Yashwant Singh : भाजपा ने सबको सेट कर रखा है। अब कांग्रेस वाले कुछेक पोर्टलों से काम चला रहे हैं तो इतनी बेचैनी क्यों। मुकदमा ठोंक के भाजपा ने रणनीतिक गलती की है। मुद्दे को देशव्यापी और जन-जन तक पहुंचा दिया। एक वेबसाइट को करोङों की ब्रांडिंग दे दी। तहलका वालों ने कांग्रेस परस्ती में बहुत-सी भाजपा विरोधी ‘महान’ पत्रकारिता की। मौका मिलते ही भाजपा शासित गोआ में तरुण तेजपाल ठांस दिए गए। उनके साथ हवालात में क्या क्या हुआ था, उन दिनों गोआ में तैनात रहे बड़े पुलिस अधिकारी ऑफ दी रिकार्ड बता सकते हैं।
तहलका अब लगभग नष्ट हो चुका है। केंद्र में सरकार भी बदल गयी तो सारे बनिया मानसिकता वाले मीडिया मालिक भाजपाई हो गए। ऐसे में मीडिया फील्ड में एक एन्टी बीजेपी मोर्चा, जो कांग्रेस परस्त भी हो, तैयार करना बड़ा मुश्किल टास्क था। पर धीरे धीरे सिद्धार्थ वरदराजन एंड कंपनी के माध्यम से कर दिया गया। एन गुजरात चुनाव के पहले जय शाह की स्टोरी का आना, कपिल सिब्बल का इसको लपक कर प्रेस कांफ्रेंस करना, हड़बड़ाई भाजपा का बैकफुट पर आकर अपने एक केंद्रीय मंत्री के जरिए प्रेस कांफ्रेंस करवा के सफाई दिलवाना, सौ करोड़ का मुकदमा जय शाह द्वारा ठोंका जाना… मैदान में राहुल गांधी का आ जाना और सीधा हमला मोदी पर कर देना… यह सब कुछ बहुत कुछ इशारा करता है।
बड़ा मुश्किल होता है निष्पक्ष पत्रकारिता करना। बहुत आसान होता है पार्टी परस्ती में ब्रांड को ‘हीरो’ बना देना। भड़ास4मीडिया डॉट कॉम चलाते मुझे दस साल हो गए, आज तक मुझे कोई निष्पक्ष फंडर नहीं मिला। जो आए, उनके अपने निहित स्वार्थ थे, सो मना कर दिया। न भाजपाई बना न कांग्रेसी न वामी। एक डेमोक्रेटिक और जनपक्षधर पत्रकार की तरह काम किया। जेल, मुकदमे, हमले सब झेले। पर आर्थिक मोर्चे पर सड़कछाप ही रहे। जैसे एक बड़े नेता का बेटा फटाफट तरक्की कर काफी ‘विकास’ कर जाता है, वैसे ही कई बड़े नामधारी पत्रकारों से सजा एक छोटा-मोटा पोर्टल एक बड़ी पार्टी के संरक्षण में न सिर्फ दौड़ने लगता है बल्कि ‘सही वक्त’ पर ‘सही पत्रकारिता’ कर खून का कर्ज चुका देता है।
इसे मेरी निजी भड़ास कह कर खारिज कर सकते हैं लेकिन मीडिया को दशक भर से बेहद करीब से देखने के बाद मैं सचमुच सन्यासी भाव से भर गया हूं। यानि वैसा ज्ञान प्राप्त कर लिया हूं जिसके बाद शायद कुछ जानना बाकी नही रह जाता। आज के दौर में मीडिया में नायक पैदा नहीं होते, गढ़े जाते हैं। कारपोरेट और पॉलिटिशियन्स ही मीडिया के नायक गढ़ते हैं। दी वायर और सिद्धार्थ वरदराजन की पत्रकारीय राजनीति पर शक करिएगा, नज़र रखिएगा। ये जन सरोकार से नहीं फल फूल रहे, ये बड़े ‘हाथों’ के संरक्षण में आबाद हो रहे।
