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अनराग द्वारी ने बीबीसी ज्वाइन करने से ठीक पहले एनडीटीवी के साथियों के नाम ये अदभुत पत्र लिखा

Anurag Dwary : नवसंवत्सर — एनडीटीवी परिवार ने 10 साल मुझे मेरे गुण-दोष के साथ पाला-पोसा, अब नये सफर की शुरुआत होगी बीबीसी के साथ … साथियों के लिये मेरे आख़िरी मेल का हिस्सा जो संस्थान में शायद इसे ना पढ़ पाएं हों … जो दोस्त फेसबुक से साथ जुड़े हैं उनकी शुभकामनाओं के लिये भी …

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Anurag Dwary : नवसंवत्सर — एनडीटीवी परिवार ने 10 साल मुझे मेरे गुण-दोष के साथ पाला-पोसा, अब नये सफर की शुरुआत होगी बीबीसी के साथ … साथियों के लिये मेरे आख़िरी मेल का हिस्सा जो संस्थान में शायद इसे ना पढ़ पाएं हों … जो दोस्त फेसबुक से साथ जुड़े हैं उनकी शुभकामनाओं के लिये भी …

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1 अगस्त मेरे लिये सिर्फ एक तारीख़ नहीं … मेरे सफर के एक सफहे का बंद होकर, दूसरे सफहे की शुरूआत है … हम सब जानते हैं, इस वक्त इसकी ज़रूरत है हम जैसे लोगों को जिनके लिये कलम एक ज़रिया है … जिसे हमने चुना लेकिन कई बार किस्सागोई के बीच कुछ ऐसे किऱदार होते हैं जिनके चेहरे देखकर आप फैसला लेते हैं कि थोड़ा रूकना होगा, मुड़ना होगा … ताकी चूल्हे की आंच ठंडी ना हो … बहरहाल … पाकिस्तान के हबीब जालिब मेरे सबसे पसंदीदा शायर हैं ( वैसे उन्हें पाकिस्तानी ना कहूं तो भी चलेगा, क्योंकि वो हम जैसे कइयों के दिल में धड़कते हैं) … बस यूं ही उनका ज़िक्र याद आ गया… मुशीर में वो लिखते हैं …

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मैंने उससे ये कहा

ये जो दस करोड़ हैं, जेहल का निचोड़ हैं, इनकी फ़िक्र सो गई हर उम्मीद की किस, ज़ुल्मतों में खो गई
ये खबर दुरुस्त है, इनकी मौत हो गई, बे शऊर लोग हैं, ज़िन्दगी का रोग हैं और तेरे पास है, इनके दर्द की दवा ….

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जिनको था ज़बां पे नाज़, चुप हैं वो ज़बां दराज़, चैन है समाज में
वे मिसाल फ़र्क है, कल में और आज में,अपने खर्च पर हैं क़ैद, लोग तेरे राज में

मैंने उससे ये कहा

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हर वज़ीर हर सफ़ीर, बेनज़ीर है मुशीर, वाह क्या जवाब है, तेरे जेहन की क़सम
खूब इंतेख़ाब है,जागती है अफसरी, क़ौम महवे खाब है, ये तेरा वज़ीर खाँ दे रहा है जो बयाँ … पढ़ के इनको हर कोई, कह रहा है मरहबा

मैंने उससे ये कहा….
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हमारी ताक़त उन्हीं वज़ीरों की मुखालिफत है, लोग शायद इसे विचारधारा से जोड़ें लेकिन मैं जानता हूं ये सच नहीं … ये इसलिये लिखा क्योंकि अपने चैनल की यही खूबी मुझे इस परिवार में खींच लाई … कई बार कुछ वजहों से जाने की सोची लेकिन जेब पर सोच भारी पड़ी … लेकिन जैसा पहले लिखा … चूल्हे की आंच थोड़ा रूकने को मजबूर कर देती है… बहरहाल मुमकिन नहीं था कहीं और सोचता कि वंदेमातरम के संगीतमय सफर पर आधे घंटे का कार्यक्रम कर लूं, गंजेपन पर कुछ सोच लूं ( यक़ीन मानिये जब 2007 में आया था तो मैं गंजा नहीं था, भेंडी बाज़ार घराने पर कुछ करने की इजाज़त मिल जाए।

मनीष सर ने डेस्क से धक्का मारना शुरू कर दिया … बोला था डेस्क पर लेकर आया हूं … लेकिन वो टून इन वन बनाने लगे … जिस आदमी की ख़बरों को लेकर ऊर्जा सुबह 4 से रात 4 तक रहे उनसे क्या मज़ाल की मैं उलझ जाऊं … लिहाज़ा करना पड़ा … कुछ परिस्थिति कुछ हौसला-अफज़ाई एक बार पूरी तरह से रिपोर्टिंग में ले आई … संजय सर से डर लगता था लेकिन मनीष जी के साथ अपना स्पेस था… रिपोर्टर की नब्ज़ समझने में वो बेमिसाल हैं …

