Sunil Singh Baghel : कैंसर से ज्यादा दर्दनाक निजी अस्पतालों, दवा कंपनियों डॉक्टर का घिनौना गठजोड़ है। दवा के दलालों ने मनमानी MRP की आड़ मे इसे पटाखा बाजार जैसी मुनाफाखोरी में बदल दिया है।
पटाखा बाजार में आपको याद होगा जैसे फुलझड़ी/अनार के जिस पैकेट पर MRP 500 रुपए लिखी होती है, होलसेल दुकानदार बिना मोल-भाव के खुद ही आम आदमी को ₹250 में दे देता है.. थोड़ा मोल-भाव किया तो 200 में भी। रिटेल दुकानदार वही अनार डेढ़ सो रुपए में ले आते हैं। जबकि खुद होलसेलर के लिए असली कीमत 500 नहीं बल्कि ₹125 ही होती है।
बस यही हाल कैंसर दवाओं का भी है। जो इंजेक्शन सरकार को 1000 में मिल जाता हैं वही निजी अस्पतालों को अधिकतम 1500 मे मिल जाता है। बाजार में स्टॉकिस्ट इसे आम आदमी को 2000 में दे देते है..
अब एमआरपी का खेल देखिए… कारपोरेट हॉस्पिटल उसी इंजेक्शन पर दवा कंपनियों से अधिक एमआरपी छपवा 20-22 हजार तक भी वसूल रहे हैं।
मोदी सरकार के प्रयासों से कैंसर की कई दवाओं को प्राइस कंट्रोल के दायरे में लाया गया था.. उसका असर भी दिखा लेकिन जल्द ही ड्रग माफिया ने इसके लिए रास्ते निकाल लिए..
विडंबना देखिए 8 करोड़ की आबादी वाले मध्य प्रदेश में ही एक भी सरकारी अस्पताल ऐसा नहीं है,जहां कैंसर इलाज की सभी सुविधाएं हों। मजबूरन निजी अस्पताल का रुख करना पड़ता है। यहीं से शुरू होता है मरीज के साथ पूरे परिवार का दर्द..
एक तो निजी अस्पताल अपने यहां के मेडिकल स्टोर से दवा लेने को मजबूर करते हैं.. वहीं कुछ अस्पताल तो दवा के नाम के बजाय सिर्फ उस दवा का कोड लिख कर देते हैं.. इस कोड का पता सिर्फ उस अस्पताल के मेडिकल स्टोर वाले को ही होता है।
यहां तो सिर्फ कुछ उदाहरण दिए हैं.. सर्जिकल आइटम, जाट के नाम पर पर हो रही मुनाफाखोरी इससे कहीं ज्यादा घिनौनी है…
इंदौर के वरिष्ठ पत्रकार सुनील सिंह बघेल की एफबी वॉल से.