सपा सरकार के साथ यह परेशानी शुरू से ही रही है कि जब-जब उसकी सरकार बनी है, तब-तब प्रदेश में क़ानून व्यवस्था बिगड़ने व उनकी ही पार्टी के लोगों के निरंकुश हो जाने के आरोप उस पर लगे हैं। साथ ही ‘अपनों’ को ‘उपकृत’ करने के आरोप भी लगते ही रहे हैं। युवा मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से लोगों को उम्मीद थी कि वे हालात को कुछ काबू कर पाएंगे किन्तु दुर्भाग्यवश ऐसा हो न सका और उनका स्वागत भी प्रदेश में विभिन्न स्थानों पर सिलसिलेवार तरीके से हुई हिंसक घटनाओं ने किया, जिसमें जान-माल का ख़ासा नुकसान हुआ। प्रदेश की स्थिति सुधारने को युवा मुख्यमंत्री ने कई अच्छे प्रयास किए किन्तु उनके अपनों ने ही उनके अच्छे कामों पर पलीता लगाने का काम किया और उन्हें मुसीबत में डाल दिया।
उत्तर प्रदेश के वर्तमान हालात किसी से छुपे नहीं हैं। पुलिस और प्रशासनिक निरंकुशता पर हाल ही में लगातार दो अलग-अलग मामलों पर सुनवाई करते हुए उच्च न्यायालय ने नाराजगी जताते हुए तल्ख टिप्पणी की है। राज्यपाल भी कई बार अपनी नाराजगी जता चुके हैं। अपनी धुन में लगे आईएएस सूर्यप्रताप सिंह और आईपीएस अमिताभ ठाकुर जैसे अफसर भी “खुलासा बम” फोड़-फोड़कर इनकी परेशानियों को कम नहीं होने दे रहे।
पिछले कुछ दिनों के घटनाक्रम की बात करें तो शाहजहांपुर में पत्रकार की मौत पर गंभीर आरोपों के घेरे में आयी सरकार अभी संभल भी न पायी थी कि कोठी (बाराबंकी) में पुलिसकर्मियों द्वारा एक महिला के साथ लूट, बलात्कार का प्रयास व जलाकर हत्या कर दिए जाने की बात सामने आई, जिसने सरकार को फिर मुसीबत में डाल दिया। यह मामला सुलझ पाता, उससे पहले ही तेज-तर्रार आईपीएस अमिताभ ठाकुर को कथित रूप से सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह द्वारा कुछ पुराने वाकये याद दिलाते हुए “सुधर जाने” की सलाह वाले फोनकॉल ने एक नया बखेड़ा खड़ा कर दिया।
जिस पुराने वाकये की याद दिलाई गयी, उसके बारे में कहा जाता है कि ये अमिताभ व सपा सुप्रीमो के एक बेहद नजदीकी के बीच की तनातनी से जुड़ा था, जिसमें सपा सुप्रीमो के नजदीकी द्वारा अमिताभ के साथ अभद्रता की गयी थी और पलटवार करते हुए अमिताभ ने भी सपा सुप्रीमो के उस नजदीकी के माथे पर पसीना ला दिया था। अमिताभ उस समय फिरोजाबाद के एसपी हुआ करते थे। बाद में सपा सुप्रीमो के हस्तक्षेप पर ही मामला शांत हुआ था। खैर, अपने बगावती तेवरों के लिए मशहूर आईजी ठाकुर अपने कमेंट और कामों को लेकर कई बार विवादों में रहे हैं और यूपी सरकार, प्रशासन से जुड़े कई मुद्दों पर अपनी बेबाक राय देकर सरकारी व्यवस्था पर कई बार उंगली उठा चुके हैं। अपने इन्ही तेवरों के कारण वे जनता की नज़र में हीरो व सरकार की आँखों की किरकिरी बनते हैं।
शाहजहांपुर के पत्रकार का मृत्युपूर्व बयान लेकर भी वे विवादों में घिरे और कहा गया कि आखिर वे किसके आदेशों पर वहाँ पहुंचे और बयान रिकॉर्ड किया। ताजा प्रकरण में भी सपा सुप्रीमो की फोनकॉल को अमिताभ ने रिकॉर्ड कर लिया और रिकॉर्डिंग मीडिया व सोशल मीडिया के माध्यम से लीक कर दी। अमिताभ यहीं नहीं रुके, बल्कि सपा सुप्रीमो के विरूद्ध खुद को धमकाने का आरोप लगाते हुए एफआईआर लिखाने थाने जा पहुँचे, जहाँ इनकी शिकायत लेकर जांचोपरांत कार्रवाई की बात कह इन्हें लौटा दिया गया। अमिताभ की एफआईआर तो नहीं लिखी गयी लेकिन इसी दिन अमिताभ के विरूद्ध एक महिला के साथ दुष्कर्म का मामला दर्ज कर लिया गया और साथ ही साथ इनकी पत्नी को भी इसमें साजिश रचने का आरोपी बनाया गया, जबकि इसी दुष्कर्म वाले मामले में कुछ दिन पहले ही स्वयं व अमिताभ को झूठा फंसाए जाने की साजिश रचने के आरोप में नूतन ठाकुर ने हाईकोर्ट लखनऊ में याचिका दायर कर मंत्री गायत्री प्रसाद प्रजापति व यूपी महिला आयोग की अध्यक्ष जरीना उस्मानी समेत आठ लोगों पर मुकदमा दर्ज करवाया था।
