफ्तार किया था तो उस समय चिंदबरम गृहमंत्री थे।
यदि मोदी सरकार के पहले कार्यकाल से ही देखें तो 2014 में चुनाव जीतते ही भाजपा विपक्षी नेताओं के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों में कार्रवाई करने में जुट गई थी। यदि भ्रष्टाचार में के आरोपों का सामना कर रह भाजपा नेताओं को ऐसे ही खुला छोड़ दिया जाता है तो मोदी का यह ‘भ्रष्टाचार विरोधी’ अभियान मात्र अपने विरोधियों को निपटने तक सीमित होकर रह जाएगा। देश से भ्रष्टाचार को खत्म करने का दावा करने वाली भाजपा ने हाल ही केंद्र में सत्ता का दुरूपयोग करते हुए कर्नाटक में भ्रष्टाचार का चेहरा होने के बावजूद बी.एस. येदियुरप्पा राज्य का मुख्यमंत्री बनाया है। जगजाहिर है कि येदियुरप्पा भूमि और खननघोटाले के आरोपी हैं। उनके यहां से बरामद डायरियों में शीर्ष भाजपा नेताओं और जजों और वकीलों को भारी रकम के भुगतान का ज़िक्र होने के बाद भी उन्हें मुख्यमंत्री जैसे पद से सुशोभित किया हुआ है। सत्ता के दुरूपयोग से से वह अधिकतर आरोपों से बरी किए जा चुके हैं। येदियुरप्पा के खिलाफ जांच कर रही यही सीबीआई मोदी सरकार के सत्ता में येदियुरप्पा के प्रति नरम पड़ गई और उनके खिलाफ पर्याप्त सबूत नहीं जुटाए गए। अब भी सुप्रीम कोर्ट द्वारा खिलाफ भूमि घोटाले के एक मामले में जांच के आदेश दिए जा सकते हैं।
ऐसे ही बेल्लारी के रेड्डी बंधुओं का मामला है। कर्नाटक के 2018 के चुनावों से पहले सीबीआई ने 16,500 करोड़ रुपये के खनन घोटाले में किसी तार्किक जांच के पहुंचे बिना बेल्लारी बंधुओं के खिलाफ जांच को शीघ्रता से समेट लिया। इस मामले में मोदी सरकार का रेड्डी बंधुओं को यों ही जाने देना क्या साबित कर रहा है ? भले ही रेड्डी बंधुओं का कुछ न हुआ हो हां उनके मामले को उजागर करने वाले वन सेवा के अधिकारी को मोदी सरकार ने इसी महीने बर्खास्त कर दिया।
भ्रष्टाचार के खिलाफ अभियान चला रही मोदी सरकार दूसरी पार्टियों से आकर मोदी और अमित शाह के सामने समर्पण कर नेताओं को पूरी तरह से संरक्षण दे रही है। पूर्वोत्तर के अमित शाह कहे जाने वाले हिमंता बिस्वा शर्मा कभी कांग्रेस पार्टी में होते थे और उन पर भ्रष्टाचार के आरोप थे। किसी समय भाजपा ने उनके खिलाफ मोर्चा खोल रखा था और उनके खिलाफ एक बुकलेट तक जारी किया था। उन्हें गुवाहाटी के जलापूर्ति घोटाले का ‘मुख्य आरोपी’ बताया गया था। इस घोटाले को एक अमेरिकी निर्माण प्रबंधन कंपनी की संलिप्तता के कारण लुई बर्जर मामले के नाम से भी जाना जाता है। इस संबंध में अमेरिकी न्याय विभाग ने वहां के विदेशी भ्रष्टाचार कानून के तहत चार्जशीट भी दायर कर रखी है। इसमें कंपनी पर एक अनाम मंत्री को रिश्वत देने का आरोप लगाया गया है। उस मंत्री की पहचान हिमंता के रूप में करने से लेकर उन्हें पार्टी में शामिल करने तक भाजपा ने एक लंबा रास्ता तय किया है। असम सरकार ने जांच को धीमा कर दिया है। ऐसा लगता है कि भाजपा भी मामले को सीबीआई को सौंपने की अपनी पुरानी मांग को भूल चुकी है।
देश में हड़कंप मचा देने वाले व्यापम घोटाले में मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री को 2017 सीबीआई ने क्लीन चिट दे दी थी। ऐसे में प्रश्न उठता है क्या किसी ओर सरकार में शिवराज सिंह इस तरह छूट सकते थे? यह ऐसे में हुआ जब सब जानते थे कि इस व्यापक परीक्षा घोटाले को उजागर करने वाले कई अधिकारियों और कई गवाहों यानी कि 40 से अधिक लोगों की रहस्मय परिस्थितियों में मौत हो चुकी है।
प. बंगाल में भाजपा वहां की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को भ्रष्टाचार के मामले में घेर रही है। जबकि तमाम आरोपों में लिप्त मुकुल रॉय को संरक्षण दे रखा है। पश्चिम बंगाल में अपने संगठनात्मक ढांचे को मजबूत करने के लिए भाजपा ने घोटाले के दागी तृणमूल नेता मुकुल रॉय को गले लगा लिया। भाजपा भ्रष्टाचार को मिटाने के प्रति कितनी गंभीर है, यह इस मामले में पूरी तरह से स्पष्ट है। रॉय को भाजपा ने उस समय भाजपा में शामिल किया था जब एक स्थानीय चैनल की गुप्त रिकार्डिंग (नारद स्टिंग) में उन्हें और अन्य कई वरिष्ठ तृणमूल नेताओं को रिश्वत लेते दिखाए जाने के बाद प्रवर्तन निदेशालय ने उनसे पूछताछ की थी। सब जानते हैं कि मुकुल रॉय शारदा चिटफंड घोटाले में भी आरोपी हैं। भाजपा का संरक्षण मिलते ही कानून के काम करने की गति धीमी हो गई है।
रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ को मोदी ने शिक्षा व्यवस्था को सुधारने के लिए मानव संसाधन विकास मंत्रालय दिया है। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री रहने के दौरान उनका नाम दो बड़े घोटालों में आया था। एक भूमि से संबंधित और दूसरा पनबिजली परियोजनाओं से जुड़ा हुआ था। भ्रष्टाचार के विभिन्न मामलों के कारण उनके शासन की छवि इतनी बुरी थी कि भाजपा को उन्हें 2011 में पद छोड़ने के लिए बाध्य करना पड़ा था। क्योंकि अब उनको मोदी का संरक्षण प्राप्त है तो अब न तो सीबीआई को और न ही उत्तराखंड सरकार को पोखरियाल का भ्रष्टाचार नहीं दिखाई दे रहा है। उल्टे उन्हें मोदी सरकार के एक प्रमुख मंत्रालय की जिम्मेदारी दे दी गई है।
भाजपा ने गत वर्ष महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री नारायण राणे को पार्टी में शामिल कर उन्हें राज्यसभा का सांसद बनाया है। क्योंकि अब वह भाजपा में हैं तो सीबीआई और ईडी ने राणे के खिलाफ जांच करने या उनकी संपत्तियों पर छापे मारने का अपना रास्ता बदल लिया है। जगजाहिर है कि राणे पर धनशोधन और भूमि घोटालों के आरोप हैं। महाराष्ट्र की राजनीति में उनकी छवि ‘विवादों के शीर्षस्थ परिवार’ की रही है।
लेखक चरण सिंह राजपूत विश्लेषक और सामाजिक कार्यकर्ता हैं.