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सुख-दुख

ईटीवी के सीनियर एडिटर बृजेश मिश्र के बड़े भाई थे अमरेश मिश्रा

हिन्दुस्तान अखबार में प्रतापगढ जिले के ब्यूरो चीफ अमरेश मिश्रा की सड़क हादसे में मौत के बाद उनके जानने वाले स्तब्ध हैं. प्रतापगढ के लालगंज इलाके के अजहरा गावं में सड़क हादसा कोहरे के कारण हुआ. अमरेश कार से कौशाम्बी जिले स्थित अपने घर जा रहे थे. पता चला है कि अमरेश मिश्रा ईटीवी के सीनियर एडिटर और यूपी के स्टेट हेड बृजेश मिश्र के बड़े भाई थे. अमरेश उच्चकोटि के पत्रकार थे. बेहद खुशमिजाज शख्स थे. उनके अचानक चले जाने से पत्रकार जगत स्तब्ध है.

हिन्दुस्तान अखबार में प्रतापगढ जिले के ब्यूरो चीफ अमरेश मिश्रा की सड़क हादसे में मौत के बाद उनके जानने वाले स्तब्ध हैं. प्रतापगढ के लालगंज इलाके के अजहरा गावं में सड़क हादसा कोहरे के कारण हुआ. अमरेश कार से कौशाम्बी जिले स्थित अपने घर जा रहे थे. पता चला है कि अमरेश मिश्रा ईटीवी के सीनियर एडिटर और यूपी के स्टेट हेड बृजेश मिश्र के बड़े भाई थे. अमरेश उच्चकोटि के पत्रकार थे. बेहद खुशमिजाज शख्स थे. उनके अचानक चले जाने से पत्रकार जगत स्तब्ध है.

इलाहाबाद में दैनिक जागरण, अमर उजाला, हिन्दुस्तान जैसे अखबारों में कार्य कर चुके वरिष्ठ पत्रकार शिवाशंकर पांडेय ने अमरेश की याद में भड़ास को एक राइटअप भेजा है, जो इस प्रकार है….

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बहुत याद आओगे भाई अमरेश!

शिवाशंकर पांडेय

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इलाहाबाद। मौत भी कितनी क्रूर होती है। हंसमुख स्वभाव वाले पत्रकार साथी अमरेश को मौत ने 22 दिसंबर की रात असमय ही छीन लिया। मस्तीभरा जीवन जीने वाले अमरेश को तो अभी और जीना था। उम्र ही कितनी थी? वाह रे ऊपर वाले! सुना है, हर गलत काम की सजा लोगों को तू देता है पर खुद गलत काम कर डालता है तो तुझे कौन सजा देगा? हम सबके प्रिय रहे अमरेश को ये कौन सी सजा दे डाली। 22 दिसंबर की ठंड व कोहरे वाली रात और सूनसान सड़क पर किसी अज्ञात वाहन की टक्कर। थोड़ी देर में काम तमाम। कौशांबी के युवा पत्रकार अमरेश मिश्र का असामयिक निधन। दिल को झकझोर देने वाली एक पत्रकार साथी की सूचना थी। सहसा विश्वास नहीं हुआ, पर सच्चाई को कितनी देर नकारा जा सकता है।

हां, ये सौ फीसदी सच है कि हम सबका प्यारा साथी अमरेश अब हमेशा के लिए साथ छोड़ गया। कितनी बार मना किया था कि लंबी दूरी है, प्रतापगढ़ से कौशांबी की। रिस्क मत लिया करो यार, देर रात अकेले बाइक से घर ना जाया करो। हंसते हुए अमरेश का हर बार जवाब होता-भइया, इतना गलत कार्य नहीं किया है कि ऊपर वाला इतनी बड़ी सजा दे देगा। हां, ये सच है कि अमरेश ने शिद्दत और जीवटभरी ईमानदारी के साथ जिस पत्रकारीय जीवन को जिया वह अपने आप में बेमिसाल है। चाहे वो राष्ट्रीय सहारा में सिराथू से की जाने वाली रिपोर्टिंग रही हो या जिला बनने के बाद कौशांबी से हनकभरी पत्रकारिता… अमरेश ने समय समय पर अपने होने का अहसास और पत्रकार मित्रमंडली को खुशी से इतराने का मौका दिया। हर बीट पर समान अधिकार रखने वाले वो अमरेश मिश्र ही थे, प्रयाग के महाकुंभ मेला में आध्यात्मिक रिपोर्टिंग करने के दौरान उन्होंने कई स्पेशल स्टोरी की और उन स्टोरी की कटिंग महाकुंभ मेला प्रदर्शनी में लगीं।

