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सुख-दुख

हैप्पी बड्डे : आज सीतल भ रहेन!

शीतल

Sheetal P Singh : हिंदू पंचांग के अनुसार आज शीतला सप्तमी है। चैत के महीने में पड़ती है। मॉ बताती थीं कि आज ही मैं जन्मा था। वर्ष की याद न उन्हें थी और न उन गुरूजी को जिन्होंने मेरी “राशि” वग़ैरह बॉची थी।

मुझसे बड़े भी एक भाई थे जो संभवतः मुझसे कम से कम चार बरस तो ज़रूर बड़े रहे होंगे परन्तु स्माल पाक्स (चेचक) के चलते मेरे जन्म से कुछ वर्ष पहले ही उनकी मृत्यु हो गई थी। वे मॉ की पहली संतान थे और अपनी आख़िरी साँस तक मॉ ने उन्हें याद किया।

एक धर्मभीरु परिवार में जन्मी पली बढ़ी मॉ ने पड़ोसियों से पूछ पूछ कर युवावस्था में अक्षर ज्ञान हासिल किया था और उसके ज़रिये उन्होंने “रामचरितमानस” पढ़ने की क्षमता अर्जित कर ली थी जो जीवनभर उनकी दैनंदिनी में शामिल रहा। मुझे लगता नहीं कि उन्होंने रामचरितमानस के सिवा कोई और पुस्तक भी पढ़ी होगी!

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अंग्रेज़ी कलेंडर में यह तिथि बदलती रहती है और हमारे बचपन में “हैपी बर्थडे” कम से कम हमारे परिवार में तो किसी का नहीं हुआ, बात बहुत पुरानी भी है और हम देहाती भी थे ही।

युवा होने पर मैं ईश्वर के अस्तित्व और हर क़िस्म की मान्यता पर प्रश्न करने वाली सोहबत में पड़ गया था ।मॉ इस बात को पसंद नहीं करती थीं कि उनके द्वारा मान्य ब्राह्मणों से मैं इस बाबत कुछ पूछूँ या तर्क करूँ ।उनका वर्ण व्यवस्था में भी पक्का यक़ीन था।

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एकबार मरहूम डीपीटी (पूर्व राज्यसभा सांसद, देवी प्रसाद त्रिपाठी)को इसी चक्कर में उन्होंने खेत मज़दूरों की जाति का कहकर मुझे शर्मिंदा तक कर दिया था जो मेरे साथ एक सभा से लौटते हुए देर शाम घर पहुँचे थे । डीपीटी मेरे पड़ोस के ही रहने वाले थे और तब काफ़ी साँवले थे।

ख़ैर क़िस्सा कोताह यह कि मेरा नामकरण हिंदू कलेंडर के हिसाब से आज के ही दिन पर शीतला माता के सम्मान में शीतला परसाद किया गया था जो पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार के बहुत से इलाक़ों में बहुत सारे पुरुषों का नाम है।

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अब मॉ तो नहीं हैं पर चैत तो है और रहेगा और जब जब बरस की परिक्रमा पर चैत आयेगा तब तब उसकी सातवीं तिथि पर शीतला सप्तमी का ज़िक्र कहीं न कहीं से मेरे कान में पड़ ही जायेगा और मॉ के शब्द मेरे निजी संसार में बज उठेंगे “आज सीतल भ रहेन”।

प्रगतिशील और उदात्त विचारों वाले वरिष्ठ पत्रकार शीतल पी सिंह की एफबी वॉल से. शीतल अमर उजाला, चौथी दुनिया, इंडिया टुडे जैसे समूहों में लंबे समय तक काम करने के बाद निजी उद्यम में उतर गए. एक सफल व्यवसायी बनने के बावजूद अपने सामाजिक सरोकारों के चलते समय-समय पर पत्र-पत्रिकाओं से जुड़ते, लिखते, छापते रहे. इन दिनों डिजिटिल दौर में सत्य हिंदी डाट काम के जरिए ढेर सारे बड़े पत्रकारों को जोड़कर एक आम जन की पत्रकारिता कर रहे हैं.

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