समरेंद्र सिंह-
सुजन सरैंडन हॉलीवुड अभिनेत्री हैं। उनकी कुछ फिल्में मैंने देखी हैं, जिनमें Shall We Dance और The Stepmom मुझे काफी पसंद हैं। 2013 के गोवा फिल्म फेस्टिवल में मुझे उन्हें देखने और सुनने का मौका मिला था। अपने इंटरव्यू में उन्होंने एक बहुत प्यारी बात कही थी। उन्होंने कहा कि व्यक्ति को Gracefully Age करना चाहिए। मतलब सुंदर, सलीकेदार और सम्मानजनक तरीके से बूढ़ा होना चाहिए। अगर आप उम्र के साथ सभ्य नहीं हो रहे हैं तो फिर सब बेकार है। बच्चों, युवाओं और बुजुर्गों में कुछ फर्क तो होना चाहिए।
बहुत से लोग कामयाब होते हैं। पैसे भी खूब कमाते हैं। नाम शोहरत भी खूब होती है। लेकिन बुढ़ापे में भी छिछोरे ही रह जाते हैं। फूहड़ बने रहते हैं। कुछ तो दिन ब दिन अश्लील होते जाते हैं। वैसे मैं कोशिश कर रहा हूं कि ग्रेसफुल तरीके से बूढ़ा होऊं। इसलिए अपनी कमियों को दूर करने में जुटा हूं। जनवरी 2018 के बाद काफी बदलाव आया है। सिगरेट-शराब बंद कर दी है। गांजा-चरस से भी दूर ही रहता हूं। लोगों से बोलते-बतियाते वक्त भी थोड़ा सावधान रहता हूं। पहले किसी को भी कुछ भी कह देता था। प्यार-मोहब्बत-नफरत सबका इजहार बहुत ही भद्दे तरीके से करता था। अब थोड़ा संयमित रहता हूं। फिर भी बहुत सी कमियां बची हैं। उम्मीद है कि पचास की चौखट पार करने से पहले सब दूर कर लूंगा।
सलीकेदार तरीके से बूढ़ा होने का अर्थ क्या है यह आप ओम पुरी और नसीरुद्धीन शाह के जरिए समझ सकते हैं। ओम पुरी ऐक्टिंग के मामले में नसीरुद्दीन शाह से 20 पड़ते थे। लेकिन उनका बुढ़ापा विवादों में बीता। कहीं उन्होंने दारू पी कर हंगामा कर दिया। गाली-गलौज की। उल-जलूल बयान दिए। जबकि नसीर ने अपना मान-सम्मान बरकरार रखा है।
वर्तमान दौर में कई ऐसे खुराफाती बुड्ढे हैं जिन्होंने लोगों की जिंदगी में चरस बो रखी है। अनुपम खेर और परेश रावल ऐसे ही दो बुड्ढे हैं। अनुपम गंजे तो जवानी में ही हो गए थे (वैसे गंजा तो अब मैं भी हो रहा हूं)। गंजे सिर में हवा लगने से अनुपम की खोपड़ी के भीतर का भेजा भी उड़ता जा रहा है! बात बात पर उनकी खोपड़ी ठनठनाने लगती है। वो सस्ती लोकप्रियता और ओछी राजनीति के चक्कर में लुच्चे बन गए हैं। परेश रावल का भी यही हाल है। ये दोनों लफुआ गैंग जैसा बर्ताब कर रहे हैं। लोगों को ट्रोल करते हैं। उनके पर्सनल डोमेन में घुसते हैं। राजनीति जो न कराए!
अब गुप्तेश्वर पांडेय जी को ही लीजिए। पुलिस में रहते हुए भी इनमें राजनीति करने की इच्छा जोर मार रही थी। ये पहले भी इस्तीफा दे चुके हैं। तब भी टिकट ही मांग रहे थे। शायद 2009 की घटना है। टिकट नहीं मिला तो वापस चोर सिपाही खेलने लगे। अधिकारियों को मिली इस छूट में संशोधन होना चाहिए। जिसने इस्तीफा दे दिया, उसे दोबारा नियुक्ति का अधिकार नहीं मिलना चाहिए।
कुछ दिन पहले पांडेय जी का वीडियो जारी हुआ था। किसी छोटी नदी में तैर कर सुबूत इकट्ठा कर रहे थे। वीडियो देख कर लगा कि ये पब्लिसिटी स्टंट में माहिर आदमी हैं और अदालत वगैरह में भी इनका यकीन नहीं है। पुराना दौर होता तो चुलबुल पांडे की तरह ये मौके पर ही इंसाफ कर देते। मोटी चोटी रखते हैं, जो घनघोर जातिवादी चरित्र को बयां करती है। बोलते हैं तो लगता है कि ऐसा अफसर किसी प्रदेश का डीजीपी कैसे हो सकता है! सुशांत सिंह राजपूत मामले में तो इनकी भाषा लफंगों जैसी रही है। दूसरों को उनकी औकात बता रहे थे। कानून का रखवाला जब औकात बताता है तो सबसे पहले कानून व्यवस्था की औकात पता चलती है। ऐसे डीजीपी के राज में कानून व्यवस्था की लंका ही लगती है।
वैसे लगता है कि गुप्तेश्वर पांडेय जी को सत्ताधारी एनडीए से टिकट मिल जाएगा। टिकट मिलेगा तो ये चुनाव भी जीत सकते हैं। उसके बाद ये गिरिराज सिंह और पप्पू यादव जैसों को कड़ी टक्कर देंगे।
पता नहीं उत्तर प्रदेश और बिहार के लोगों को क्या हो गया है? एक से बढ़ कर एक “क्रांतिकारियों” को ये लोग विधानसभा और संसद भेज देते हैं। उम्र के साथ व्यक्ति और समाज दोनों में कुछ सुधार तो होना चाहिए। लेकिन लगता है कि इन दोनों प्रदेशों में फैक्ट्री (समाज) और उत्पाद (व्यक्ति) दोनों की संरचना गड़बड़ा गई है। कोरोनावायरस से भी अधिक खतरनाक कोई वायरस घुस गया है।
ANUPAM
September 24, 2020 at 9:30 pm
ढक्कन टाइप लिखे हैं…