देव श्रीमाली-
मुझे इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में राष्ट्रीय फलक से जोड़ने वाले राजकुमार केसवानी नहीं रहे
वरिष्ठ पत्रकार, जबरदस्त लेखक, फिल्मी लेखन के बादशाह राजकुमार केसवानी जी अब नही रहे। दैनिक भास्कर के रसरंग में रविवार को करोड़ों पाठकों को सिर्फ फ़िल्म पर आधारित उनके कॉलम “आपस की बात” का बेसबी से इंतज़ार रहता था। अब वह कॉलम सदैव के लिए रिक्त हो गया। जब मैं ग्वालियर दैनिक भास्कर में था तब स्व केसवानी जी से पहली मुलाकात हुई। यह 1990 के बात है। एक साल बाद अचानक उनका कॉल आया और उन्होंने कहा कि एनडीटीवी (तब चेनल का नाम स्टार न्यूज था और इसका प्रोडक्शन सहभागी एनडीटीवी था) में काम करोगे? मैने कहा – मुझे तो इस माध्यम का ककहरा भी नही आता। वे बोले – मुझे कौन सा आता था। आ गया तो सीख गया। जब मेरे जैसा सड़क छाप सीख सकता है तो तुम तो ठहरे युवा पत्रकार।
इसके बाद उन्होंने इस चैनल से मुझे जोड़ दिया । वे लाजबाव ब्यूरो चीफ थे । काम खूब करवाते थे लेकिन चैनल से लड़कर खबर भी चलवाते थे और पैसे भी भरपूर दिलवाते थे । हिसाब में वे एकदम बनिया थे । पाई – पाई का हिसाब रखते थे। बाद में उन्होंने चैनल से निवृति ले ली । वे दैनिक भास्कर इंदौर के संपादक रहे।
वे फिल्मी लेखन के बहुत ही संजीदा लेखक थे । इतने संदर्भो को वे पिरो देते थे कि पाठक उनके लेख को आधोपान्त पढ़े बिना नही रह सकता था।
उनमें गजब की ऊर्जा थी । उम्र उसमे कभी आड़े आती नही दिखी । वे सबसे पहले चर्चा में आये तब जब भोपाल में।यूनियन कार्बाइड की गैस ट्रेजडी हुई जिसमें हजारों जानें गई । उस घटना की उन्होंने खोजपूर्ण रिपोर्टिंग की। इससे सम्बद्ध अबोध बच्चे के शव का उनके द्वारा खींचा गया एक मार्मिक फोटो पूरी दुनिया की मीडिया के लिए इस केस का आइकॉन बन गया । दुनियां भर में जब भी किसी माध्यम पर इस घटना से जुड़ी रिपोर्ट प्रकाशित और प्रसारित होती है तो स्व केसवानी जी का क्लिक किया फ़ोटो ही उसमे चिपका होता है।
उन्होंने यूं तो कई किताबें लिखी जिनमे हालिया आई मुगले आज़म नामक किताब है जो बेस्ट सेलर बनी रही ।
वे पिछले माह कोरोना से संक्रमित हो गए थे । ब्रजेश राजपूत जी ने मुझे बताया था । वे लगभग रोज अस्पताल फोन लगाकर डॉक्टर्स से उनके बारे में जानकारी लेते थे । मुझे भी वे बताते रहते थे । परसो ब्रजेश जी का फोन आया तो वे दुःखी, चिंतित ही नही निराश भी थे कि एक माह हो गया कोई फायदा नही मिल रहा ।
उनकी चिंता जायज थी । आज उन्होंने ही फेसबुक के जरिये सबको बताया कि केसवानी जी अब हमारे बीच नही रहे । यह एक अपूरणीय क्षति है । उन्होंने नई पीढ़ी को पुरानी फिल्मों ,कलाकारों की जीवन यात्राओं से परिचित कराने का अमूल्य काम किया जो अब ठहर जाएगा । भोपाल में उर्दू जुबान की विशेषज्ञता के लिए वे पहचाने जाते थे , यह पहचान के साथ जगह भी रिक्त हो गई जिसे भर पाना आसान नही होगा । वे भोपाल की पटिया परंपरा में किस्सागोई करते थे वह रोचक ही नही मजेदार भी होता था ,पाठक उस विधा से वंचित हो जाएंगे।
ओम थानवी-
राजकुमार केसवानी के जाने की खबर ने झकझोर कर रख दिया है। भोपाल में गैस त्रासदी से कितना पहले आगाह किया था उन्होंने। अपने छोटे-से अख़बार में बड़ी रिपोर्टिंग की। मरहूम बीजी वर्गीज़ साहब ने कालजयी रिपोर्टिंग के चुनिंदा उदाहरण लेकर किताब निकाली, उसमें केसवानीजी का दाय भी शामिल हैं। अमेरिका से किसी ने भोपाल त्रासदी पर वृतचित्र बनाया, जिसमें केसवानी हर जगह मौजूद रहे। अमेरिका बुलाए भी गए।
वे हिंदी सिनेमा के गहरे जानकार थे। साहित्य अनुरागी थे। कविता भी करते थे। संगीत के रसिया थे। लाख से बने पुराने रेकार्डों का उनके पास बड़ा संग्रह था। और भी अनेक दुर्लभ चीज़ें। जब भी भोपाल जाना हुआ, केसवानीजी के घर ज़रूर गया। ट्रेन से लौटता तो सिंधी घी-रोट “कोकी” भाभीजी से बनवा कर साथ लाता था।
केसवानी यारबाश फ़ितरत के शख़्स थे। ठहाकों के बग़ैर उनकी कोई बात पूरी नहीं होती थी। पर काम में सदा गम्भीर रहते। ज्ञान भाई के साथ मिलकर ‘पहल’ को बचाने की उन्होंने कितनी कोशिश की। मगर पहल अंततः बंद हो गई। पीछे कोरोना हमारे राजकुमार को ले गया। बहुत दुखद।
स्मृतिनमन, मेरे दोस्त!