एक तरफ जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी फिजूलखर्ची और भ्रष्टाचार को लेकर बिगुल बजाए रहते हैं वहीं प्रसार भारती के अधिकारी प्रधानमंत्री के इस मिशन को हर कदम पर नाकाम करने में पूरी शिद्दत से जुटे हुए हैं।
पिछली सरकार में तो प्रशासनिक कार्यों के नाम पर विदेशों में सैर सपाटा अधिकारियों का पसंदीदा शगल रहा है। लेकिन माना जाता था कि मोदी सरकार में इस पर लगाम लगाई गई है. शायद यही वजह है कि प्रधानमंत्री कहते रहे हैं कि विदेश यात्रा की आड़ में जनता की गाढ़ी कमाई का सिर्फ दुरूपयोग होता है। प्रधानमंत्री कूटनीतिक रूप से जरूरी से जरूरी अपनी विदेश यात्राओं पर ना सिर्फ कम से कम स्टाफ लेकर जाते हैं, बल्कि ठहरने आदि में भी पूरी किफायत का खयाल रखते हैं। लेकिन भारत सरकार का ही सफेद हाथी बनता जा रहा प्रसार भारती प्रधानमंत्री की इस सोच पर पानी फेर रहा है।
हाल ही में प्रसार भारती ने अपने पांच अधिकारियों को इंटरनेशनल ब्राडकास्टिंग कन्वेंशन के कार्यक्रम में शामिल होने के लिए नीदरलैंड की राजधानी एम्सटर्डम भेज दिया। विदेश जाने वाली इस लिस्ट में उन पांचों अधिकारियों के नाम हैं, जिन्होंने लाखों रूपए एक हफ्ते के इस कार्यक्रम में खर्च किए हैं।
जब पूरी सरकार करदाता के पैसे के दुरूपयोग को रोकने की कवायद में जुटी हुई है, ऐसे में यह सवाल उठना लाजिमी है कि आखिर इन पांच लोगों को इस कार्यक्रम में भेजने का क्या औचित्य है। प्रसार भारती से जब इस सिलसिले में पूछा गया कि क्या एक या दो अधिकारी से इस कन्वेंशन में प्रसार भारती की नुमाइंदगी नहीं हो सकती थी? लेकिन इस सवाल का जवाब देने के लिए प्रसार भारती का कोई जिम्मेदार कारिंदा या अधिकारी तैयार नहीं है। सवाल यह भी है कि क्या प्रसार भारती ने इस कार्यक्रम में अपना कोई स्टॉल लगाया कि वहां इतने अधिकारियों की जरूरत थी? इस सवाल का भी जवाब किसी के पास नहीं है। सवाल यह भी है कि क्या भेजे गए अधिकारियों को वहां कोई शोध पत्र या विशेष दस्तावेज प्रस्तुत करना था। इसका भी जवाब नहीं मिल रहा है। हालांकि पता चला है कि किसी भी अधिकारी ने ना तो वहां भारत की तरफ से कोई व्याख्यान दिया और ना ही कोई शोध पत्र पेश किया। सवाल यह भी है कि क्या एम्सटर्डम में इन अधिकारियों को ब्राडकास्टिंग की कोई आधुनिक तकनीक के बारे में जानकारी हासिल करनी थी? प्रसार भारती के सूत्र इससे भी इनकार कर रहे हैं।
एम्सटर्डम भेजे गए अधिकारियों में से एक राजेश श्रीवास्तव फिलहाल दूरदर्शन और दूरदर्शन समाचार के महानिदेशक एवं प्रसार भारती के कार्यकारी सीईओ मयंक अग्रवाल के निजी सहायक है। इस लिस्ट में दूसरा नाम आदित्य चतुर्वेदी का है, जो प्रसार भारती अभिलेखागार के उप महानिदेशक हैं।
एम्सटर्डम भेजे गए लोगों की लिस्ट को ध्यान से देखें तो आपको समझ में आएगा कि कंटेंट से संबंधित एक भी अधिकारी इस कार्यक्रम में हिस्सा लेने नहीं गया था जबकि आईबीसी में तकनीक के साथ ही कंटेंट पर भी गंभीरता से चर्चा होती है। साफ है कि यह पूरा खेल अपने लोगों को उपकृत करने और जनता के टैक्स के पैसे से कुछ लोगों को मजा दिलाने का है। हैरान करने वाली बात है कि जिस भ्रष्टाचार और फिजूलखर्ची को लेकर प्रधानमंत्री इतने मुखर रहते हैं, लाल किले से अपने भाषण में खुलकर भ्रष्टाचार और फिजूलखर्ची पर प्रहार करते हैं और प्रण लेते हैं कि देश को इससे बचाएंगे, उनकी इस सोच को उनके ही नाक के नीचे काम कर रहे अधिकारी ही इसे दरकिनार कर रहे हैं।
हाल के दिनों में प्रसार भारती में प्रशासनिक अधिकारियों का दबदबा ज्यादा बढ़ा है। भारत के सार्वजनिक प्रसारक की कमान अनुभवहीन और निचले पायदान के अधिकारी को दिया गया है जिसे उन्होंने अपनी चारागाह समझ लिया है। सूचना सेवा के अधिकारी के हाथ में जब से प्रसार भारती की कमान आई है, तब से अनियमितताओं की झड़ी लग गई है।
प्रसार भारती के कार्यकारी सीईओ मयंक अग्रवाल अपने चहेतों को रेवड़ी बांटने में जुट गए हैं। मयंक अग्रवाल फरवरी 2023 में सेवानिवृत्त होने वाले हैं। इसलिए वे अपने रिटायरमेंट के बाद मलाईदार पद पाने की कोशिश में भी जुटे हुए हैं। उनकी निगाह प्रसार भारती के सीईओ के पद पर नियमित नियुक्ति हासिल करने की है। इसलिए वे चाहते हैं कि सबको खुश रखा जाय, भले ही इसके लिए करदाताओं के पैसे को पानी की तरह ही क्यों ना बहाना पड़े।
दिलचस्प यह है कि मौजूदा मोदी सरकार के नजदीकी बनने की कोशिश में जुटे मयंक अग्रवाल मनमोहन सरकार के सूचना और प्रसारण मंत्री मनीष तिवारी के बहुत करीबी हैं। उस दौरान डीडी न्यूज में भारी संख्या में सलाहकारों की नियुक्ति कराने में मयंक की ही अहम भूमिका निभाई थी।
इस समय दूरदर्शन की डीजी, डीडी न्यूज के डीजी और प्रसार भारती के सीईओ की कमान एक ही आदमी यानी मयंक अग्रवाल के हाथ में है। इसलिए कई बार वे तानाशाह की भी तरह काम करते नजर आते हैं। चूंकि उनकी जवाबदेही भी नहीं है।