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कमाल के कैमरा साथी मिले — मुंबई में सुहास, आनंद सर,प्रवीण,राजेन्द्र,,दिल्ली में प्रेम सिंह, भोपाल में रिज़वान भाई ने सिखाया कैसे मोबाइल से अच्छे शॉट्स बना सकते हैं … 3 महीने में रिज़वान से रिश्ते पारिवारिक हो गये … सर, यक़ीन मानें हमारे कैमरा साथियों से अच्छे शायद ही कहीं मिलें …टीवी रिपोर्टर अपने कैमरा सहयोगी के बग़ैर कुछ नहीं … कैमरा टीम ने शब्दश: एक नयी नज़र दी…

एडिटर्स में चाहे फैय्याज़ सर हों, अचिंत्य, राव सर, राजेन्द्र, कमाल था … हमारे प्रोड्यूसर मल्लिका, आशीष, गणेश, स्वरोलीपी, संकल्प, विपुल, आलाप, श्वेता, सम्मी, योगेश, कामाक्षी सबने मुझे बहुत सहा … ख़ासकर गणेशभाई … जो कभी नाराज़ नहीं होता …संयम के साथ सहूलियत दी काम करने की … हमारे प्रोड्यूसर और एडिटर्स ने बेहतरीन एडिट से हर कहानी को कहा …

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मुंबई के सारे साथी … अभिषेक सर जो मेरे मुकाम के गवाह-सहयोगी रहे … कई बार गुस्से-झगड़े-प्यार के अपने हिस्सों के साथ, अजेय (गज़ब की ऊर्जा और कॉर्डिनेशन मित्र … तुम अद्भुत हो), उल्लास सर (सर आप हमेशा बड़े भाई सरीखे रहे … ख़बर को लेकर आपकी आंखों की चमक गज़ब थी), सुनील जी (इनकी ऊर्जा और जज़्बा उफ … सबको प्रेरणा देती है), काथे जी (ऊफ आपकी दलीलें और ज्ञान … बहुत बढ़िया), विजय जी, सांतिया, पूजा, दीप्ति जी, धरम, शैलू, केतन, योगेश, तेजस, सौरभ (दादा तुम थोड़ा नॉनवेज कम खाया करो … और थोड़ा आराम भी करो) , प्रसाद राममूर्ति, योगेश पवार, संचिका, महक, विवेक, आनंदी, मयूरी, अनंत, संजय, रवि तिवारी (आपका वॉयस ओवर, बेमिसाल और हर दिन झोले में एक ख़बर … वाह), अवधेश, अतुल, जाधव, शिंदे सर, भरत, विनायक भाई, विशाल भोसले (भाई अपन तीनों की शाम की चर्चा मिस करता हूं, और सरजी के कमेंट्स … क्या कहने) ….मुंबई ब्यूरो का हर एक एक सहकर्मी दही-हांडी जैसा एक दूसरे से जुड़ा रहा … हमेशा!

दिल्ली इनपुट पर … मनहर जी (अब हमसे न्यूज़ लिस्ट नहीं मांग पाएंगे आप) , रजनीश सर (बहुत पुराना साथ है आपके सवाल नई जिज्ञासा पैदा करते हैं, स्टोरी निखारते हैं) , नदीम जी (ओफफ अब आप शनिवार को किसके साथ गप्पा मारेंगे) , जसबीर (आप कभी कभार गुस्सा हो जाया करो), शैलेन्द्र भाई (आप बहुत सहज हैं, कितनी बातें साझा की हम दोनों ने … दिल्ली में बग़ैर फोन बातें करेंगे), आकाश, अदिति जी (धर्म से लेकर सियासत, कितनी चर्चा हुई आपसे), पिनाकी (भाई थोड़ा हंस के स्टोरी मांग लो … डर लग जाता है)) , सृजन, गौरी (भोपाल में हर सुबह पहला फोन आपका)…

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रिपोर्टर और डेस्क में एक अघोषित द्वंद हमेशा रहता है … लेकिन यक़ीन मानें इतने सीमित संसाधनों में हमारी डेस्क कमाल की है, बेहद कमाल … मैं दोनों तरफ रहा इसलिये कह सकता हूं … अजय सर, प्रियदर्शन जी, दीपक जी, सुशील सर, भारत, मिहिर, बसंत, प्रीतीश, जया, अमित ( जिसने मुझे हर सप्ताहांत बहुत बर्दाश्त किया अपनी मुस्कान के साथ), अदिति, पार्थ सर, सीपी सर, विभा, आनंद पटेल, सत्येंद्र सर … बहुत कुछ सीखा इनसे … खट्टे-मीठे अनुभव रहे … जब झुंझलाया, नाराज़ हुआ अपने परिवार से साझा कर लिया … अजय सर को फोन कर लिया , प्रियदर्शन सर से भाषा सीख ली.. सुशील सर से सहजता साझा कर ली ….

