अरविंद कुमार सिंह (आजमगढ़)-
राज्य मुख्यालय मान्यता प्राप्त पत्रकारों का चुनाव… सबसे पहले हेमंत तिवारी और शिवशरण सिंह को अध्यक्ष और सचिव एक बार पुनः चुने जाने पर अशेष शुभकामनाएं! बन्धुवर आप का रणकौशल और व्यूरचना ने एकबार फिर आप दोनों को ताज पहनाया..
इसी के साथ परिवर्तन के पर्याय बने मनोज मिश्रा, भारत सिंह और राघवेंद्र प्रताप सिंह के हिम्मत, जज़्बात और दिलेरी को साधुवाद? आप ने उस मिथक और धारणा को बदल दिया कि- लगभग अपराजेय समझे जाने वाले योद्धाओं को पराजित नहीं किया जा सकता है.
इसी के साथ परिणाम आते ही उत्तर प्रदेश के विधानभवन में एक ऐतिहासिक और सुखद दृश्य भी दिखा- विजेता हेमंत तिवारी को उनके विरूद्ध सबसे प्रबल योद्धा रहे मनोज मिश्रा ने अपनी हार को स्वीकार करते हुऐ उन्हें शुभकामनाएं दी.ज्ञानेंद्र को शुभकामनाएं दी! और उन्हें इस जीत की बधाइयाँ दी!! जोकि लोकतंत्र की एक शानदार तस्वीर थी. बधाइयाँ मनोज के इस उत्साह को..!!
अब एक बात और जो योद्धाओं के लिए है..! मैंने एक कहानी सुनी है और केवल सुनी भर नहीं, बल्कि हम जैसे लोग इसे सदैव जीते भी हैं. कहानी बहुत प्रेरणादायी और जिजीविषा भरी है-
दक्षिण अफ्रीका में एक द्वीप है.. इस द्वीप पर जंगली और जनजातियों के कबीले हैं. इस कबीले के लोग बड़े मौलिक और परंपराओं में गहरी निष्ठा रखते हैं. इनके यहाँ एक मान्यता है और इसके लिए उनके गहरे विश्वास पीढ़ी दर पीढ़ी से हैं कि- ‘जब इस कबीले के लोग नाचते/नृत्य करते हैं तो पानी बरसता है’. यह ख़बर उस देश ही नहीं बल्कि दुनिया की बड़ी हैरान कर देने वाली ख़बर थी. दुनिया भर की रिसर्च एजेंसियां और साइंटिस्ट इस रहस्यमय कारण का पता लगाने की कोशिश की. वैज्ञानिक अनुसंधान किए गए, लेकिन कोई भी एजेंसी यह बताने को तैयार नहीं हो सकी कि- ‘कबिलाइयों के नाचने और पानी बरसने के बीच क्या संबंध है? ‘ यह रहस्य विज्ञान की प्रगति और तकनीकी को भी मुंह चिढ़ाने लगें. आखिर में हार मानकर दुनिया के वैज्ञानिक उस कबीले के सरदार से मिले और बड़े आश्चर्य से पूछे कि- ‘सरदार! ऐसा क्यों होता है कि जब भी कबीले के लोग नाचते हैं- तो पानी बरसने लगता है? जबकि किसी और के नाचने से पानी नहीं बरसता है. पहले तो सरदार, दुनिया के वैज्ञानिकों और उनकी वैज्ञानिक प्रगति पर अट्टहास किया.. खूब हंसा.. और जब रूका तो बोला, साहब! बस इतनी भर प्रगति हुई देश और दुनिया में..? तो सुनो. हमारे नाचने और पानी बरसने के बीच क्या संबंध है वह कोई मिस्ट्री नहीं है बल्कि मनोविज्ञान और हमारे विश्वास की गहरी धारण है, जो हमारे पीढ़ियों से चली आयी है और पीढ़ियों तक यूँ ही चलती जाएगी..
जब वैज्ञानिकों का सब्र खत्म होने लगा तो सरदार बोला- “सुनो साब! हम तब तक नाचते हैं.. हम तब तक नाचते हैं.. तबतक नाचते हैं.. तबतक नाचते हैं… जबतक कि पानी न बरस जाए..!” यानि दिन-महिनों.. और धूप-छांव की परवाह किये बगैर हम पानी बरसने तक अपने धुन और रौव में नाचते रहते हैं. और एक दिन पानी बरस ही जाता है. हमे यह विश्वास है कि आखिर पानी कबतक नहीं बसेगा.. ?
दरअसल मनोज मिश्रा और उनकी टीम अब इस कहानी को जीने लगी है. और मानने लगी है कि हमें पानी बरसने तक लगातार बिना रूके.. बिना थके.. नाचते रहना है. इस हार के बाद मनोज ने अपनों से जो बात कही वह केवल बात भर नहीं है बल्कि इसमे अटूट आत्मविश्वास और जीत के बीजमंत्र छिपें हैं- उन्होंने कहा- दोस्तों हम केवल चुवाव हारे हैं अपना आत्मविश्वास और उत्साह नहीं.. हम अकेले थे आप साथ आएं..एक टीम बनी..और अब तो 180 मित्रों का आशीर्वाद हमारे साथ है. हमने एक मजबूत इमारत की बुनियाद हिला दिया है. यह पहली लड़ाई है. सच्चे मायने में हम जीते नहीं है तो हारे भी नहीं हैं.. हम यूँ इसी गति से आज से ही अगली तैयारी करेगें.. लड़ेंगे और जीतेंगे और किसी के अपराजेय होनी की मिथ को गलत साबित कर देगें… हमें पत्रकारहीत में आगे बढ़ना है. हम बड़ों के आशीर्वाद के आभारी और छोटों के प्रेम के ऋणी हैं.. हमउम्र साथियों ने हमें यह विश्वास दिलाया कि हम जीत सकते हैं… यह मेरे लिए पहला चुनाव था.. बहुत कुछ सिखाया है यह चुनाव.. और हमारे आत्मविश्वास और उत्साह को और मजबूत किया है.. साथियों ! हम लड़ेंगे.. क्योंकि हमे लड़ना ही होगा..!
शानदार लड़े भाई राघवेंद्र प्रताप सिंह… ! कुछ चीजे जीत हार से ऊपर होती है.. अनंत बधाइयाँ.. आप भविष्य नेता हैं.