Ram Janm Pathak : खबर है तो चीखेगी… खबर है तो दिखेगी। यही है उस क्षेत्रीय चैनल (राष्ट्रीय चैनल ?) का मोटो यानी आदर्श वाक्य। अच्छा है। लेकिन खबरों का यही एक आदर्श नहीं होता। असल में खबर होगी तो केवल दिखेगी ही नहीं, बल्कि चिल्लाएगी, चीखेगी मुंडेर पर चढ़ कर। सात परदों से निकल कर बाहर आ जाएगी। जितना दबाओगे, उतना भड़केगी।
किस्सा कोताह कि यह चैनल इन दिनों एक महिला एंकर को इसलिए रातोंरात जबिरया छुट्टी (जिसे की नौकरी से ही छुट्टी माना जाना चाहिए) पर भेज दिया है, क्योंकि उसने चैनल के प्रबंध निदेशक की छिछोरी हरकतों और आपत्तिजनक टिप्पणियों की मौखिक नालिश चैनल की एक कर्ताधर्ता महिला और मुख्य कार्यकारी अधिकारी की पत्नी से की थी। उस समय तो उस महिला पदाधिकारी ने शिकायतकर्ता से न केवल सहानुभूति जताई, बल्कि यहां तक कहा कि उसका पति अगर ऐसी हरकतें करता तो वह उन्हें गोली मार देती।
लेकिन यह शिकायत आखिरकार एक गुस्ताखी मानी गई। इसका नतीजा निकला महीने भर बाद। जाहिर है कि चैनलों के स्वामी नहीं चाहते होंगे कि वरिष्ठ पदाधिकारियों की शिकायतों की कोई नजीर कायम हो। ऐसी नजीरों से गंदे और भ्रष्ट लोगों की कामुक लालसाओं पर लगाम लगती है। और तो और, इस तरह के मशरूमी चैनलों का मकसद भी प्रभावित होता है। इन चैनलों में न कोई नियुक्ति पत्र दिया जाता है, न संविदा पत्र। कर्मचारियों का बारह फीसद भविष्य निधि काटने का कानून भी इनके यहां पानी भरता है। लेकिन, बेरोजगारी की मारी लड़कियां और लड़के, उनकी हर शर्त मानने को मजबूर होते हैं। नारकीय परिस्थितियों में काम करने के बावजूद चौबीस घंटे नौकरी से हाथ धोने की तलवार गर्दन पर लटकी रहती है।
चैनल के कर्ताधर्ताओं ने महिला एंकर से निपटने की सबसे क्रूरतम चाल चली। चूंकि, महिला एंकर ने प्रबंध निदेशक के विरुद्ध जो शिकायत की थी, उसे चरित्र-हनन का मामला माना गया। इसलिए उसी जंगली-न्याय का सहारा लिया गया, यानी आंख के लिए आंख और दांत के लिए दांत। (आई फॉर आई, एंड टूथ फॉर टूथ।) महिला पर भी चरित्र-हीनता का आरोप लगाया गया। आरोप भी क्या कि उसने एक सहकर्मी का चुंबन ले लिया। यह दफ्तर के कानून के मुताबिक गुनाहे-कबीरा है। सबूत के तौर पर कहा गया कि सीसीटीवी में फुटेज है। और कमाल यह है कि यह फुटेज मिल ही नहीं रहा है। पहले सहकर्मी को चलता किया गया, और बाद में महिला एंकर को दफ्तर न आने की कह कर टरका दिया गया।
महिला एंकर ने विरोध किया तो उसे तरह-तरह से धमकाया गया ।
और अंत में नौकरी से हटाया गया ।
महिला अब बेरोजगार है ।
आम तौर पर चैनलों और अखबारों में काम करने वाले लोग अपने साथ अंतहीन शोषण और क्रूरतम बर्तावों के खिलाफ कोई आवाज इसलिए नहीं उठाते, क्योंकि उन्हें ‘बागी’ करार दे दिया जाता है। और दूसरे चैनल और पत्र-समूह की इस मामले में बहुत पुरानी और पुश्तैनी दुरभिसंधि है। इसलिए वे बागियों को फिर ‘बगावत’ करने का मौका ही नहीं देते यानी नौकरी पर ही नहीं रखते।
वैसे इस देश में श्रम कानून है । अदालतें हैं । प्रेस परिषद है । पत्रकार यूनियनें हैं । कार्यस्थल पर महिलाओं के साथ किसी भी किस्म की अभद्रता के लिए सख्त कानून है । तरह-तरह के आयोग हैं । ये सबके सब किस खेत का दाना बेचते हैं, पता नहीं ।
एक बेबस एंकर बिना किसी जुर्म के जिबह कर दी जाती है।
प्रश्न पूछेगा कौन ?
मौन…मौन…मौन…
मैं भी मौन ।
आप भी मौन।
जनसत्ता अखबार में वरिष्ठ पद पर कार्यरत पत्रकार राम जनम पाठक के फेसबुक वॉल से.