लखनऊ : सीएम योगी आदित्यनाथ के सोशल मीडिया सेल में कार्यरत कर्मचारी पार्थ श्रीवास्तव के सुसाइड प्रकरण में काफी देर से लखनऊ पुलिस ने केस दर्ज किया है. आरोपियों और साजिशकर्ताओं को सुबूत मिटाने का पूरा मौका दिया गया. लखनऊ पुलिस कमिश्नरेट ने ट्वीट पर केस दर्ज किए जाने की जानकारी दी है.
सुसाइड करने वाला युवक इंदिरा नगर थाना क्षेत्र में रहता था. पार्थ श्रीवास्तव की आत्महत्या के तीसरे दिन केस दर्ज किया गया है. यह केस सीएम की नाक के ठीक नीचे घटित हुआ. बावजूद इसके चार दिन लग गए केस दर्ज करने में. सोचिए, यूपी के दूर दराज के इलाकों में कैसे पुलिस काम करती होगी.
वैसे लखनऊ में चर्चा है कि सीएम योगी आदित्यनाथ की नाराजगी के बाद ही ये सुसाइड का केस पुलिस ने दर्ज किया है. अगर अफसरों के उपर ही इसे छोड़ा गया होता तो ये केस भी दर्ज न करने देते क्योंकि इस मामले में कई अफसरों की गर्दन फंस रही है. पार्थ सुसाइड कांड के बाद कई नए घोटाले भी सामने आए हैं. फर्जी तरीके से मान्यता प्राप्त संवाददाता बनाना, कमीशनबाजी, फर्जी अखबारों को विज्ञापन देना आदि आदि.
पार्थ ने अपने सुसाइड नोट में कई लोगों के नाम का जिक्र किया है. पुलिस ने दो के खिलाफ नामजद रिपोर्ट दर्ज किया है. पुष्पेन्द्र सिंह तथा शैलजा के खिलाफ आत्महत्या के लिए प्रेरित करने का केस दर्ज किया गया है. मरने से पहले पार्थ ने इंटरनेट मीडिया पर सुसाइड नोट को पोस्ट किया था जिसे बाद में किसी ने डिलीट करा दिया. साक्ष्य मिटाने का काम भी पुलिस और अफसरों ने मिलकर खूब किया है.
कायदे से इस प्रकरण की जांच अब सीबीआई के हवाले कर देना चाहिए क्योंकि प्रथम दृष्टया असली अपराधियों को बचाने में लगी हुई है लखनऊ पुलिस. इसलिए सही जांच नतीजे की उम्मीद नहीं की जा सकती है.
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