चार्टर्ड फ्लाइट से वकील कपिल सिब्बल / प्रशांत भूषण और संपादक सिद्धार्थ वरदराजन ये वाला ‘क्रांतिकारी’ मुकदमा लड़ने अहमदाबाद जाएंगे, बाइट देंगे, फोटो खिचाएँगे, केस गुजरात से बाहर दिल्ली में लाने पर जिरह कराएंगे। इस सबके बीच इनकी उनकी ऑनलाइन जनता हुँआ हुँआ करके सोशल मीडिया पर ट्रेंडिंग वाली तगड़ी खेमेबंदी करा देगी। इस दौरान हर दल के आईटी सेल वाले सच को अपनी-अपनी वाली वैचारिक कड़ाही में तल-रंग, दनादन अपलोड ट्रांसफर सेंड शेयर ब्रॉडकास्ट पब्लिश करने-कराने में भिड़े-लड़े रहेंगे, ताकि पब्लिक परसेप्शन उनके हिसाब से बने।
आज के दौर में चीजें बहुत काम्प्लेक्स हैं, मल्टी लेयर लिए हुए हैं। अगर आपको पार्टियों से अघोषित या घोषित रोजगार मिला हुआ है तो आप अपने एजेंडे को अपने तरीके का सच बताकर परोसेंगे, वैसा ही कंटेंट शेयर-पब्लिश करेंगे। जो सच को जान समझ लेता है वो बोलने बकबकाने हुहियाने में थोड़ा संकोची हो जाता है। ऐसे समय जब दी वायर हीरो है, कांग्रेसी आक्रामक हैं, भक्त डिफेंसिव हैं, भाजपाई रणनीतिक चूक कर गए हैं, शेष जनता जात धर्म के नाम पर जल कट मर रही है और इन्हीं आधार पर पोजिशन लिए ‘युद्ध’ मे इस या उस ओर बंटी-डटी है, मुझे फिलहाल समझ नहीं आ रहा कि अपने स्टैंड / अपनी पोजीशन में क्या कहूँ, क्या लिखूं। इस कांव कांव में जाने क्यूं मुझे सब बेगाना-वीराना लग रहा है।
भड़ास4मीडिया डाट काम के फाउंडर और एडिटर यशवंत सिंह की उपरोक्त एफबी पोस्ट पर आए ढेर सारे कमेंट्स में से कुछ प्रमुख इस प्रकार हैं…
Shamshad Elahee Shams ज़बरदस्त. सभी नाप दिऐ आपने..कलम हो तो ऐसी हो.
Pranav Shekher Shahi Hats off… दादा… वाकई जानदार लेखनीः।
अभिषेक मिश्रा बस यही आपको सबसे अलग बनाती हैl
Muzaffar Zia Naqvi भैय्या दिल निकाल कर रख दिया आपने। उम्मीद रखिए दिन बदलेंगे।
Ashok Anurag जय जय जय जय हो सत्य वचन, गर्दा लिखे हैं
Ashok Aggarwal आपने तो बहुत जानदार बात लिख दी है आप कह रहे हैं क्या लिखूं ।
Vijay Srivastava ये विश्लेषण पत्रकारिता की नयी पौध को सलीके से सींच सकता है. मैं इसे अपने वाल पर शेयर कर रहा हूं.
Vijayshankar Chaturvedi मैं निष्पक्ष हूँ। भारतीय वामधारा का समर्थक होने के बावजूद आप जान लीजिए, कार्यकर्ता बनने को पत्रकारिता नहीं समझता। और, संन्यास आप ग़लत लिखते आए हैं। कृपया सुधार लीजिए।
Yashwant Singh प्रभो, तुम ज्ञानी, हम मूरख। जानि रहै ई बात 🙂
Sushil Dubey नहीं बाबा पहली बार लगा की आप थक रहे हो सिस्टम से… वीर तुम बढ़े चलो
Yashwant Singh बाबा, थकना बहुत ही प्यारी सी मानवीय और प्राकृतिक (अ)क्रिया/ अवस्था है। हमका कंपूटर जाने रहौ का? 🙂
Ajai Dubey have u same view about Robert Vadra case.