दिल्ली से लेकर पूरे देश में हमारे साथी रिपोर्टर — हृदयेश भाई, किशलय सर, नेहाल भाई, राजीव सेना वाले, अहमदाबाद वाले भी , अखिलेश सर, हिमांशु, मुकेश, उमा, शारिक़,शरद, परिमल, रवीश – दिल्ली वाले, सौरभ, आशीष भार्गव ( भाई कमाल की रफ्तार से वेब कॉपी फाइल करता है, इस कला के हम सब कायल हैं), अजय सिंह, हरिवंश भाई, कमाल सर, शारिक़ भाई, नीता … सबका सहयोग मिला … सबका शुक्रगुज़ार हूं …

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खेल डेस्क पर संजय सर, विमल भाई, प्रदीप, महावीर, अफशां, कुणाल,सौमित, निखिल, रीका, गौरिका, यश जैसे पुराने सहयोगियों का साथ बने रहा… ओलंपिक स्पोर्ट्स में विमल भाई का शायद ही कोई सानी हो … प्रशांत सिसौदिया सर इतनी पुरानी और नई जानकारी फिल्मों पर किताब लिख दो सर, पूजा, सूर्या, सुमित, मेरा साथी इक़बाल ( भाई सेवई लेकर आना, विजय सर — मुझे लगता है जिस अथॉरिटी के साथ विजय सर फिल्मों की समीक्षा करते थे वो मिलना मुश्किल है …

बाबा, विनोद दुआ सर सबने परखा … मौक़े दिये … देर रात तक बाबा खेल चैनल देखते हैं, अपनी फुटबॉल की जानकारी गोल है इसलिये हमने खेल से भागने में भलाई समझी … सुनील सर, लगभग 15 सालों से आपके साथ हूं … एक अपनापन है जिससे रात-सवेरे … दुख-सुख में कभी भी आपको फोन लगा लेता हूं … करता रहूंगा … जो दो नज़रिया आप देते हैं उससे नज़रिया खुल जाता है … वैसे हर क्षेत्र में आपके ज्ञान से थोड़ा डर भी लगता है … इसलिये सारी गिरह खोलकर आपसे जिरह की हिम्मत मिलती है …

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रवीश सर आपने जैसे फेयरवेल दिया … वैसा कम ही लोगों को मिल पाता है…

शोर-शराबे के इस दौर में सुकून की अपनी कीमत है … लेकिन ऐसा सुकून जिसमें फिक्र है … सोच है … शुक्रिया उस सोच में मुझे स्पेस देने … एक राज़ की बात है मंदसौर में आपके नाम ने उन्मादी भीड़ से पिटने से बचा लिया..

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ऑनिन सर, बहस के लिये-ज़रूरत के लिये-समझने के लिये-सीखने के लिये आपसे कई बार वक्त लिया …हर बात का अपना विस्तार … वैचारिकता को लेकर भी .. शायद ही अपने संपादक से ऐसे बहस की गुंजाइश वो भी टेलिफोन पर मिल पाए, आपके साथ ही मुमकिन था …. सबसे अहम देश भर में हमारी स्थानीय साथी, ख़ासकर महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ … कमाल है इनमें भी … सालों से हमारे साथ जुड़े हैं … सिर्फ प्रेम की वजह से … इनकी ईमानदारी और सहजता अद्भुत है … ये इस परिवार की सबसे अहम कड़ी हैं….

हमारे वेब डेस्क के साथी आपने ख़बरों को नई उम्र दी … सालों बाद बाईलाइन मिलने लगी … मज़ा आया… कई पुराने साथी इस फेहरिस्त में शामिल है, लेकिन चैनल का हिस्सा नहीं .. दुख हुआ, गुस्सा आया … लगा-लगता है उन्हें कुछ और ज़रियों से रोका-बचाया जा सकता था … लेकिन पूंजीवादी व्यवस्था के अपने दायरे होते हैं और ये सोचना खुशफ़हमी होगी कि हम उसका हिस्सा नहीं हैं… बहरहाल … इसपर बहस फिर कभी लेकिन इसको अछूता छोड़ना मेरी फितरत के ख़िलाफ रहता..

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हम कम हैं, लेकिन सच मानें हममें दम है …. पूरा देश घूमते फर्ज़ी आंकड़ों के बावजूद … पाश की तरह … हम सबके लिये …

मैं घास हूँ
मैं आपके हर किए-धरे पर उग आऊँगा …
बम फेंक दो चाहे विश्‍वविद्यालय पर
बना दो होस्‍टल को मलबे का ढेर
सुहागा फिरा दो भले ही हमारी झोपड़ियों पर

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मेरा क्‍या करोगे
मैं तो घास हूँ हर चीज़ पर उग आऊँगा ….

इस मेल में यक़ीनन … मेरे बेहद करीबियों के नाम छूटे होंगे …
कई बार ज़ेहन, आंखें, की-बोर्ड के साथ तालमेल नहीं रख पातीं …
माफ़ी, चेहरों का हुजूम आंखों के धुंधलके में सिनेमाई रील सा आकर गुज़र जाता है…

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एनडीटीवी को अलविदा कह बीबीसी ज्वाइन करने के ठीक पहले पत्रकार अनराग द्वारी द्वारा लिखा गया उपरोक्त पत्र उनके एफबी वॉल से साभार लेकर भड़ास पर प्रकाशित किया गया है.

अब इसके आगे की कथा पढ़िए, अनुराग द्वारी के साथी अजय कुमार की कलम से…

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