Sumant Bhattacharya : अभी थोड़ी देर पहले ही “इंडिया इस्लामिक कल्चरल सेंटर” में “अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के ओल्ड ब्यॉज एसोसिएशन” के हुए जलसे और दावत से लौटा हूं। जलसे के “मेहमान ए खुशुसियत” थे यूपी के ताकतवर मंत्री आज़म खान। जलसे की तफ्सील रिपोर्ट और उस पर बने खुद के नजरिये पर कल विस्तार से बात करूंगा…पर छोटा सा जिक्र जरूर करना चाहूंगा। जलसे में जिक्र सर सैयद अहमद के साथ जुड़ी उस घटना का हुआ, जिसमें मोहम्मडन ओरिएंटल स्कूल के लिए चंदा मांगने पहुंचे थे तो किसी ने सर सैयद की हथेलियों में थूक दिया था, सर सैयद ने उस थूक को अलीगढ़ की ज़मीन पर रगड़ दिया, ताकि थूक भी जाया ना जाए।
इस घटना को बिना संदर्भ के जिक्र करते हुए आज़म साहब ने कहा, “किसी ने मुझसे कहा कि जाने दीजिए, सर सैयद की हथेलियों में भी थूका गया था, तो मैंने कहा, सुनो मैं सर सैयद नहीं हूं, मेरी जिस्मानी और सियासी, दोनों ही हथेलियां बहुत मजबूत हैं, एक हाथ मारुंगा तो जबड़ा बाहर कर दूंगा।” दंग तो मैं तब रह गया, जब अलीगढ़ के पूर्व छात्रों ने इस पर जोरदार तालियों से आज़म साहब का इस्तकबाल किया। क्या वाकई में इस मिज़ाज के साथ आज़म साहब और आज के एएमयू के छात्र, पूर्व छात्र खुद को सर सैयद की विरासत दावेदार कह सकते हैं..?.क्या सर सैयद की विनम्रता को सत्ता का एक छोटा सा कारकून अपनी हेठी और बाहुबल से इस तरह से खारिज कर सकता है? सवाल का जवाब मुझे नहीं, आज़म साहब को देना है,एएमयू के पूर्व और मौजूदा छात्रों को देना है…माफी चाहूंगा एएमयू के दोस्तों से….पर सच ना कहूंगा तो बाद में तुम्ही कहोगे कि दोस्ती फर्ज ना निभाया….
वरिष्ठ पत्रकार सुमंत भट्टाचार्या के फेसबुक वॉल से.