Yashwant Singh हम सबके घरों में दामाद / बेटे होते हैं जिन्हें बढ़ाने का दायित्व ससुरों / बापों का होता है। ये काम पार्टी वाले बाप / सास भी करती / करते हैं। संपूर्णता में चीजों को देखेंगे तब समझेंगे। किसी उस वाड्रा दामाद या इस शाह बेटा पर अटके रहेंगे तो कांव कांव वाली जमात में ही रह जाएंगे। 🙂
Ajai Dubey sahi baat, agree Yashwant ji.
Badal Kumar Yashwant sir your analysis is best on contemporary media.
Sandeep K. Agrawal Bahut achchhi aur sachchi bat kahi aapne… Nishpakash ko trishanku banakar uski durgat karne ka koi mouka nahi chhoda ja raha hai..
Shorit Saxena आलेख सटीक तो है ही, बहुत कुछ सिखाता है। बड़ी बात आइना दिखाता है कि आदरणीय विनोद दुआ जी की बातोंसे भावुक ना हुआ जाये। यहाँ सब प्री प्लांड ही है। गजब, जय जय।
योगेंद्र शर्मा दर्द छुपा है। इस दर्द में आप अकेले है। आपने पत्रकारिता का मूल धर्म कितना निभाया। वायर कितना दोषी है, हम नहीं जानते लेकिन कुछ सच्चाई इसके माध्य्म से आ तो रही है।
Bhagwan Prasad Ghildiyal यशवंत सिंह सही लिख रहे है। चाटुकार, दलाल, भ्रष्ट रातों रात फर्श से अर्श पर होते हैं और दो ..तीन दशक से यह चलन हर क्षेत्र में बढ़ा है । कर्तव्य, मर्यादा और चरित्र तो केवल कहने, सुनने भर को रह गया है।
Avinash Pandey दी वायर की रिपोर्टिंग ने राजनैतिक भूचाल ला दिया है। सबसे अच्छा यह हुआ कि जय शाह ने 100 करोड़ रुपयों का मानहानि का मुकदमा कर दिया है। यह भारत की जनता के लिए सुखद है। इसके पहले भी एक और राजनैतिक मानहानि का मुकदमा जनता देख रही है। श्री केजरीवाल द्वारा दिल्ली क्रिकेट एशेसियेशन में श्री अरुण जेटली पर भ्रष्टाचार करने सम्बन्धी सार्वजनिक आरोप सोशल मीडिया पर लगाये गये थे।यह मुकदमा बहुत रोचक स्थिति में पहुंच गया है। आजतक श्री केजरीवाल भ्रष्टाचार सम्बन्धी एक भी साक्ष्य अदालत में जमा नहीं कर पायें हैं। श्री केजरीवाल के बडे वकील श्री राम जेठमलानी भी भ्रष्टाचार सिद्ध करने के स्थान पर कुछ और ही बहस कर रहे हैं। इसके पहले भी तहलका के तरुण तेजपाल द्वारा गोवा में किये गये यौन शोषण प्रकरण पर श्री कपिल सिब्बल तरुण की ओर से बयान-बाजी कर चुके हैं। गुजरात चुनाव के पूर्व दी वायर वेव पोर्टल की ओर से शानदार खलबली पैदा की गयी।इसी के साथ वेव पोर्टल के प्रमोटर और उनका भविष्य तय हो जायेगा।
Aflatoon Afloo वायर का पृष्ठपोषक कांग्रेस नही है। कुछ उद्योगपति हैं। स्तरीय पत्रकारिता अनुकरणीय है। सीखने की उम्र सीमा नहीं होती। भड़ास अन्याय के खिलाफ हो, बाकी सुलगाने से क्या होगा!