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और, तब हम जैसे पत्रकार साथी इतराते हुए कहते, ये देखो, देख लो…ये हमारे अमरेश की उपलब्धियां। जब कभी बात होती, अमरेश बड़ी विनम्रता से कहते-भइया, बस ऐसे ही देखते जाइए, अभी बहुत कुछ करना बाकी है। दैनिक जागरण में बतौर कौशांबी ब्यूरो प्रमुख दलित महिला को निर्वस्त्र कर सड़क पर घसीटे जाने की वारदात पर साहसिक रिपोर्टिंग कर अमरेश को अपनों से ही जूझना पड़ा। बेहतर कार्य करने के लिए जिस संस्थान को शाबाशी देनी चाहिए थी वहीं दैनिक जागरण प्रबंधन ने हाथ खड़े कर लिए थे। कौशांबी में बेहतर कानून व्यवस्था होने के एक कथित पैरोकार के दबाव में आकर अमरेश को दंडित करने के और एक आईपीएस को खुश करने की कवायद शुरू हो गई थी। उस समय मैं डेस्क इंचार्ज हुआ करता था। मेरे विरोध करने को प्रबंधन ने अनुशासनहीनता माना। अमरेश पर खंडन के लिए प्रबंधन ने दबाव बनाना शुरू किया था। स्वाभिमानी अमरेश ने खंडन के बजाए अपनी खबर की सच्चाई पर अड़े हुए थे। दैनिक जागरण की ‘इन हाउस टुच्ची राजनीति’ पर जोरदार वार किया। अपना इस्तीफा देते हुए ये कहा था-‘पत्रकारिता मेरे लिए मिशन है। इसमें कैसा अपना-पराया। पत्रकारीय मिशन को कोई रोक नहीं सकता।’

हिन्दुस्तान में बतौर प्रतापगढ़ ब्यूरोचीफ रहते हुए वो अमरेश जैसे ही पत्रकार थे जिन्होने असहाय साहित्यकार जमुईखां को शासन प्रशासन से इमदाद दिलाई। ऐसे तमाम उदाहरण हैं। डिप्टी एसपी जियाउल हक, ग्रामप्रधान समेत कई लोगों की हत्या वाले लोमहर्षक बलीपुरकांड के समय महीनेभर से ज्यादा समय तक बेहतरीन रिपोर्टिंग, फॉलोअप और साइड स्टोरी कर अमरेश ने जमकर ख्याति बटोरी। मेहनत और लगन का ही नतीजा था कि हिन्दुस्तान दिल्ली मुख्यालय से बेहतरीन रिपोर्टिंग का अवार्ड मिला। मेरे लिए एक बार फिर उत्साहवर्धन की बारी थी। बधाई देने पर अमरेश ने अपनी चिरपरिचित खिलखिलाहट के साथ मोबाइल पर जवाब दिया था-भइया, अभी काफी कुछ किया जाना बाकी है। ऊर्जावान, युवा पत्रकार की तमन्ना अधूरे में ही छूट गई। हाय विधाता! तू भी कभी कभी कितना कितना गड़बड़ कर देता है। अमरेश मौत तो कायर की होती है। बहादुर कभी मरा नहीं करते। वे लोगों के दिल-दिमाग में हमेशा जिंदा रहते हैं। हम सब साथियों को बहुत याद आओगे अमरेश!

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मूल खबर…

सड़क हादसे में हिंदुस्‍तान के पत्रकार अमरेश मिश्र की मौत

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0 Comments

  1. sudhanshu puri

    December 29, 2014 at 12:08 pm

    behad dukh ki bat hai …ieswar unki aatma ko shanti pradan kare ……………………………

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