Padampati Sharma : ऐसे ही अगर तुम्हे जाना था अक्षय… तो तुम मिले ही क्यों थे? जी हां, मैं बात कर रहा हूं एक जाबांज, दिलेर पत्रकार की जिसकी हिम्मत के किस्से उसके साथी ही नहीं उसके सीनियर्स भी सुनाते नहीं थकते. अपनी मां का लाडला और एक बहन का प्यारा भाई आजतक का विशेष संवाददाता वही अक्षय सिंह कर्तव्य निभाते निभाते शहीद हो गया या यूं कहूं कि व्यापम घोटाले का वह एक और शिकार बन गया.
शाम आठ बजने को थे… मैं वाशरूम से निकला ही था कि विमला ने बताया कि मध्य प्रदेश में एक पत्रकार की रहस्यमय मौत हो गयी. व्यापम घोटाले की एक शिकार हो चुकी मेडिकल की छात्रा के परिवार का वह इंटरव्यू कर रहा था कि मुंह से झाग फेकने लगा और अस्पताल में उसकी मौत हो गयी. यह खबर अपने आप में ही झटका था पर डिनर करते समय पहला कौर मुंह में डाला ही था कि सामने देखा कि अरे अरे ये तो वही मासूम चेहरे और दिल फरेब मुस्कान का स्वामी और सामने वाले को झट से अपना बना लेने वाला अक्षय है.
पिछली 26 जून की ही तो बात थी. अनुज सहयोगी दीपक शर्मा ने जब मेरा परिचय प्रेस क्लब में अक्षय से कराया तब मैं नहीं जानता था कि यह पहली मुलाकात अंतिम बन कर रह जाएगी. हम घंटों बतियाते रहे. साथ में दोसा खाया और उसके आग्रह पर ही मैंने लेमन टी भी पी. बाहर बरसात हो रही थी पुराना यार हरपाल बेदी भी टेबल पर साथ आ गया. निकले तो अक्षय ने कहा कि सर आपको मैं घर छोड़ना चाहता हूं. आप मीटिंग निबटा लीजिए. शाम को मैं आपको छोड़ते हुए नोएडा आफिस चला जाऊंगा.
साथ जुड़ गए थे वरिष्ठ पत्रकार भाई संजय पाठक. देरी तक बातचीत होती रही. मैं और दीपक साथ निकले. किसी एसाइनमेंट पर जाने के पहलेअक्षय से तय हो गया था कि चाणक्य सिनेमा के सामने मिलते हैं. दुर्योग से अक्षय जाम में फंस गया और दीपक को मुझे छोड़ना पड़ा रेसकोर्स मैट्रो तक. दीपक बता रहा था, ‘सर ऐसे निडर मैने कम ही देखे हैं. किसी भी थाने में बेधड़क स्टिंग करता था और आज तक कोई उसे देख नहीं पाया. कमाल का लड़का है.’
यार दीपक, तुम्हारा योग्य शिष्य ऐसे कैसे चला गया! सत्तर और अस्सी का दशक याद आ रहा है जब कई सीबीआई जांचों में रहस्यमय दुर्घटनाओं में जाने जाती रही थीं. क्या हो रहा है यह? कौन साजिश कर रहा है? किसने इस तरह का अमानवीय तरीका अपनाया है? क्या इसमें प्रदेश सरकार से जुड़ा शख्स है या है कोई या कई माफियों के गिरोह. कौन सच्चाई दबाना चाहता है? कौन इन मौतों के रहस्य पर से पर्दा उठाएगा? अक्षय की बलि के मायने मीडिया पर भी नजर? क्या है वास्तविकता? सीबीआई जांच क्या अब भी जरूरी नहीं? भाई अक्षय मैं समझ सकता हूं तुम गये ही नहीं मां के बुढापे की लाठी भी छिन गयी. बहन के आंसूं थम नहीं रहे हैं. हे परमात्मा! ऐसा दुख तो किसी दुश्मन को भी मत देना ….आमीन!
कई अखबारों और न्यूज चैनलों में संपादक रह चुके वरिष्ठ खेल पत्रकार पदमपति शर्मा के फेसबुक वॉल से.
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RIP Akshay Singh… You are a war hero…
ak27
July 5, 2015 at 10:28 am
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