Harsh Vardhan Tripathi स्तरीय नहीं एजेंडा पत्रकारिता कहिए।
Surendra Grover सरोकारी एजेंडा भी कुछ होता है त्रिपाठी भाई.. यदि कोई मीडिया हाउस सरोकारी पत्रकारिता करता है तो उसे हर उस सक्षम से फंडिंग हो जाती है जो सही तथ्यों को गम्भीरता से लेता है.. विरोधी राजनैतिक दल भी इसमें शामिल होते हैं और अपने अपने हिसाब से उन तथ्यों का इस्तेमाल भी करते हैं..
Aflatoon Afloo रजत शर्मा और हर्षवर्धन में कुछ समान
Harsh Vardhan Tripathi बहुत कुछ समान हो सकता है Aflatoon Afloo । लेकिन, कब तक यह चलाइएगा कि पत्रकार, लेखक होने के लिए तय खाँचे में फ़िट होना जरूरी
Aflatoon Afloo बिना खांचे वाले आप होना चाहते हैं?
Harsh Vardhan Tripathi बिना खाँचे का तो कोई नहीं होता Aflatoon Afloo । लेकिन, मुझे यह लगता है कि हर खाँचे से पत्रकार निकल सकते हैं। वामपन्थी होना पत्रकार, लेखक, सरोकारी होने की असली योग्यता भला कैसे हो सकती है।
Surendra Grover सरोकारी होने पर लोग खुद वामपंथी का तमगा क्यों थमाने लगते हैं.?
Harsh Vardhan Tripathi भाई Surendra Grover जी, वामपन्थियों ने लम्बे समय तक कांग्रेस पोषित व्यवस्था में यह साबित किया कि सिर्फ वामपन्थी ही सरोकारी हो सकता है। यह कितना बड़ा भ्रमजाल है, वामपन्थियों की ताज़ा गति से आसानी से समझा जा सकता है। लेकिन, यही वजह रहती होगी।
Surendra Grover निर्लिप्तता भी बड़ी चीज है, खुद Yashwant Singh गवाह है.. हमारे अज़ीज़ नचिकेता भाई मेरी इस बात पर मुझे दलाल का तमगा थमा बैठे थे और उसके परिणामस्वरूप जो हुआ उससे हमारे अभिन्न रिश्ते ही तोड़ बैठे सम्मानीय.. ब्लॉक किया सो अलग..
Akhilesh Pratap Singh संघी सरोकार वाले भाई साहब पेट्रोल डीजल के दाम बढ़ने पर चेक गणराज्य में भी दाम ज्यादा होने की दलील दे चुके हैं…..इनकी बातों को दिल पर न लें…
Harsh Vardhan Tripathi दिल ठीक रहे, कहाँ की ईंट उठाए घूम रहे हो Akhilesh Pratap Singh भाई
Devpriya Awasthi आप कमोबेश सच लिख रहे हैं. लेकिन फंडिग के फंडे के बारे में आपके नजरिए से सहमत नहीं हूं. द वायर ने कुछ तथ्य ही तो उजागर किए हैं . भक्त बेवकूफी भरी प्रतिक्रिया नहीं करते तो द वायर द्वारा उजागर किए गए तथ्यों पर किसी का ध्यान भी नहीं जाता. और जहां तक फंडिंग का मामला है, उसकी जड़ें कहां कहां तलाशोगे? हरेक फंडिंग में कुछ न कुछ स्वार्थ छिपे ही होंगे. आप तो यह देखो कि शांत तालाब में एक छोटे से पत्थर ने कितनी बड़ी हलचल पैदा कर दी है.
Pankaj Chaturvedi आप सटीक बात कर रहे हैं. इसमें भाजपा के कुछ लोग शामिल हैं जिन्होंने इसे हवा दी, आनंदी बेन गुट
Surendra Grover भाई Yashwant Singh जी, Afloo दुरुस्त ही फरमा रहे हैं.. वैसे निर्लिप्त भाव से की गई पत्रकारिता ही असल होती है.. बाकी तो जो है,, वो है ही बल्कि सिरमौर बने बैठे हैं.. सबकुछ बिकता है.. धंधा जो बन गया..