ऐसे में अब नूतन ठाकुर का आरोप है कि चूँकि उन लोगों के द्वारा प्रदेश के खनन मंत्री के खिलाफ मोर्चा खोला गया है, इसलिए उन्हें प्रताड़ित करने के उद्देश्य से सपा सरकार द्वारा यह सब किया जा रहा है। अमिताभ का भी यही आरोप है कि सपा सुप्रीमो की उनसे नाराजगी की वजह यही प्रकरण है और इसी कारण उन्हें फोनकॉल आया था। अपनी व अपने परिजनों की सुरक्षा को लेकर चिंताग्रस्त अमिताभ अपनी व्यथा सुनाने गृहमंत्रालय के अधिकारियों के पास जा पहुँचे और जहाँ उन्होंने राज्य पुलिस के प्रति अविश्वास जातते हुए अपने लिए केन्द्रीय बल की सुरक्षा की अपील की। यह बात शायद राज्य सरकार को नागवार गुजरी और अमिताभ को अनुशासनहीनता, शासन विरोधी दृष्टिकोण, हाईकोर्ट के निर्देशों की अनदेखी, अपने पद से जुड़े कर्तव्यों एवं दायित्वों के प्रति उदासीनता तथा नियमों के उल्लंघन आदि जैसे आरोपों में तत्काल प्रभाव से निलंबित कर डीजीपी कार्यालय से सम्बद्ध कर बिना पूर्व अनुमति के मुख्यालय छोड़कर जाने पर रोक लगा दी गयी।
सुनने में यह सब बिलकुल फ़िल्मी कहानी की तरह लगता है लेकिन यह कहानी नहीं, सच है। एक ओर सपा मिशन-2017 के तहत प्रदेश में पुनः ‘साइकिल दौड़ाने’ की सोच रही है, वहीं दूसरी ओर इनके द्वारा दी जाने वाली एकतरफा अतिशीघ्र प्रतिक्रियायें जनता और अधिकारियों के बीच एक गलत सन्देश दे रही हैं। जैसे-जैसे 2017 नजदीक आ रहा है, सपाइयों द्वारा अराजक व्यवहार (अभद्रता, मारपीट, बेवजह हंगामा, आपराधिक गतिविधियों में संलिप्तता आदि) जैसी ख़बरें भी सुर्ख़ियों में आ रही हैं जोकि जनता में एक नकारात्मक सन्देश दे रही हैं।
इसी प्रकार हत्या, हत्या के प्रयास, बलात्कार और जमीनों पर कब्जों जैसे गंभीर मामलों में भी पुलिस द्वारा उदासीन रवैया अपनाये जाने से भी जनता में आक्रोश बढ़ रहा है, जो 2017 में वोट के माध्यम से बाहर आता दिख सकता है। लेकिन यहाँ अधिकारी नेताओं से संपर्कों के सहारे मस्त से लगते हैं और नेता आलाकमान में अपनी पैठ के सहारे। बच गया वह आम इंसान, जो वोट देकर सरकार बनवाता है इस उम्मीद के साथ कि सरकार उसकी समस्याओं के निराकरण हेतु कुछ करेगी लेकिन तमाम योजनाओं और सुविधाओं में भी हिस्सा “पहुँच वाले” मार ले जाते हैं और यह आम इंसान ठगा सा रह जाता है।
प्रदेश का हाल इसी से समझ लीजिए कि यहाँ स्वयं आईपीएस अधिकारी अपनी जान को खतरे में बताता है और अपने ही विभाग पर अविश्वास जताता है! अधिकारी अपनी एफआईआर कोर्ट के माध्यम से दर्ज करवा पाता है, जबकि उसके विरुद्ध आसानी से मुकदमा दर्ज हो जाता है। ऐसे में एक आम इंसान क्या झेलता होगा, इसका अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है। आईएएस-आईपीएस लॉबी किसी भी सरकार के लिए रीढ़ की हड्डी की तरह काम करती है, जिससे प्रदेश में व्यवस्था ठीक-ठाक चलती रहे लेकिन अगर इस रीढ़ की हड्डी में ही चोट लग जाए तो व्यवस्था का चरमराना भी स्वाभाविक है। और ऐसे में सबकुछ जानते हुए भी अगर कोई स्वयं ही हथौड़ा लेकर अपने चोट मारने लगे तो क्या किया जाए? हम तो बस इतनी गुजारिश कर सकते हैं – वक्त है, संभल जाइए ‘सरकार’।
लेखक शिवम भारद्वाज से संपर्क : [email protected]