ओशो-
मैंने सुना है, मुसलमान बादशाह हुआ: महमूद। उसका एक नौकर था। बड़ा प्यारा था। इतना उसे प्रेम था उस नौकर से और उस नौकर की भक्ति-भाव से, उसके अनन्य समर्पण से कि महमूद उसे अपने कमरे में ही सुलाता था। उस पर ही एक भरोसा था उसको।
दोनों एक दिन शिकार करके लौटते थे, राह भटक गये, भूख लगी। एक वृक्ष के नीचे दोनों खड़े थे। एक फल लगा था–अपरिचित, अनजान। महमूद ने तोड़ा। जैसी उसकी आदत थी, चाकू निकालकर उसने एक टुकड़ा काटकर अपने नौकर को दिया, जो वह हमेशा देता था, पहले उसे देता था फिर खुद खाता था। नौकर ने खाया। बड़े अहोभाव से कहा कि “एक कली और…! एक कली और दे दी, उसने फिर कहा, “एक कली और…!’ तो तीन हिस्से वह ले चुका, एक हिस्सा ही बचा। महमूद ने कहा, “अब एक मेरे लिए छोड़।’ पर उसने कहा कि नहीं मालिक, यह फल तो पूरा ही मैं खाऊंगा। महमूद को भी जिज्ञासा बढ़ी कि इतना मधुर फल है, ऐसा इसने कभी आग्रह नहीं किया! तो छीना-झपटी होने लगी। लेकिन नौकर ने छीन ही लिया उसके हाथ से।
उसने कहा, “रुक! अब यह जरूरत से ज्यादा हो गयी बात। तीन हिस्से तू खा चुका। एक ही फल है वृक्ष पर। मैं भी भूखा हूं। और मेरे मन में भी जिज्ञासा उठती है कि इतनी तो तूने कभी किसी चीज के लिए मांग नहीं की। यह मुझे दे दे वापस।
नौकर ने कहा “मालिक, मत लें, मुझे खा लेने दें।’
पर महमूद ने न माना तो उसे देना पड़ा। उसने चखा तो वह तो जहर था। ऐसी कड़वी चीज उसने अपने जीवन में कभी चखी ही न थी। उसने कहा, “पागल! यह तो जहर है, तूने कहा क्यों नहीं।’
तो उसने कहा कि जिन हाथों से इतने स्वादिष्ट फल मिले, उन हाथों से एक कड़वे फल की क्या शिकायत!
शिकायत दूर ले जाएगी, धन्यवाद पास लाएगा।
थोड़ा सोचो: उस दिन वह नौकर महमूद के हृदय के जितने करीब आ गया…। महमूद रोने लगा। वह तो बिलकुल जहर था फल। वह तो मुंह में ले जाने योग्य न था। और उसने इतने अहोभाव से, इतनी प्रसन्नता से उसे स्वीकार किया, छीना-झपटी की! वह नहीं चाहता था कि महमूद चखे। क्योंकि चखेगा तो महमूद को पता चल जाएगा कि फल कड़वा था। यह तो कहने का ही एक ढंग हो जाएगा कि फल कड़वा है–न कहा लेकिन कह दिया। यह तो शिकायत हो जाएगी। इसलिए छीन-झपटी की। जिन हाथों से इतने मधुर फल मिले, उस हाथ से एक कड़वे फल की क्या चर्चा करनी! यह बात ही उठाने की नहीं है।
परमात्मा ने इतना दिया है कि जो शिकायत करता है वह अंधा है।
थोड़ी लहरें आती हैं, उन लहरों में डूबो! और लहरें आएगी।
धन्यवाद, अनुग्रह का भाव, बड़ी लहरें आएगी। एक दिन सागर का सागर तुम में उतर आएगा। एक दिन तुम्हें बहाकर ले जाएगा। सब कूल-किनारे टूट जाएंगे।