Sandeep Verma जब आप मान ही रहे है कि भाजपा ने रणनीतिक गलती कर दी है तो बाकी पोस्ट की बाते फालतू हो जाती है . और जो हो रहा है वह सोशल मीडिया का दबाव है . भाजपा अगर गलतियाँ कर रही है तो उसकी वजह वह सोशल मिडिया से प्रभावित हो रही है
Manoj Dublish I don’t think that this issue will conclude any result because fast moving media channels will bring a solution of compromise very soon .
Sandip Naik सब सही पर जिस भड़ास पर किसी का साया पड़ा अपुन पढ़ना ही बंद नहीं करेगा एक एंटी भड़ास खोल देगा। यार भाई जनता से जुड़े हो काहे इन अंबानियों की बाट जोह रहे हो
Dev Nath जबर्दश्त। अनुभव इसे कहते हैं, लेखन इसे कहते हैं, समालोचना इसे कहते है, पत्रकारिता इसे कहते हैं, विश्लेषण इसे कहते हैं।शब्द शब्द जबरदस्त
Sanjay Bengani कोई आपके सम्मान से खिलवाड़ करे लेकिन चूँकि वे पत्रकार है चाहे बीके हुए ही क्यों न हो आपको अदालत जाने का अधिकार नहीं है.
Roy Tapan Bharati यशवंत जी, एक दशक हो गया आप और आप की पत्रकारिरता देखते ,आपकी चिंता जायज है। पर आपका उदासीन हो जाना खलता है। हम जैसे शुभचिंतक अपने बच्चों के बल पर भड़ास को कुछ आर्थिक सहयोग करना चाहें तो कैसे करें?
Kamta Prasad झाल बजाना शुरू कर दीजए, जहाँ से नर्क में आए थे। बदलाव की शुरुआत उसी से और वहीँ से होगी। आपने अपने वैचारिक आग्रहों को छोड़कर मानवतावाद का दामन पकड़ा, कहीं से भी ठीक नहीं था।
Manoj Kumar Mishra अमित शाह के पूरे भारत मे भाजपा के विस्तार के आक्रमक नीति से ऐसे फ़र्ज़ी सर्जी हमले होने ही थे तब जब कि सभी विपक्षियों पार्टियों विशेषकर लेफ्ट और कांग्रेस के अस्तित्व पर ही संकट मंडराने लगे। 2019 आते आते ऐसे ही आरोप और गढ़े जाएंगे ।करोड़ों रुपये की कीमत वाले प्रशांत किशोर के फेल होने के बाद कांग्रेस डोनॉल्ड ट्रम्प की चुनावी रणनीति तैयार करने वाली एजेंसी को करोड़ों डॉलर के अनुबंध के साथ हायर कर रही है । जो उच्च तकनीक से लैस है और जिसके पास हज़ारों आईटी एक्सपर्ट और हैकर्स की सेवा उपलब्ध है जो भारतीय मतदाताओं के गूगल सर्च, ईमेल, सोशल मीडिया और उनके संपर्कों का इतिहास भूगोल खंगाल डालेगी और उनकी रुचियों और उसी के अनुसार वो कांग्रेस की चुनावी रणनीति तय करेगी, राहुल बाबा के भाषणों के जुमले गढ़े जाएंगे ।अगर भारतीयों की प्राइवेसी और देश और देश की साइबर सुरक्षा इतनी गौण है तो कम से कम ये तो विचारणीय है कांग्रेस के पास इतना भारीभरकम फण्ड कहां से आ रहा है ?
Brijesh Singh कांग्रेस के पास व उसके नेताओं के पास अभी भी इतना पैसा है कि वह भाजपा तो क्या भारत की सभी पार्टियों को खरीद सकती हैं । अभी सत्ता ही तो नहीं है उनके पास। अभी तक कमाये धन को व्यवस्थित कर रहे हैं ।
Rehan Ashraf Warsi भाई हम जैसे नादान को लगता है कि अपने जो दुख झेलें हैं वह मीडिया के अंदर के सच , संघर्ष और गंदगी के ख़िलाफ़ मोर्चा खोल कर लिए हैं। वरना आज आप भी मज़े कर रहे होते। हाँ आपकी इज़्ज़त बहुत है मगर ज़्यादातर दिल मे ही करते हैं । बल
Jai Prakash Sharma निष्पक्ष, निडर और सच्चाई की बात करने वाले अधिकतम भाई Lisening ही करते नजर आते हैं, दलाली कहना थोड़ा ज्यादा हो जाता है
Vinay Oswal कुछ ऐसे ही कारणों से मैं भी बहुत मानसिक उलझन में हूँ। आप साझा करके हल्का हो लिए मैं नही हो पा रहा हूँ
Arvind Pathik यशवंत जी एक दशक हो गया आप और आप की पत्रकारिरता देखते… आप के निष्कर्ष उचित हैं… पर आपका उदासीन हो जाना खलता है.
Trivedi Vishal Confuse kyo hain ap? Hey arjun.. shastra uthao aur waar karo.
Kuldeep Singh Gyani अपने-अपने झंडे तले “सबकी” मौज बहार, मारी गई “पत्रकारिता” अब तू अपनी राह सवार… भाई साहब लिखा तो बहुत अच्छा है लेकिन बात बात पर सन्यास लेने की बात उचित नहीं…हम तालाब के किनारे बैठ कर भी क्या कर लेंगे उछलेगा तो कीचड़ ही तो क्यों न तालाब में ही खड़े रहा जाए जहां “मगर” भी हैं और “कमल” भी… हे ज्येष्ठ अडिग रहें और अपने हाथों को निरंतर मजबूत करने के लिए “फौज” तैयार करें…
Nirupma Pandey बात तो सही है अब आम जनता में न्यूज के प्रति उदासीन भाव आ गया है परदे के पीछे का सच आम जनता भी जानने लगी है
Harshit Harsh Shukla जी Yashwant singh भाई, पत्रकारिता के वेतन से घर नहीं चलता तो ईमान कहाँ से चलेगा… शायद यही वजह है की पत्रकार पार्टी के हो लेते हैं..
Manoj Upadhyay भाई साहब.. सच तो यही है कि आप जैसे लोग और आपकी जैसी पत्रकारिता ही सही और सार्वकालिक है. यह भी सच है कि यदि आप की पत्रकारिता और पत्रकार भावना संपन्न है तो आर्थिक मोर्चे पर तो सड़क छाप होना ही है. क्योंकि आपकी पत्रकारिता और आपकी पत्रकार भावना आज के तथाकथित लोकतांत्रिक दौर में पनपने वाले कारपोरेट नेताओं के लिए आप किसी काम के नहीं..
Yogesh Garg भड़ास का पिछले 5 साल से नियमित पाठक हूँ । पिछले कुछ समय से लगता है खबरों की आंच कम हो गई है । निष्पक्ष रहने के चक्कर में सत्ता पक्ष के लोकतंत्र विरोधी कुकर्मो का सख्त विरोध नही कर पा रहे आप । ऐसे बहुत से मुद्दे थे जिन पर लगा था कि भैया यशवंत की कलम चलेगी । पर वो मौन रह गए ।
Harsh Vardhan Tripathi असली बात बस यही है हमको १० साल में एक भी निष्पक्ष फ़ंडर न मिला। बाक़ी सब मिथ्या है।
Aflatoon Afloo और वायर को मिले।
Harsh Vardhan Tripathi भाई Aflatoon Afloo सही बात तो यही है ना कि वायर मोदी/संघ/बीजेपी के ख़िलाफ़ एजेंडे पर लगी वेबसाइट है। ऐसे ही कई होंगी, जो मोदी/संघ/बीजेपी के साथ लगी होंगी। जो जैसा है, उसको वही बताइए। मोदी के निरन्तर ख़िलाफ़ है, तो पत्रकार है। मोदी के साथ मुद्दों पर भी है, तो संघी है, इससे बाहर को आना ही पड़ेगा। और तो पब्लिक है, ये सब जानती है।
Aflatoon Afloo बिल्कुल, पब्लिक सब जानती है
Akhilesh Pratap Singh संघ के साथ पत्रकार नहीं, नारद होते हैं
Satyendra PS बात तो ठीक ही कह रहे हैं।
Vishnu Rajgadia अच्छा विश्लेषण है
Jayram Shukla वाजिब भडास।
सौरभ मिश्रा सूर्यांश कोई बचा क्या ? शायद कोई भी नहीं ! अच्छा समालोचनात्मक विश्लेषण
Garima Singh बेहतरीन ….कमाल ….खरा सच
Arvind Mishra बघेलखण्ड में कहा जाता है फुलई पनही से मारना वही किया है। आपने किसी को नहीं छोड़ा। दौड़ा दौड़ा कर
Sushil Rana सोलह आने सच – आज के दौर में मीडिया में नायक पैदा नहीं होते, गढ़े जाते हैं।
आदित्य वशिष्ठ निजी भड़ास भी भड़ास के माध्यम से निकलने लगे तो भड़ास भी भड़ास न रहेगा भाई
SK Mukherjee आज के दौर में चीजें बहुत काम्प्लेक्स हैं, मल्टी लेयर लिए हुए हैं।
Jitesh Singh मीडिया सच नहीं दिखाता, सच छानना पड़ता है। बड़ा मुश्किल हो गया है मीडिया का सच जानना।
Someshwar Singh Good write-up and very correct-analysis.
Madhav Tripathi आपकी बात तो सही है लेकिन जिसके अमित शाहक़ के लड़के को फ़साने की फालतू कोशिश की गई है कुछ वास्तविक मुद्दा होना चाहिए था।
Sanjay Mertiya मुकदमे की जरुरत नहीं थी, वायर की स्टोरी में दम नहीं था, चौबीस घण्टे भी मुश्किल से चलती।
अतुल कुमार श्रीवास्तव अगर वो मुकदमा न करता तो जांच नहीं होती। और सिर्फ इल्जाम लगते। सच और झूठ सामने तो आये।
Kohinoor Chandravancee Right sir I beleif in your thoughts
Baladutt Dhyani तुम्हारी तो दुकान बंद चल रही है इसीलिए परेशान दिखते हो… दलाली की और कमीशन का काम बंद पड़ा है…
Yashwant Singh आपने सच में मेरे दिल के दर्द को समझ लिया ध्यानी भाई.. इसीलिए आप ध्यानी हैं.. वैसे, अपन की दुकान चली कब थी.. जीने खाने भर की कभी कमी नहीं हुई… कोई काम रुका नहीं.. आदमी को और क्या चाहिए… खैर, पूर्वाग्रह से ग्रस्त लोग ये सब न समझेंगे.. वे तो वही बोलेंगे जो बोलना है… सो, बोलते रहियो 🙂
पंकज कुमार झा सुंदर. शब्दशः सहमत.
Rai Sanjay सहमत हूँ आप से
Vimal Verma बहुत बढ़िया।
राजीव राय बहुत सही
Anurag Dwary Sehmat
A P Bharati Ashant yashwant jindabad ! salam !
Arvind Kumar Singh बिल्कुल ठीक बात है
Aradhya Mishra Behatreen
Ashutosh Dwivedi यही सच है
Arun Srivastava सही कहा।
Lal Singh वीर तुम बढ़े चलो।
Nurul Islam सानदार, जबरजस्त, जिंदाबाद
Shadab Rizvi बात 100 फीसदी सही
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